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मोहन भागवत बोले, हिंसा और सत्याग्रह से बचें; लें कोर्ट का सहारा

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने कहा कि हिंसा पर उतारू होना ठीक नहीं। जहां तक हो सके अपने देश में सत्याग्रह से भी बचें।

By Sachin MishraEdited By: Published: Wed, 11 Apr 2018 11:48 AM (IST)Updated: Wed, 11 Apr 2018 11:54 AM (IST)
मोहन भागवत बोले, हिंसा और सत्याग्रह से बचें; लें कोर्ट का सहारा
मोहन भागवत बोले, हिंसा और सत्याग्रह से बचें; लें कोर्ट का सहारा

शत्रुघ्न शर्मा, अहमदाबाद। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने डॉ. भीमराव आंबेडकर के कथन का जिक्र करते हुए कहा कि आजाद देश में किसी भी वर्ग को अपनी समस्या के निपटारे के लिए अदालत का सहारा लेना चाहिए। हिंसा पर उतारू होना ठीक नहीं। जहां तक हो सके अपने देश में सत्याग्रह से भी बचें।

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भागवत ने बताया कि संविधान समिति की बैठक में आंबेडकर ने कहा था कि देश में अब हिंसा नहीं हो। अपने देश में सत्याग्रह करने से भी बचना चाहिए। आंबेडकर चाहते थे कि सभी समस्या व विवादों का निपटारा अदालत के माध्यम से होना चाहिए। भागवत ने ऐसा कहकर जहां एक ओर सरकार का बचाव किया, वहीं दो अप्रैल व 10 अप्रैल के बंद का आह्वान करने वालों को भी एक नसीहत दे डाली।

भागवत यहां उन लोगों पर कटाक्ष करने से भी नहीं चूके जो तीन माह जेल में रहकर ताम्रपत्र मांगने खड़े हो जाते हैं। सरदार सिंह राणा ने लंदन में रहकर अंग्रेजों के खिलाफ देश के स्वतंत्रता संग्राम में मदद की, फ्रांस ने उन्हें देश निकाला दिया था, लेकिन बाद में उन्हें अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान भी दिया।

लंदन में स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा के साथ मिलकर भारत की आजादी का आंदोलन चलाने वाले गुजरात के सरदार सिंह राणा के जीवन पर आधारित वेबसाइट का लोकार्पण करते हुए भागवत ने कहा कि क्रांतिकारियों का जीवन समर्पण की पराकाष्ठा को दर्शाता है जिससे युवा पीढ़ी को प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, शिवाजी आदि महापुरुषों ने एक विशेष परिस्थिति में जाकर कार्य किया इसलिए अब वर्तमान में उनके घटनाक्रम को दोहराने की जरूरत नहीं है। वर्तमान समय व काल के मुताबिक, समाज व देश की सेवा करनी चाहिए।

भागवत ने कहा कि भारत को विश्व गुरु बनाना संघ का प्रथम लक्ष्य रहा है, आजादी के आंदोलन के समय सभी लोग देश को आजाद करना चाहते थे उनके बीच मतभेद थे, लेकिन लक्ष्य एक था। उन्होंने कहा कि यूरोप से यह बात भारत को सीखना चाहिए कि तमाम वैचारिक मतभेद के बावजूद वे साथ चलने को तैयार रहते हैं।


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