गिर फॉरेस्ट के सिंहों की गणना इस बार होगी हाईटेक
एशियाटिक लॉयन की 14वीं गणना अब तक हुई गणनाओं में सर्वाधिक हाईटेक तरीके से होगी। 1000 टैबलेट का भी इस कवायद में प्रयोग किया जाएगा। टैबलेट से गणना प्रक्रिया में यूनिक आईडी मार्क लगाए जाएंगे।
वडोदरा, राजकोट। एशियाटिक लॉयन की 14वीं गणना अब तक हुई गणनाओं में सर्वाधिक हाईटेक तरीके से होगी। 1000 टैबलेट का भी इस कवायद में प्रयोग किया जाएगा। टैबलेट से गणना प्रक्रिया में यूनिक आईडी मार्क लगाए जाएंगे। इसके अलावा जियोग्राफिकल इंडीकेशन सिस्टम एवं ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम, कैमरा और वीडियोग्राफी का भी सहारा लिया जाएगा। आठ जिलों के 22000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में सिंह गणना 2 मई से प्रारंभ होकर 5 मई को पूरी होगी।
गणना की सहूलियत के लिए वन क्षेत्र को 30 जोन एवं 106 सब-जोन में विभाजित किया गया है। जामनगर एवं राजकोट जिलों के विस्तार को पहली बार सिंह गणना में शामिल किया गया है।
उल्लेखनीय है कि गणना के परिणामों पर विश्वभर के वन्यजीव प्रेमियों की नजर होती है। गणना के परिणाम प्रोत्साहन एवं फंड की व्यवस्था होती है।
गणना और इसका महत्व
सासण डीएफओ डॉ. संदीप कुमार बताते हैं कि सिंह की प्रजाति के आयोजन एवं व्यवस्थापन हेतु गणना की जाती है। इस कवायद में नर, मादा, बच्चे, एक वर्ष, एक से तीन साल की आयुवर्ग के बच्चे एवं वयस्कों की संख्या और औसत का पता चलता है। बच्चों की आयु का औसत क्या है, वन्यजीव के लिए मुफीद भू-भाग कौन सा है? सिंहवंश किस क्षेत्र में विस्तार चाहता है आदि की जानकारी मिलती है। कई दुर्घटनाएं भी सिंहवंश के साथ होती हैं। इनके कारणों की पड़ताल के साथ-साथ इनकी रोकथाम तथा संवर्धन-संरक्षण हेतु दूरगामी योजना बनाने हेतु उपयोगी डेटा प्राप्त होता है।
औसतन 10 प्रतिशत वृद्धि
साल 1963 से गिर अभ्यारण्य में हर पांच साल के अंतराल पर सिंहवंश की गणना होती आ रही है। 1968 के बाद हर गणना में सिंहवंश की संख्या में औसतन 10 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है।