गोधरा 2002: साबरमती एक्सप्रेस मामले में दो को उम्रकैद, तीन बरी
2002 के गोधरा कांड में एसआइटी कोर्ट ने सोमवार को दो आरोपितों को दोषी करार दिया, जबकि तीन को बरी कर दिया।
अहमदाबाद, जेएनएन। 2002 के गोधरा कांड में एसआइटी कोर्ट ने दो आरोपियों को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जबकि तीन को निर्दोष छोड़ दिया।
गोधरा कांड मामले में विशेष अदालत ने दो आरोपियों को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जबकि तीन को निर्दोष छोड़ दिया। साबरमती जेल की स्पेशल कोर्ट इस हत्याकांड मामले में मुख्य फैसला पहले ही सुना चुकी है, जिसमें 11 को मृत्युदंड व 20 को आजीवन कारावास की सजा दी गई थी।
अहमदाबाद के साबरमती जेल में बनाई गई स्पेशल अदालत में 27 फरवरी, 2002 को साबरमती एस -6 में सवार 59 कारसेवकों को जिंदा जला देने के मामले की सुनवाई चल रही है। विशेष न्यायाधीश एचसी वोरा ने फारुख भाणा व इमरान शेरु को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई जबकि हुसैन सुलेमान मोहन, कसम भामदी व फारुख धतिया को निर्दोष छोड़ दिया। करीब दो साल पहले सुलेमान मोहन को मध्य प्रदेश के झाबुआ से पकड़ा गया था, जबकि अन्य को गुजरात के दाहोद रेलवे स्टेशन पर धर दबोचा था।
गोधरा कांड की सुनवाई कर रहे विशेष न्यायाधीश ने वर्ष 2011 में गाेधरा हत्याकांड पर मुख्य फैसला सुनाते हुए 31 को दोषी करार दिया था, जिनमें से 11 को मृत्युदंड व 20 को आजीवन करावास की सजा सुनाई जबकि 63 को सबूत व गवाहों के अभाव में बरी कर दिया था। हालांकि अक्टूबर 2017 में हाईकोर्ट न्यायाधीश अनंत दवे व जीआर उधवानी ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए 11 लोगों की मौत की सजा को कठोर आजीवन कारावास में बदल दिया था।
गौरतलब है कि 27 फरवरी, 2002 को गुजरात के गोधरा में सुबह जैसे ही साबरमती एक्सप्रेस गोधरा रेलवे स्टेशन के पास पहुंची। इसके एक कोच से आग लग गई, कोच में मौजूद यात्री आग की चपेट में आ गए। इनमें से ज्यादातर वो कारसेवक थे, जो राम मंदिर आंदोलन के तहत अयोध्या में एक कार्यक्रम से लौट रहे थे। आग से झुलसकर 59 कारसेवकों की मौत हो गई।