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देवउत्थान एकादशी

आखिरकार चार माह के इंतजार के बाद नारायण भगवान के जागने का समय आ गया है। 13 नवंबर को देवउत्थान एकादशी के बाद थमे हुए बैंड बाजे और शहनाई गूंजने लगेंगी, परंतु जिले में देवउत्थान एकादशी का अपना ही महत्व है। लोग इसे बड़ी दीपावली के नाम से पर्व के रूप में पारंपरिक ढंग से मनाते हैं। लोग दीयों से घर के आंगन को रोशन कर देते हैं और दीपावली की तरह आतिशबाजी कर भगवान के जागने का जश्न मनाते हैं।

By Edited By: Published: Wed, 13 Nov 2013 11:49 AM (IST)Updated: Wed, 13 Nov 2013 11:49 AM (IST)
देवउत्थान एकादशी

पलवल। आखिरकार चार माह के इंतजार के बाद नारायण भगवान के जागने का समय आ गया है। 13 नवंबर को देवउत्थान एकादशी के बाद थमे हुए बैंड बाजे और शहनाई गूंजने लगेंगी, परंतु जिले में देवउत्थान एकादशी का अपना ही महत्व है। लोग इसे बड़ी दीपावली के नाम से पर्व के रूप में पारंपरिक ढंग से मनाते हैं। लोग दीयों से घर के आंगन को रोशन कर देते हैं और दीपावली की तरह आतिशबाजी कर भगवान के जागने का जश्न मनाते हैं।

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चार माह बाद जागेंगे देवता

हिंदु संस्कृति में शादी-विवाह हो या फिर धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन देवउत्थान एकादशी इसकी प्रमुख कड़ी है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसे देव उठान ग्यास के नाम से पुकारते हैं। इससे करीब चार माह पूर्व देव सोमनी ग्यास आती है, उसके बाद से ही हिंदु समाज में शादी-विवाह बंद हो जाते है। इस साल 17 जुलाई को देव सोमनी ग्यास थी। इस चार महीने के अंतराल में किसी भी विवाह का आयोजन नहीं होता है। ऐसी धारणा है कि इस दौरान देवता नींद में होते है, जिन्हे देवउत्थान एकादशी पर पूजा अर्चना से जगाया जाता है।

मुख्य द्वार पर बनाई जाती है प्रतिमा और पद्चिन्ह

ग्रामीण शाम को घरों में साफ-सफाई व कच्चे घरों में गोबर का चौका लगाकर घर के मुख्य द्वार पर सफेद सेलखड़ी व गेरु (महावर) से लक्ष्मी व नारायण भगवान के पांव अंकित करते हैं, जिसको लेकर उनका मानना है कि भगवान उस दिन उनके घरों में प्रवेश करेगे। परिवार के अन्य सदस्यों के भी पांव बनाए जाते है। उसके साथ ही मुख्य द्वार पर लाल सेलखड़ी से नारायण भगवान की प्रतिमा बनाई जाती है और कई अन्य देवी देवताओं के पद्चिन्ह अंकित किए जाते है। साथ ही महिलाएं एकत्र होकर समूह में लोकगीत गाकर अपनी पूजा अर्चना करती है।

आपस में दीपक भी जाते हैं बांटे

शाम को घरों में दीपक जलाकर अपने खानदान के अन्य परिवारों में बांटे जाते है और रात घरों में दीप जलाकर आतिशबाजी भी की जाती है। कार्तिक मास में आने के कारण इसे प्रबोधनी एकादशी के नाम से जाना जाता है, जिसके चलते शादी-विवाह मुहूर्त निर्धारित किए जाने लगे है और एक बार फिर शादियों का दौर शुरू होने वाला है।

सुरेद्र चौहान

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