गुजरात से शुरू हुआ था जल, जंगल और जमीन से जुड़ा आदिवासी आंदोलन
1930 में बैरिस्टर टेटिया कानजी गामित द्वारा शुरू किया गया सति पति मूवमेंट को आगे बढ़ाते हुए सूरत के पास तापी-सोनगढ़ में पकड़ बनाई।
अहमदाबाद, शत्रुघ्न शर्मा। रांची के खूंटी जिले के आदिवासी इन दिनों सरकारी व्यवस्था के विरोध में एकजुट हो रहे हैं। इस विचारधारा के पीछे 1930 में बैरिस्टर टेटिया कानजी गामित द्वारा शुरू किया गया सति पति मूवमेंट है। यह मूवमेंट आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन के अधिकार से जुड़ा था। टेटिया कानजी आदिवासियों के ‘कटासवान वाले दादा’ कुंवर केसरी सिंह के पिता थे। उनके पुत्र रवींद्र केसरी सिंह खूंटी के बागी तेवर को सिरे से खारिज करते हैं। केसरी सिंह गामित उर्फ कटासवान वाले दादा ने पूरा जीवन आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई में बिता दिया।
आदिवासी समुदाय में उनका बहुत सम्मान है। उन्होंने पिता के सति पति मूवमेंट को आगे बढ़ाया और सूरत के पास तापी-सोनगढ़ में अपनी पकड़ बनाई। आदिवासी उनकी बात सुनते व मानते हैं। अपनी गाड़ी पर भारत सरकार लिखते, पुलिस से सामना होने पर भिड़ जाते, अदालत में अपना केस खुद लड़ते और जीत जाते थे। केसरी सिंह के सिद्धांतों पर चलने वाले आदिवासी सरकार व प्रशासन को मानने से इन्कार करते हैं। सरकारी बसों में मुफ्त सफर, राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र नहीं रखते हैं और कोई कर भी नहीं देते।
अपने इलाकों में सफेद रंग का बोर्ड लगाते हैं जिन पर लिखा होता है भारत सरकार। सेवा जोहार इनका प्रमुख नारा है। दावा कि सात जनवरी 1969 में कोर्ट में उन्होंने खुद को भारत की मूल मिट्टी, मूल बीज व मूल वारिस साबित कर दिया था।
खूंटी आंदोलन का समर्थन नहीं
कुंवर केसरी सिंह गामित का नाम लेकर झारखंड के खूंटी में चल रहे पत्थलगड़ी और कुटुंब परिवार आंदोलन का रवींद्र केसरी सिंह समर्थन नहीं करते हैं। वह सरकार व प्रशासन के खिलाफ उग्र आंदोलन को भी नाजायज मानते हैं। उन्होंने कहा कि उनका आंदोलन अहिंसा व विश्व शांति पर आधारित है। हिंसा के बजाय शांति का मार्ग अपनाने से भी मंजिल मिलती है। हर साल अहिंसा व विश्व शांति पर सम्मेलन करते हैं और यही उनका संदेश है।
हम प्रिवी कौंसिल के अधीन
जमीन के मालिक व खुद की सरकार चलाने के बारे में पूछने पर रवींद्र केसरी सिंह ने कहा कि हम प्रिवी कौंसिल अर्थात भारत सरकार के अधीन हैं। कानून व शासन उन्हें मंजूर नहीं है। नॉन जूडिशियल का अर्थ प्राकृतिक व मुक्त जीवन से है। अपने आंदोलन के जरिये किसी तरह की हिंसा उन्हें बर्दाश्त नहीं।
यह है ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
स्वतंत्रता आंदोलन के समय 1930 में महात्मा गांधी व इरविन के बीच हुए गोलमेज समझौते में आदिवासियों के लिए अखिल आदिवासी एक्सक्लूडेड पार्शियल एरिया का उल्लेख किया गया था। टेटिया कानजी आदिवासियों के नेता थे। उनका दावा था कि महारानी विक्टोरिया ने ही आदिवासियों को जल, जंगल और जमीन का हक सौंप दिया था। ऐसे में आदिवासी जब इस देश के मालिक हैं तो कोई सरकार उनको कैसे आदेश और निर्देश दे सकती है।
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