विदेशी खिलाड़ियों को न रोक कर कोलकाता ने भूल की : भूटिया
अधिकतर विदेशी भारत से बहुत ज्यादा परिचित नहीं हैं और उनके लिए यहां की परिस्थितियां नई हैं।
कोलकाता, जेएनएन। बाईचुंग भूटिया हीरो इंडिया सुपर लीग को एक और झटका लग गया और इस बार शिकार टेडी शेरिंघम हुए। हालांकि, एटलेटिको डि कोलकाता की किस्मत में कोई बदलाव नहीं आया। नए मैनेजर एश्ले वेस्टवुड के कमान संभालने के बावजूद उन्होंने घरेलू मैदान में मजबूत चेन्नईयन एफसी के खिलाफ बढ़त और मैच दोनों गंवाए। तेजी से आगे बढ़ रहे आइएसएल में नए मैनेजर के लिए जल्दी से सेटल होना आसान नहीं होता, क्योंकि मैनेजरों के बीच अंतर करना मुश्किल होता है। नई टीम के साथ तालमेल बैठाना मैनेजर के लिए आसान नहीं होता। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि एक महीने पहले ही यह टीम एकजुट हुई है।
अधिकतर विदेशी भारत से बहुत ज्यादा परिचित नहीं हैं और उनके लिए यहां की परिस्थितियां नई हैं। मैनेजरों ने भी पहले भारत में कोचिंग नहीं की है और उन्हें स्थितियों से तालमेल बैठाना मुश्किल हो रहा है। इस तरह के जुए में किस्मत भी अपनी भूमिका निभाती है। क्लबों को भारतीय कोच को लाना चाहिए, क्योंकि उन पर काफी कुछ निर्भर होता है। वर्ना क्लब की किस्मत नीचे की तरफ गिरने में देर नहीं लगती। एटीके के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है, वह एक चैंपियंस क्लब से बुरी तरह विफल टीम दिख रही है।
आइएसएल के इतिहास में एटीके की निरंतरता हमेशा ही देखने को मिली है। पिछले तीन संस्करण में से दो बार वह चैंपियन बने। यह समझ से बाहर है कि पिछले तीन संस्करणों में अंतर पैदा करने वाले विदेशी खिलाड़ियों को एटीके ने आखिर जाने क्यों दिया। मैं सीजन-2 में उनसे जुड़ा रहा हूं। (टीसीएम)बाईचुंग भूटिया1हीरो इंडिया सुपर लीग को एक और झटका लग गया और इस बार शिकार टेडी शेरिंघम हुए।
हालांकि, एटलेटिको डि कोलकाता की किस्मत में कोई बदलाव नहीं आया। नए मैनेजर एश्ले वेस्टवुड के कमान संभालने के बावजूद उन्होंने घरेलू मैदान में मजबूत चेन्नईयन एफसी के खिलाफ बढ़त और मैच दोनों गंवाए। तेजी से आगे बढ़ रहे आइएसएल में नए मैनेजर के लिए जल्दी से सेटल होना आसान नहीं होता, क्योंकि मैनेजरों के बीच अंतर करना मुश्किल होता है। नई टीम के साथ तालमेल बैठाना मैनेजर के लिए आसान नहीं होता। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि एक महीने पहले ही यह टीम एकजुट हुई है।1अधिकतर विदेशी भारत से बहुत ज्यादा परिचित नहीं हैं और उनके लिए यहां की परिस्थितियां नई हैं। मैनेजरों ने भी पहले भारत में कोचिंग नहीं की है और उन्हें स्थितियों से तालमेल बैठाना मुश्किल हो रहा है। इस तरह के जुए में किस्मत भी अपनी भूमिका निभाती है। क्लबों को भारतीय कोच को लाना चाहिए, क्योंकि उन पर काफी कुछ निर्भर होता है। वर्ना क्लब की किस्मत नीचे की तरफ गिरने में देर नहीं लगती।
एटीके के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है, वह एक चैंपियंस क्लब से बुरी तरह विफल टीम दिख रही है। आइएसएल के इतिहास में एटीके की निरंतरता हमेशा ही देखने को मिली है। पिछले तीन संस्करण में से दो बार वह चैंपियन बने। यह समझ से बाहर है कि पिछले तीन संस्करणों में अंतर पैदा करने वाले विदेशी खिलाड़ियों को एटीके ने आखिर जाने क्यों दिया। मैं सीजन-2 में उनसे जुड़ा रहा हूं।