भाजपा को याद आए केशुभाई पटेल, जन्मदिन की बधाई देने पहुंचे वाघाणी; हार्दिक ने पुस्तक भेंट की
पाटीदार आरक्षण आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल ने भी केशुभाई को गुजराती कवियों की पाणीदार सरदार नामक पुस्तक भेंट कर बधाई दी।
शत्रुघ्न शर्मा, अहमदाबाद। गुजरात की पाटीदार राजनीति में मंगलवार को एक नया मोड़ आया, जब पूरे एक दशक बाद प्रदेश भाजपा के किसी अध्यक्ष ने नब्बे वर्षीय पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को उनके आवास पर पहुंचकर जन्मदिन की बधाई दी। पाटीदार आरक्षण आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल ने भी केशुभाई को बधाई स्वरूप एक पुस्तक भेंट की। आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए इसे काफी अहम माना जा रहा है।
भाजपा नेताओं ने करीब एक दशक तक केशुभाई पटेल से दूरियां बना रखी थी। सोमनाथ ट्रस्ट के अध्यक्ष होने के नाते केशुभाई, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी आदि नेताओं से ट्रस्ट की बैठकों में मिलते रहे हैं लेकिन लंबे समय बाद कोई भाजपा अध्यक्ष उन्हें जन्मदिन की बधाई देने पहुंचा। भाजपा अध्यक्ष जीतूभाई वाघाणी व प्रदेश संगठन महासचिव भिखूभाई दलसाणिया ने उनके आवास पर जाकर जन्मदिन की बधाई दी।
पाटीदार आरक्षण आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल ने भी केशुभाई को गुजराती कवियों की पाणीदार सरदार नामक पुस्तक भेंट कर बधाई दी। लोकसभा चुनाव में पाटीदार समुदाय को अपने साथ रखने के लिए भाजपा हर संभव प्रयास कर रही है। पाटीदार भाजपा को कोर वोट बैंक है जो आरक्षण आंदोलन के चलते उससे छिटक गया था, विधानसभा चुनाव में भाजपा को सौराष्ट्र में काफी नुकसान उठाना पडा था। इसलिए भाजपा अब अपने इस पुराने क्षत्रप को फिर से केंद्र में लाकर अपनी पकड़ मजबूत बना रही है, चूंकि खोडलधाम ट्रसट के अध्यक्ष नरेश पटेल की भाजपा से बन नहीं रही है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी खोडलधाम मंदिर गए थे, जहां उनकी नरेश पटेल के साथ लंबी गुफ्तगू हुई थी।
पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल का जन्म 24 जुलाई, 1928 को हुआ था। नब्बे वर्षीय खांटी नेता दो बार गुजरात के मुख्यमंत्री रहे लेकिन जनवरी 2001 में आए विनाशकारी भूकंप के बाद जनता की नाराजगी के चलते उन्हें पद से हटना पड़ा था। तब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने, जो मई 2014 में देश के प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद इस पद से हटे। वर्ष 2007 में केशुभाई की भाजपा से दूरियां बढती गईं तथा 2012 में उन्होंने गुजरात परिवर्तन पार्टी बनाकर अलग चुनाव भी लड़ा लेकिन केवल दो सीट पर ही सफलता मिली, जिसके बाद उनकी पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया गया था।