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रमज़ान के पवित्र महीने का आगमन

इस तरह रोज़ेदार गुनाहों की तरफ क़दम बढ़ाने से रुक जाता। इच्छाओं पर काबू पाने से आत्मा और सांसों में ताज़गी पैदा होती है, जिससे इबादत में आनंद आता है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 06 Jun 2016 12:18 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jun 2016 01:00 PM (IST)
रमज़ान के पवित्र महीने का आगमन

रमज़ान के महीने में रोज़ा रखकर आत्मसंयम का अभ्यास होता है और हम बुराइयों को छोड़कर बेहतरीन इंसान बनते हैं...

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रमज़ान के पवित्र महीने के आगमन के पूर्व नबी करीम रजब और शाबान (हिज़री कैलेंडर में सातवां और आठवां

महीना) से ही दुआ करते थे - ‘या अल्लाह! तू हमें रजब और शाबान में बरकत अता फ़रमा और हमें रमज़ान में

पहुंचा दे।’

दरअसल, रोजा हमें आत्मसंयम का अभ्यास कराता है, जिससे हम बेहतर इंसान बनते हैं। हमारा तन-मन स्वस्थ

होता है। पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद ने फरमाया है, ‘रोज़ा रखो, स्वस्थ रहोगे। यह ज़माने की मुसीबतों के लिए ढाल का काम करता है।’

रोज़ा अल्लाह के आदेशों में से अहम आदेश माना जाता है। अल्लाह तआला ने मुसलमानों पर रमज़ान के रोज़ों को फजऱ् (अनिवार्य) किया है, क्योंकि उसमें हमारे लिए अनगिनत लाभ हैं। रोज़े में जहां आत्मसंयम के कारण हमें शांति और आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं, वहीं आधुनिक विज्ञान भी इसके फायदों को स्वास्थ्यप्रद बताता है।

‘रमज़ान’ का अरबी भाषा में अर्थ होता है- ‘झुलसा देने वाला और जला देने वाला’। रोजे के दौरान हम आत्मसंयम

और अपने अच्छे कार्र्यों से सभी बुराइयों को जला देते हैं। अल्लाह ताला ने रोज़े का एक फायदा यह भी बताया है

कि इससे इंसान धीरे-धीरे परहेज़गार (संयमी) बनने लगता है। दिलों में लग चुकी जंग दूर हो जाती है और दिल साफ हो जाता है। इंसान का मन-मस्तिष्क साल भर की ग़ैर-ज़रूरी इच्छाओं और गुनाहों की स्याही से मैला-कुचैला हो जाता है।

रोज़ा इसी मैल और स्याही को दूर कर मनुष्य के अंतस को उज्ज्वल बनाने का प्रयास है। दरअसल, रोज़े के दरम्यान इंसान जब खाना-पीना छोड़ता है, तो उसकी ग़ैर-जरूरी ख़्वाहिशें ख़ुद ही खत्म हो जाती हैं। इस तरह रोज़ेदार गुनाहों की तरफ क़दम बढ़ाने से रुक जाता है। खाने-पीने और गैर-ज़रूरी इच्छाओं पर काबू पाने से उसकी

आत्मा और सांसों में ताज़गी पैदा होती है, जिससे इबादत में आनंद आता है।

इंसान के मन-मस्तिष्क को आध्यात्मिक शांति मिलती है। वह ख़ुद को चुग़ली, झूठ, चोरी और बुरी नज़र डालने आदि से बचने को आदत बना लेता है। इस प्रकार अगर वही रोज़ादार थोड़ी-सी और कोशिश करे तो उसे साल के शेष दिनों में भी इसी आदत को परवान चढ़ाने का अच्छा मौका मिल जाता है। चूंकि यह सब कोशिशें अल्लाह के प्यार और उसकी खुशी हासिल करने के लिए की जाती हैं, इसलिए अल्लाह भी रोज़ेदार को विशेष रूप से अपनी ओर से पुरस्कार और सवाब (पुण्य) से नवाज़ते हैं। वे पहले दस दिनों में रहमत (दया) दूसरे दस दिनों में मग़फिरत (माफी) और आख़िरी दस दिनों में निजात (मुक्ति) अता करते हैं।

रोज़ा हमारी इच्छाओं पर स्वाभाविक नियंत्रण, भूख-प्यास की शिद्दत का मुकाबला करने, आत्मसंयम, इबादत पर आस्था और मन मस्तिष्क को शांति प्रदान करता है।


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