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संकल्प का दम

देश की राजधानी दिल्ली में पिछले दिनों हुई शर्मनाक घटना ने सभी का सिर झुका दिया। महानगरों से लेकर छोटे शहरों और कस्बों तक में जिस तरह विरोध की आवाज बुलंद की गई, उससे जाहिर हुआ कि लोगों में कितना गुस्सा है। इस माहौल का असर निश्चित रूप से कॉरपोरेट सेक्ट

By Edited By: Published: Tue, 15 Jan 2013 02:27 PM (IST)Updated: Tue, 15 Jan 2013 02:27 PM (IST)
संकल्प का दम

देश की राजधानी दिल्ली में पिछले दिनों हुई शर्मनाक घटना ने सभी का सिर झुका दिया। महानगरों से लेकर छोटे शहरों और कस्बों तक में जिस तरह विरोध की आवाज बुलंद की गई, उससे जाहिर हुआ कि लोगों में कितना गुस्सा है। इस माहौल का असर निश्चित रूप से कॉरपोरेट सेक्टर पर भी पड़ता दिखा।

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पिछले दिनों सामने आए उद्योग संगठन एसोचैम के अध्ययन में भी कहा गया कि राजधानी में पिछले दिनों जो कुछ हुआ, उससे घबराकर दिल्ली-एनसीआर की आईटी-बीपीओ कंपनियों में काम करने वाली करीब 10-15 प्रतिशत महिलाओं ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। अध्ययन में इस सेक्टर में 40 प्रतिशत प्रोडक्टिविटी घटने की बात भी कही गई।

सर्वे में कहा गया कि वारदात ने कई शहरों की वुमन वर्किग फोर्स को जबर्दस्त झटका दिया है, लेकिन सबसे ज्यादा दहशत दिल्ली-एनसीआर की महिलाओं में है। यहां हर तीन में से एक वर्किग वुमन ने या तो नाइट शिफ्ट में काम करना बंद कर दिया है या फिर नौकरी छोड़ दी है। इस बारे में एसोचैम के सेक्रेटरी जनरल डीएस रावत का कहना है कि उक्त घटना और उससे बने दहशत के माहौल के कारण कम से कम 40 प्रतिशत महिला एंप्लॉयीज का काम किसी न किसी रूप में प्रभावित हुआ है और इसका सीधा असर आईटी-बीपीओ कंपनियों के काम पर पड़ा है।

सिर्फ तात्कालिक असर

हालांकि तमाम बड़ी कंपनियों ने एसोचैम के इस निष्कर्ष से अपनी असहमति जताई है। ज्यादातर बड़ी कंपनियों ने माना है कि उनके यहां वर्किग वुमन के मनोबल पर कोई खास असर नहीं पड़ा है, जबकि छोटी और मझोली फर्मो का कहना था कि हालिया घटनाओं ने उनके फीमेल वर्कफोर्स को थोड़ा अपसेट जरूर किया है। हालांकि कई कंपनियों के शीर्ष प्रबंधन का मानना है कि निश्चित तौर पर महिला कर्मियों में ही नहीं, इंडस्ट्री में भी चिंता है। वुमन वर्कफोर्स का भरोसा डगमगा गया है। उनके मुताबिक सरकार यदि लॉ ऐंड ऑर्डर की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाती, तो इसका परिणाम हानिकारक हो सकता है और दिल्ली में नॉलेज बेस्ड और सर्विस इंडस्ट्री की हालत खराब हो सकती है।

पीछे नहीं, आगे

इन सबके बावजूद जिस तरह से पिछले कुछ वर्षो से महिलाओं के कदम लगातार आगे बढ़ रहे हैं और वे नित नए व चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं, उससे देखते हुए कहा जा सकता है कि हाल की घटना उनके बढ़े मनोबल को कतई तोड़ नहीं सकती। विरोध की ताकत से निश्चित रूप से सरकार को कोई ऐसा कड़ा कानून जरूर बनाना होगा, जिससे महिलाओं से अनाचार करने वाले अराजक तत्वों को कड़ा सबक मिल सके और फिर कोई दूसरा व्यक्ति वैसा करने का सपने में भी साहस न जुटा सके।

बना रहेगा मनोबल

इस बारे में जानी-मानी काउंसलर परवीन मल्होत्रा का कहना है कि दिल्ली की उक्त घटना ने हम सभी को मर्माहत किया है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि महिलाएं चूड़ियां पहनकर घर में बैठ जाएंगी और उनके बढ़ते कदम रुक जाएंगे। एक बीपीओ कंपनी में काम करने वाली अमृता कहती हैं कि इस घटना ने हमें पहले से ज्यादा सतर्क जरूर कर दिया है, लेकिन बाहर की दुनिया में निकलकर ही हमें और हमारी प्रतिभा को नई पहचान मिली है। इन घटनाओं से हमारे मनोबल पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। हम देश की जागरूक युवा शक्ति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अनाचारियों और अराजक ताकतों का मुकाबला करेंगे और उन्हें मुंहतोड़ जवाब देंगे।

जीतेगी स्त्री-शक्ति

जिस तरह महिलाओं के कदम लगातार आगे की ओर बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में महिला शक्ति कामयाबी के नए कीर्तिमान बनाएगी। वह सिर्फ तस्वीरों की देवी नहीं बनी रहेगी, बल्कि आगे बढ़कर समाज और देश के विकास को नई दिशा देगी।

पूर्णता के लिए जरूरी

स्त्री और पुरुष दोनों एक-दूसरे की कामयाबी के पूरक हैं। सभ्यता की शुरुआत से ही दोनों की साथ-साथ पहचान रही है। स्त्री के बिना न तो पुरुष पूरा है और न ही पुरुष के बिना स्त्री। ऐसे में दोनों के लिए एक-दूसरे का सम्मान करना बेहद जरूरी है। परस्पर सहयोग से दोनों की पहचान होती है और दोनों ही अनवरत आगे बढ़ते हैं। कार्यस्थल पर भी पुरुषों का महिला सहकर्मियों का पूरा ख्याल रखते हुए उनके साथ हर संभव सहयोग करें। इससे सहभागिता का जो वातावरण बनेगा, वह समाज और देश दोनों को विकास की दिशा में ले जाने में मददगार होगा।

[रमेश चंद्र]

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