Farmer Bill 2020: किसान बिल के विरोध में गुजरात कांग्रेस का राज्यव्यापी आंदोलन
Farmer Bill 2020केंद्र सरकार के किसान संबंधी विधेयक के विरोध में गुजरात कांग्रेस 2 अक्टूबर को राजव्यापी आंदोलन करेगी। गुजरात कांग्रेस के प्रभारी एवं सांसद राजीव सातव का कहना है कि बिल के खिलाफ राज्य के सभी जिला व तहसील मुख्यालयों पर कांग्रेस कार्यकर्ता रैली व धरना करेंगे।
अहमदाबाद, जागरण संवाददाता। गुजरात कांग्रेस ने केंद्र सरकार के किसान संबंधी विधेयकों को किसान विरोधी बताते हुए कहा कि कांग्रेस ने भूमिहीन खेत मजदूरों को किसान बनाया लेकिन अब केंद्र किसानों को कॉन्ट्राक्ट लेबर बनाने पर आमादा है। गुजरात में कांग्रेस इसके विरोध में एक राज्यव्यापी आंदोलन करेंगी।
गुजरात में होगा पंजाब व हरियाणा जैसा आंदोलन
गुजरात कांग्रेस के प्रभारी एवं सांसद राजीव सातव ने बताया कि केंद्र सरकार के किसान संबंधी विधेयक किसान विरोधी हैं, इनके खिलाफ पंजाब व हरियाणा की तरह गुजरात में कांग्रेस एक आंदोलन खड़ा करेगी। 28 सितंबर को गवर्नर हाउस तक कूच के बाद 2 अक्टूबर को राज्य के सभी जिला व तहसील मुख्यालयों पर कांग्रेस कार्यकर्ता रैली व धरना करेंगे इसके बाद चार जोन में किसान सम्मेलनों का आयोजन कर किसानों को उनके हकों के लिए जागरुक करेंगे।
2 अक्टूबर को कांग्रेस कार्यकर्ता करेंगे रैली व धरना
कांग्रेस अध्यक्ष अमित चावडा ने कहा कि भाजपा सरकार ईस्ट इंडिया की तरह देश में कंपनी राज स्थापित करने पर आमादा है। कांग्रेस ने किसानों को जमीनों का मालिक बनाया लेकिन भाजपा की सरकार उन्हें कॉन्ट्रेक्ट लेबर बना देना चाहती है। 2 अक्टूबर को राज्य के सभी जिला व तहसील मुख्यालयों पर कांग्रेस कार्यकर्ता रैली व धरना करेंगे।
जानिये क्यों हो रहा है इस बिल का विरोध?
केंद्र सरकार के किसान बिल को लेकर किसान संगठनों का कहना है कि नए कानून के लागू होने से कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में पहुंच जाएगा जिससे किसानों को बहुत नुकसान होगा। पंजाब में होने वाले गेहूं और चावल का एक बड़ा भाग या तो पैदा ही एफसीआइ द्वारा किया जाता है, या फिर एफसीआइ उसे ख़रीद लेता है। बता दें कि वर्ष 2019-2020 के दौरान रबी के मार्केटिंग सीज़न में, केंद्र द्वारा ख़रीदे गए करीब 341 लाख मिट्रिक टन गेहूं में से 130 लाख मिट्रिक टन गेहूं की आपूर्ति पंजाब ने की थी।
प्रदर्शनकारियों को इस बात का डर भी सता रहा है कि एफसीआइ अब राज्य की मंडियों से ख़रीदारी नहीं कर पाएगा, ऐसे में एजेंटों और आढ़तियों को क़रीब 2.5% के कमीशन का नुकसान होगा। साथ ही राज्य भी अपना छह प्रतिशत कमीशन खो देगा, जो वो एजेंसी की ख़रीद पर लगाता आया है।
कृषि मामलों के जानकारों का कहना है कि किसानों की चिंता जायज है, "किसानों को अगर बाज़ार में अच्छा दाम मिल ही रहा होता तो वो बाहर क्यों जाते।" इस बिल के आने से सबसे बड़ा नुकसान ये होगा की मंडिया ही खत्म हो जाएगी।