छह दशक पहले चोरी हुई पौराणिक महत्व की 11 मूर्तियों में से दो मूर्ति यहां अब मिली
छह दशक पहले तमिलनाडू से चोरी हुई पौराणिक महत्व की 11 मूर्तियों में से दो मूर्ति अहमदाबाद के साराभाई फाउण्डेशन के म्यूजियम से बरामद की गई है।
अहमदाबाद, जेएनएन। छह दशक पहले तमिलनाडू से चोरी हुई पौराणिक महत्व की 11 मूर्तियों में से दो मूर्ति अहमदाबाद के साराभाई फाउण्डेशन के म्यूजियम से बरामद की गई है। मूर्ति का निर्माण हिन्दू साम्राज्य चोल राजाओं के शासन में हुआ था।
शाहीबाग में केलिको मील कंपाउण्ड में संचालित इस म्यूजियम में कई ऐतिहासिक महत्व की वस्तुएं प्रदर्शन में रखी गई हैं। मशहूर वैज्ञानिक विक्रम साराभाई का परिवार इस म्यूजियम का संचालन करता है।
राजा चोल वंश के जमाने की तमिलनाडु के त्रिचिर के पास स्थित बिग टैम्पल को दान में मिली अलभ्य और पैराणिक मूर्तियों में से 11 मूर्तियों की चोरी होने की शिकायत गत वर्ष दर्ज करवायी गयी थी। अत्यन्त कीमती और ऐतिहासिक महत्ववाली मूर्तियों को खोजने का प्रयास किया गया है।
इस दौरान 60 वर्ष पूर्व चोरी हुई इन 11 मूर्तियों में से दो मूर्तियां अहमदाबाद के साराभाई फाउन्डेशन में होने की जानकारी मिलने पर तमिलनाडु पुलिस अहमदाबाद से इन दोनों मूर्तियों को बरामद कर लिया है। चांदी एवं ब्रांज धातु से निर्मित ये मूर्तियां अत्यन्त पैराणिक हैं।
शिकायत दर्ज होने के बाद तमिलनाडु पुलिस ने 60 वर्ष पूर्व मूर्तियां कैसे चोरी हो गई उसकी तहकिकात शुरु की। एक वर्ष की सख्त मेहनत के बाद पुलिस को जानकारी मिली कि चोरों ने दो मूर्तियां अहमदाबाद के केलिको एवं साराभाई फाउन्डेशन को बेच दी है।
तमिलनाडु पुलिस की एक टीम अहमदाबाद आकर दोनों मूर्तियों को बरामद कर लिया। इसी के साथ सवाल उठना लाजिमी है कि 60 वर्ष पूर्व करोड़ो रुपये देकर खरीदी गई ये दोनों एतिहासिक महत्व की मूर्तियां कैसे यहां साराभाई फाउन्डेशन तक पहुंची। पुलिस की छानबीन जारी है।
चोलों का इतिहास
दक्षिण भारत में और पास के अन्य देशों में तमिल चोल शासकों ने 9 वीं शताब्दी से 13 वीं शताब्दी के बीच एक अत्यंत शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्य का निर्माण किया। इतिहास बताता है कि चोल शासक प्रसिद्ध भवननिर्माता थे। सिंचाई की व्यवस्था, राजमार्गों के निर्माण आदि के अतिरिक्त उन्होंने नगरों एवं विशाल मंदिर तंजौर में बनवाया।
यह प्राचीन भारतीय मंदिरों में सबसे अधिक ऊँचा एवं बड़ा है। तंजौर के मंदिर की दीवारों पर अंकित चित्र उल्लेखनीय एवं बड़े महत्वपूर्ण हैं। राजेंद्र प्रथम ने अपने द्वारा निर्मित नगर गंगैकोंडपुरम् (त्रिचनापल्ली) में इस प्रकार के एक अन्य विशाल मंदिर का निर्माण कराया। चोलों के राज्यकाल में मूर्तिकला का भी प्रभूत विकास हुआ। इस काल की पाषाण एवं धातुमूर्तियाँ अत्यंत सजीव एवं कलात्मक हैं।