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ऋतुराज के स्वागत का पर्व बसंत पंचमी

वसंत ऋतु के आगमन के साथ ही चारों ओर उल्लासमय वातावरण छा जाता है और इसी के स्वागत में वसंतोत्सव मनाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है।

By Edited By: Published: Thu, 14 Feb 2013 12:42 PM (IST)Updated: Thu, 14 Feb 2013 12:42 PM (IST)
ऋतुराज के स्वागत का पर्व बसंत पंचमी

वसंत ऋतु के आगमन के साथ ही चारों ओर उल्लासमय वातावरण छा जाता है और इसी के स्वागत में वसंतोत्सव मनाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है।

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प्रचलित पौराणिक कथा

भगवती सरस्वती समस्त ज्ञान-विज्ञान, कला और संगीत की अधिष्ठात्री शक्ति हैं। कुछ धर्मग्रंथों में वसंत पंचमी को इनका आविर्भाव दिवस माना गया है। भगवती सरस्वती के प्राकट्य की तिथि होने के कारण वसंत पंचमी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इससे संबंधित कथा यह है कि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने जब अपनी सृष्टि को मूक और नीरस देखा, तब उन्होंने मंत्र पढ़कर अपने कमंडल का जल पृथ्वी पर छिड़क दिया। इसके फलस्वरूप धरती पर सर्वत्र हरियाली छा गई। हरे-भरे पेड़-पौधों से सुशोभित उस धरा पर एक परम तेजोमयी देवी प्रकट हो गई, जिनके हाथों में वीणा एवं पुस्तक थी। ब्रह्माजी ने उन्हें अपनी वीणा के माध्यम से सृष्टि की मूकता तथा पुस्तक द्वारा अज्ञान के अंधकार को दूर करने का कार्यभार सौंपा। तदनुसार देवी सरस्वती वाणी और विद्या की स्वामिनी बनकर सृष्टि के विकास में तत्पर हो गई।

इतिहास में प्रसिद्ध अनेक विद्वानों और संगीतज्ञों की आराध्य देवी सरस्वती ही थीं, जिनकी कृपा से वे विश्वविख्यात हुए। सरस्वती माता की आराधना से ही कवित्व, साहित्य-सृजन, संगीत में निपुणता तथा वाक्पटुता एवं तर्कशक्ति प्राप्त होती है। महर्षि वाल्मीकि को भगवती सरस्वती की अनुकंपा से ही आदिकवि बनने का गौरव प्राप्त हुआ। इनके अनुग्रह से ही महर्षि वाल्मीकि द्वारा संसार के सर्वप्रथम महाकाव्य रामायण की रचना हुई।

द्वापरयुग में जब महर्षि वेदव्यास ने पुराणों की रचना का संकल्प लिया, तब उन्होंने सरस्वती जी की आराधना की। ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखा है कि योगेश्वर श्रीकृष्ण ने सरस्वती जी को यह वरदान दिया था कि माघ-शुक्ल-पंचमी के दिन तथा विद्यारंभ करते समय देव-दानव, यक्ष-गंधर्व, नर-नारी सभी तुम्हारी पूजा करेंगे। जगद्गुरु श्रीकृष्ण ने स्वयं भी सरस्वती जी की अर्चना की। इस प्रकार वसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा की शुरुआत हुई। सरस्वती देवी की ऐसी महिमा है कि इनकी पूजा से मंदबुद्धि भी प्रकांड विद्वान बन सकता है। कालिदास इनके काली रूप की आराधना करके महाकवि बन गए। इसीलिए सरस्वती पूजा प्रत्येक विद्यार्थी के लिए अनिवार्य है। भगवती सरस्वती केइन 12 नामों का उच्चारण अति शुभ फलदायी साबित होता है- 1. भारती 2. सरस्वती 3. शारदा 4. हंसवाहिनी 5. जगती 6. वागीश्वरी 7. कुमुदी 8. ब्रह्मचारिणी 9. बुद्धिदात्री 10. वरदायिनी 11. चंद्रकाति

12. भुवनेश्वरी।

श्रीपंचमी भी है यह त्योहार

शास्त्रों में वसंत पंचमी को श्रीपंचमी भी कहा गया है। श्री का तात्पर्य है- समृद्धि की अधिष्ठात्री लक्ष्मी। तंत्रशास्त्र में माघ शुक्ल पंचमी अर्थात वसंत पंचमी को लक्ष्मी-उपासना हेतु अतिशुभ बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि विष्णुप्रिया लक्ष्मी वसंत पंचमी के दिन प्रसन्न-मुद्रा में होती है। पूरे वर्ष में यही एक ऐसा दिन होता है, जब ये दोनों देवियां आपसी वैर भुलाकर लोक कल्याणार्थ एकचित्त होती हैं। इन दोनों देवियों की प्रिय तिथि होने के कारण वसंत पंचमी इनके मिलन का महापर्व बन गई है। अत: इस दिन दोनों के पूजन से विद्या के साथ सुख-समृद्धि की भी प्राप्ति होती है।

स्वयंसिद्ध मुहूर्त है यह

भारतीय ज्योतिषशास्त्र में वसंत पंचमी को अति शुभ मानते हुए, इसे स्वयंसिद्ध मुहूर्त घोषित किया गया है। यानी यह तिथि इतनी सशक्त है कि इस दिन कोई भी शुभ काम बिना विचारे किया जा सकता है। इसी विशिष्टता के कारण यह त्योहार युगों से भारतीय जनमानस में अनपूछे मुहूर्त के रूप में प्रतिष्ठित है। शादी, सगाई, तिलक, यज्ञोपवीत, मुंडन, गृहप्रवेश आदि सभी मांगलिक कार्य इस दिन बड़े विश्वास और उत्साह के साथ संपन्न होते हैं। वस्तुत: वसंत पंचमी अपने भीतर दिव्य ऊर्जा का अक्षय भंडार समेटे हुए है। अत: इस दिन किया गया कोई भी धार्मिक अनुष्ठान या शादी-ब्याह सफल और अति शुभ फलदायी साबित होता है।

माघी अमावस्या को क्यों रखते हैं मौन?

हिंदू धर्मग्रंथों में माघ को अति पवित्र मास माना गया है। इस महीने के अमावस के दिन खगोलीय दृष्टि से सूर्य और चंद्र एक ही राशि में स्थित होते हैं। सूर्य को आत्मा तथा चंद्र को मन का कारक ग्रह माना गया है। मन चंद्रमा के समान चंचल होता है। अपनी चंचल प्रवृत्ति के कारण मन साधना में विघ्न का कारण बनता है। मन पर आत्मा का अंकुश होने से ही कोई भी व्रत या अनुष्ठान पूर्ण हो सकता है। मन की इच्छाएं वाणी द्वारा मुखरित होती हैं। इसीलिए माघी अमावस्या के दिन मौन होकर गंगा स्नान करने का विधान बना है, ताकि इस दिन महा पुण्यदायक स्नान करते समय वाणी के द्वारा सकारात्मक ऊर्जा बाहर न निकले। ऐसी मान्यता है कि इससे व्यक्ति का तेज और पुण्य क्षीण नहीं होता।

संध्या टंडन

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