ब्रज की होली
बसंत ऋतु के आगमन के साथ ही ऐसा प्रतीत होता है मानो संपूर्ण सृष्टिï ने लाल-गुलाबी और हरे-पीले रंगों से होली खेली हो। भगवान श्रीकृष्ण ने जब पृथ्वी पर अवतार लिया था तो शायद प्रकृति की सुंदरता से ही प्रेरणा लेकर उन्होंने गोप-गोपियों के संग खूब होली खेली होगी।
बसंत ऋतु के आगमन के साथ ही ऐसा प्रतीत होता है मानो संपूर्ण सृष्टिï ने लाल-गुलाबी और हरे-पीले रंगों से होली खेली हो। भगवान श्रीकृष्ण ने जब पृथ्वी पर अवतार लिया था तो शायद प्रकृति की सुंदरता से ही प्रेरणा लेकर उन्होंने गोप-गोपियों के संग खूब होली खेली होगी।
प्रचलित कथाएं
ब्रज मंडल में होली के संबंध में ऐसी कथा प्रचलित है कि एक बार कान्हा जी ने यशोदा मइया से अपने श्याम और राधा रानी के गौर वर्ण होने का कारण पूछा तो उन्होंने हंसते हुए कहा कि जाओ तुम राधा के मुख पर कोई भी रंग लगा दो तो वह उसी रंग की हो जाएगी। अगले दिन श्याम-सुंदर ने रंगों की बाल्टी राधा जी पर उड़ेल दी। ऐसा करने पर राधा जी अपनी सखियों के साथ लट्ठ लेकर उनके पीछे दौड़ीं। श्रीकृष्ण और गोपिकाओं की इसी ठिठोली को याद करते हुए उसी समय से मथुरा, वृंदावन, बरसाने आदि स्थानों पर लोग लट्ठमार होली खेलते आ रहे हैं। फाल्गुन शुक्ल अष्टïमी से पूर्णिमा तक आठ दिनों के लिए होलाष्टïक मनाया जाता है। इस दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित होते हैं। कई प्रदेशों में होलाष्टïक शुरू होने पर एक पेड़ की शाखा काटकर उसमें रंग-बिरंगे कपड़ों के टुकड़े बांध दिए जाते हैं और उस शाखा को जमीन में गाड़ दिया जाता है। फिर उसी के नीचे होलिका-दहन किया जाता है। मथुरा, वृंदावन, गोकुल, फलेन, नंदगांव और बरसाने का क्षेत्र ब्रजभूमि कहलाता है। इन सभी स्थानों पर लगभग दो सप्ताह तक होली मनाई जाती है। बरसाना राधा रानी की
जन्मभूमि है। यहां की लट्ठमार होली पूरे देश में प्रसिद्ध है। इस दिन नंदगांव के युवक बरसाने गांव आते हैं। फाल्गुन शुक्ल नवमी को ब्रज में बरसाने की लट्ठमार होली होती है। नंदगांव के कृष्ण सखा (हुरिहारे) बरसाने में होली खेलने आते है, जहां राधा जी की सखियां लाठियों से उनका स्वागत करती हैं। सखा गण ढालों से अपनी रक्षा करने का प्रयास करते हैं। इस अनूठी होली को देखने के लिए हज़ारों लोग बरसाने पहुंच जाते हैं।
रंगोत्सव की धूम
फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष एकादशी से वृंदावन के अधिकांश मंदिरों में रंगोत्सव प्रारंभ हो जाता है। इसीलिए इसे रंगभरी एकादशी का नाम दिया गया है। इस दिन से संपूर्ण ब्रज मंडल होली के रंगों में सराबोर हो जाता है। फाग और होली के रसियों का गायन ब्रज के गांव-गांव में गूंजने लगता है। एक तो ब्रजवासी स्वाभाव से ही मस्त होते हैं और उस पर बसंत की मादकता उनकी मस्ती को और बढ़ा देती है।
फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनु का जन्म भी हुआ था। इसलिए इसे मन्वादितिथि भी कहते हैं। हमारे कृषि प्रधान समाज में इस दिन खेत के नए अन्न से यज्ञ में हवन करने और उसे नैवेद्य के रूप में भगवान को अर्पित करने की भी परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि इससे परिवार में ख़्ाुशहाली बनी रहती है। वस्तुृत: होली सुख-समृद्धि के साथ हर्षोल्लास एवं मित्रता का भी पर्व है। इसीलिए लोग इस दिन सारे भेदभाव भुला कर प्रेम के रंगों में सराबोर हो जाते हैं।
हमारे अमूल्य धरोहर
सन्मार्ग दिखाता है भविष्य पुराण
भविष्य पुराण एक विशाल ग्रंथ है। इस महाग्रंथ में भूत-भविष्य की ऐतिहासिक घटनाओं, भाषा-संस्कृति, कला, राजनीति, खगोल-भूगोल सहित कई विद्याओं का समावेश है। पुण्यार्जन की दृष्टिï से इसमें अनेक प्रकार के दानों की विधियों का विस्तृत विवरण किया गया है। यह महापुराण भावी पीढ़ी का मार्ग प्रशस्त करता है। भविष्य महापुराण में सभी व्रतों, उत्सवों, यज्ञ एवं हवन का उल्लेख मिलता है। इस ग्रंथ में समस्त कर्मकांडों का विस्तृत और क्रमबद्ध विवरण दिया गया है। किसी भी पुराण को महापुराण की श्रेणी में तभी रखा जाता है, जब उसमें इन पंच लक्षणों का समावेश हो- सर्ग (सृष्टिï), प्रतिसर्ग (प्रलय और उसके बाद की सृष्टिï), वंश, मन्वन्तर तथा वंशानुचरित (सूर्य, चंद्र, कश्यप, दक्ष, आदि के वंशों का संपूर्ण विवरण)। वर्तमान समय में भविष्य महापुराण के कुल चार पर्व हैं -ब्राह्मï, मध्यम, प्रतिसर्ग तथा उत्तरपर्व। पुराणों की सूची में इस महापुराण को नौंवा स्थान प्राप्त है। भविष्य महापुराण की विषय सामग्री इतनी रोचक है कि लोग सहज ही इसकी ओर आकृष्टï हो जाते हैं। यह पुराण भविष्य की बातों को संजोए हुए है और हमें सही दिशा प्रदान करता है। अत: अध्यात्म और कला-संस्कृति में अभिरुचि रखने वाले लोगों को इसका अध्ययन जरूर करना चाहिए।