मेन्टल है क्या? फिल्म का शीर्षक बदलने के लिए गुजरात हाईकोर्ट में याचिका, मनोचिकिस्तक संगठन ने किया विरोध
मनोचिकित्सक संगठन ने हाईकोर्ट में याचिका प्रस्तुत कर मांग की है कि मेंटल है क्या फिल्म का शीर्षक जब तक परिवर्तित न किया जाये तब तक इसे रिलीज न होने दिया जाये।
अहमदाबाद, जेएनएन। मनोचिकित्सक संगठन इण्डियन सायक्रियाटिस्ट सोसायटी ने हाईकोर्ट में याचिका प्रस्तुत कर मांग की है कि मेंटल है क्या, फिल्म का शीर्षक जब तक परिवर्तित न किया जाये तब तक इसे रिलीज न होने दिया जाये, या तो इस फिल्म पर ही प्रतिबंध लगा दिया जाये। एकता कूपर की बालाजी टेलीफिल्म ने इसका निर्माण किया है। इस पर नौ जून को सुनवाई होगी। यह फिल्म जुलाई में रिलीज होने वाली है।
साइक्रियाटिस्ट सोसायटी ने याचिका में कहा है कि आगामी 21 जून को फिल्म रिलीज होगी। अभी इसके पोस्टर सोशियल मीडिया में रिलीज हो गये हैं। इसमें फिल्म के हीरो राजकुमार राव और हीरोइन कंगना रनौत जिह्वा बाहर निकाल कर उसे संतुलित करते हुए दिखाई दे रहे हैं। फिल्म के शीर्षक के कारण समाज में गलत संदेश जायेगा। मानसिक रोग या इसके मरीज मज़ाक के पात्र नहीं हैं। मनोरोगी को मेंटल या पागल कहकर उन्हें नीचा नहीं दिखाना चाहिए।
मनोचिकित्सक संगठन ने कहा है कि इस प्रकार की टिप्पणी से मनोरोगी अंदर ही अंदर कुढ़ते रहते हैं। इससे उनकी बीमारी बढ़ जाती है। यह संगठन गत 30 वर्षों से मनोरोगियों के बारे में खुलकर बात करने का प्रयास कर रहा है। भारत में मनोरोग के प्रति सानुकूल वातावरण के कारण मनोरोगी डॉक्टर के पास जाने में संकोच की अनुभूति करते हैं। यदि इस प्रकार की फिल्म प्रदर्शित होती रहेंगी तो इसके रोगियों में संकुचित भावनाएं घर कर जायेंगी। इससे समाज का बहुत बड़ा नुकसान होगा। आवेदक संगठन ने कहा है कि फिल्म का शीर्षक बदलने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय तथा फिल्म सेंसर बोर्ड में किए गये आवेदन में किसी भी प्रकार का अनुमोदन न मिलने पर हाईकोर्ट में याचिका के लिए मजबूर होना पड़ा है।
मनोरोग चिकित्सक डॉ केतन पटेल
गुजरात के मनोरोग चिकित्सक डॉ. केतन पटेल ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि समाज में जागृति के लिए इस प्रकार की फिल्में बनना चाहिए, किन्तु मेंटल है क्या, टाइटल देना मानसिक रूप से असंतुलन का ही परिचायक है। ऐसे लोग मानसिक तौर पर दिवालिया होते हैं। वे खुद मानसिक रोग के शिकार होते हैं। इस प्रकार का टाइटल मनोरोगियों में हताशा का कारण बनेगा।
मनोरोग चिकित्सक डॉ. रमाशंकर यादव
अहमदाबाद सिविल अस्पताल के मनोरोग चिकित्सक डॉ. रमाशंकर यादव ने भी इसका विरोध किया है। उन्होंने कहा है कि इस प्रकार के शीर्षक का अर्थ मनोरोगियों को नीचा दिखाना है। यह बदलना चाहिए।
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