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Gujarat: नाबालिग पत्‍नी से जबरदस्‍ती संबंध सजा पात्र अपराध

Gujarat High Court. नाबालिग पत्‍नी य‍दि वह 15 साल से कम उम्र की नहीं हो तो उससे जबरदस्‍ती संबंध बनाने को दुष्‍कर्म नहीं मानने पर जवाब मांगा गया है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Thu, 21 Nov 2019 07:14 PM (IST)Updated: Thu, 21 Nov 2019 07:14 PM (IST)
Gujarat: नाबालिग पत्‍नी से जबरदस्‍ती संबंध सजा पात्र अपराध
Gujarat: नाबालिग पत्‍नी से जबरदस्‍ती संबंध सजा पात्र अपराध

अहमदाबाद, जागरण संवाददाता। Gujarat High Court. गुजरात हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्‍य सरकार को एक जनहित याचिका को लेकर नोटिस जारी किया है। इस याचिका में नाबालिग पत्‍नी से जबरदस्‍ती संबंध बनाने को सजा पात्र अपराध मानने की मांग की गई है।

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मुख्‍य न्‍यायाधीश विक्रम नाथ व न्‍यायाधीश एजे शास्‍त्री की खंडपीठ ने अहमदाबाद के लॉ छात्र की याचिका पर केंद्र व गुजरात सरकार के कानून मंत्रालय को नाबालिग पत्‍नी य‍दि वह 15 साल से कम उम्र की नहीं हो तो उससे जबरदस्‍ती संबंध बनाने को दुष्‍कर्म नहीं मानने पर जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता का दावा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 2 के तहत नाबालिग पत्‍नी से जबरदस्‍ती संबंध बनाने को दुष्‍कर्म नहीं माना गया है। अदालत से ऐसे मामलों को वैवाहिक दुष्कर्म की श्रेणी में सजापात्र अपराध बनाए जाने की मांग की गई है।

गौरतलब है कि दो अप्रैल, 2018 को गुजरात हाईकोर्ट ने ही एक मामले में फैसला दिया था कि पत्‍नी अपने पति को दुष्‍कर्म का आरोपित नहीं बना सकती भले संबंध उसकी मर्जी के बिना बनाए गए हों। अदालत ने इस स्थिति में पति के दुष्‍कर्म करने के बावजूद पत्‍नी को कानूनी सुरक्षा नहीं होने को लेकर खेद भी प्रकट किया है। अदालत ने कानून के निर्माताओं से नाबालिग पत्‍नी से जबरदस्‍ती संबंध बनाने को सजा पात्र अपराध बनाने की मांग की है। साथ ही, बताया कि महिला आइपीसी की धारा 354 के तहत आरोप पत्र दाखिल कर सकती है।

पहले 12 साल से कम उम्र की नाबालिग पत्‍नी से शारीरिक संबंध बनाना दुष्‍कर्म की श्रेणी में आता था, लेकिन संशोधन के बाद यह प्रावधान ही हटा दिया गया था।  

वैवाहिक दुष्कर्म को तलाक का आधार मानने की याचिका खारिज

वैवाहिक दुष्कर्म के मामले में रिपोर्ट दर्ज करने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के संबंध में केंद्र को निर्देश देने और इसे तलाक का आधार बनाने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करने से दिल्ली हाई कोर्ट ने इन्कार कर दिया। मुख्य न्यायमूर्ति डीएन पटेल व न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि यह मामला न्यायपालिका के बजाय विधायी अधिकार क्षेत्र का है। ऐसे में अदालत कानून बनाने के लिए दिशानिर्देश नहीं दे सकती।

जनहित याचिका में मांग की गई थी कि वैवाहिक दुष्कर्म के मामलों को दर्ज करने के लिए दिशानिर्देश होने चाहिए, ताकि संबंधित प्राधिकारियों की जिम्मेदारी और जवाबदेही को तय किया जा सके। याचिकाकर्ता अनुजा कपूर ने दिशानिर्देशों का पालन नहीं करने पर दंड और जुर्माना तय करने के लिए सरकार को निर्देश देने की मांग भी की थी। याचिका में कहा गया था कि वैवाहिक दुष्कर्म हत्या, दुष्कर्म जैसे अपराधों से कम नहीं है। याचिका के अनुसार इस संबंध में अधिकारियों में काफी उलझन है कि वह किस कानून के तहत वैवाहिक दुष्कर्म का मामला दर्ज करें। उन्होंने कहा, चूंकि अभी वैवाहिक दुष्कर्म कोई अपराध नहीं है इसलिए पत्नी अपने पति के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं करा सकती।

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