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फाइनल में दो अलग स्टाइल के बीच दिखेगा मुकाबला

फाइनल में मुकाबला दो अलग-अलग स्टाइल वाली टीमों के बीच है।

By Sanjay SavernEdited By: Published: Sat, 14 Jul 2018 06:21 PM (IST)Updated: Sat, 14 Jul 2018 06:21 PM (IST)
फाइनल में दो अलग स्टाइल के बीच दिखेगा मुकाबला
फाइनल में दो अलग स्टाइल के बीच दिखेगा मुकाबला

 डिएगो मेराडोना का कॉलम

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फुटबॉल की सबसे बड़ी रात आ चुकी है। 63 मैच और 30 दिन के इंतजार के बाद प्रशंसकों का इंतजार आखिरकार खत्म हो गया। इतिहास, ड्रामा, भावनाएं और रोमांस.. इस खेल को कई कोण से देखा जा सकता है। अगर मुझसे पूछेंगे तो मैं यही कहूंगा कि विश्व कप फाइनल का नाम ही इच्छाशक्ति है।

मैच के दौरान हमें तकनीकी और रणनीतिक तत्व भी देखने को मिलेंगे। जब दुनिया की दो सर्वश्रेष्ठ टीमें आमने-सामने होती हैं, तो आप इससे ज्यादा बेहतर की उम्मीद नहीं कर सकते। साथ ही इस मौके पर इच्छा की जरूरत होती है। आप जीतें या हारें, आपको इस मौके का लुत्फ उठाने के लिए तैयार रहना चाहिए। 1986 में मैंने आंखों के एक कोने से देखा कि जर्मन हाफ में जॉर्ज बुरुजागा सतर्क नहीं थे। बाकी सब इतिहास है।

फ्रांस और क्रोएशिया किस रणनीति के साथ उतरेंगे, इस पर भी बात कर लेनी चाहिए। फ्रांस ने नॉकआउट चरण में तीन मैच 90 मिनट के भीतर जीते। दूसरी तरफ क्रोएशिया के सभी मैच 120 मिनट तक खिंचे। दिदिएर डेसचैंप्स के खिलाड़ी जहां दबाव बनाकर खेल रहे हैं। वहीं, ज्लाटिको डालिक के लड़ाकों को अंतिम क्षण तक संघर्ष करना पड़ रहा है। यह बताता है कि क्रोएशिया में दबदबा कायम करने की क्षमता कम है। मगर इसका दूसरा पहलू यह है कि उनमें आखिरी पल तक संघर्ष करने की शक्ति है। वे रूस में विशेष शक्ति के साथ पहुंचे हैं।

फाइनल में मुकाबला दो अलग-अलग स्टाइल वाली टीमों के बीच है। हालांकि, फ्रांस का दबदबा होने की उम्मीद ज्यादा है। डेसचैंप्स के नेतृत्व में उन्होंने कुशल रणनीति तैयार की है। वे बैक और मिडिल में बेहद मजबूत हैं। वे बहुत ज्यादा भागते नहीं दिखने के बावजूद मैच पर अपना नियंत्रण रखते हैं। मुझे समझ नहीं आता कि आखिर क्यों उनके खेल को लेकर इतनी बातें की जा रही हैं। यह एक व्यावहारिक नीति है, जिस के दम पर वे 2016 में यूरो कप के करीब पहुंचे थे। घरेलू मैदान में फाइनल हारने की निराशा को रूस में खत्म करने के लिए वे प्रतिबद्ध हैं।

फ्रांस के बारे में होने वाली चर्चा का केंद्र एमबापे हैं। हालांकि इस टीम में और भी अच्छे खिलाड़ी हैं और यह सिर्फ एक खिलाड़ी पर नहीं टिकी है। विश्व कप से पहले चोट की वजह से डिफेंडर और मिडफील्डर गंवाने के बावजूद उनके पास योग्य विकल्प हैं। दो कार्ड मिलने की वजह से बाहर बैठने वाले ब्लेस मातुदी की भी कमी नहीं खली। अहम क्षेत्र में पॉल पोग्बा और कांटे विपक्षी टीम के मूव को विफल कर रहे हैं और साथ ही आक्रमण भी कर रहे हैं। यह टीम सिर्फ एमबापे या ग्रीजमैन पर निर्भर नहीं है, इनके डिफेंडर तक गोल कर रहे हैं।

ऐसा नहीं है कि क्रोएशिया तैयार नहीं है। यह बात याद रखने वाली है कि अतिरिक्त समय या पेनाल्टी में उनकी जीत दिखाती है कि सभी मैचों में उन्होंने सफल वापसी की है। नॉकआउट मुकाबले में ऐसा एक बार करने के लिए ही बड़ी हिम्मत चाहिए। जो टीम बार-बार ऐसा कर रही है, निश्चित तौर पर उसमें असाधारण खिलाड़ी हैं। ऐसा करने के लिए प्रतिबद्धता के साथ-साथ कौशल और रणनीतिक तेज तर्रार होना भी जरूरी है। 1990 का मेरा अनुभव कहता है कि अगर आप में आग है, तो उलटफेर किया जा सकता है। इस टीम में सिर्फ लुका मॉड्रिक या इवान पेरिसिक ही नहीं हैं बल्कि कई खिलाड़ी दम रखते हैं। 360 मिनट तक फुटबॉल खेलने के बाद टिके रहने के लिए बहुत ही दम चाहिए। मुझे लड़ने वाली टीम पसंद है। अगर क्रोएशिया जीत जाती है, तो लुज्निकी स्टेडियम को हमेशा याद रखा जाएगा।


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