Mrs. Serial Killer Review: मनोज बाजपेयी और जैकलीन की 'मिसेज सीरियल किलर', कर देती है सभी उम्मीदों की हत्या
Mrs. Serial Killer Review नेटफ्लिक्स की नई फ़िल्म मिसेज सीरियल किलर अपने लेवल तक पहुंच पाती है या नहीं? आइए जानते हैं...
नई दिल्ली (रजत सिंह)। Mrs. Serial Killer Review: नेटफ्लिक्स साल 2020 में हिंदी के लिए ख़ूब कंटेंट ला रहा है। लेकिन मात्रा के चक्कर में गुणवत्ता गिरती जा रही है। 'हसमुख' के बाद अब 'मिसेज सीरियल किलर' आई है। मनोज बाजपेयी, जैकलीन फर्नांडिस और मोहित रैना जैसे एक्टर से सजी यह फ़िल्म 1 मई को रिलीज़ हुई। इस फ़िल्म को शिरीष कुंदर ने लिखा और डायरेक्ट किया है। आइए जानते हैं, यह किस हद तक आपका मनोरंजन कर पाती है...
कहानी
फ़िल्म की कहानी उत्तराखंड के आस-पास सेट की गई है। जहां इस बात से हड़कंप है कि लगातार लड़कियां गायब हो रही हैं। वह भी कुंवारी और गर्भवती लड़कियां। पुलिस ऑफ़िसर इमरान शाहिद (मोहित रैना) इस मामले में डॉक्टर मृत्युंजय मुर्खजी (मनोज बाजपेयी) को गिरफ्त़ार करता है। इसके बाद मृत्युंजय की पत्नी सोना (जैकलीन फर्नांडिस) उसको बचाने के लिए खुद लड़कियों को मारना शुरू करती है। अब सवाल है कि क्या वह अपने पति को बचा पाती है या नहीं?
क्या है ख़ास
पूरी फ़िल्म में एक ही खासियत नज़र आती है, वो है कहानी में ट्विस्ट। कहानी लगातार अपने रंग बदलती है। ऐसे में आप ट्विस्ट के भरोसे ही फ़िल्म को आखिरी तक देख पाते हैं। खूनी कौन है? का जवाब आखिरी में पता चलता है। कुल मिलकार हल्का-सा थ्रिल देखने को मिलता है। पुलिस वाले के किरदार में मोहित रैना की एक्टिंग भी ठीक लगती है।
कहां रह गई कमी
मिसेज सीरियल किलर फ़िल्म में कमियां खोजने की जरूरत नहीं पड़ती है। यह अपने आप लगातार सामने आती रहती हैं। कहानी की बात करें, तो यह बिलकुल बचकानी-सी लगती है। कभी भी आपको जोड़ नहीं पाती है। ना डायलॉग और ना ही मोनोलॉग, लेखन में कुछ भी बेहतर नहीं मिलता है। कहानी में थ्रिलर बनाते-बनाते उसका कॉमेडी बना दिया गया है।
एक्टिंग के मामले में जैकलीन फर्नांडिस बहुत निराश करती हैं। वह ना तो भाषा पर पकड़ बना पाती हैं और ना ही संवाद अदाएगी पर। उनके चहरे पर भाव बिलकुल भी नहीं आते हैं। वह बिलकुल ही सपाट (फीलिंगलेस) दिखती हैं। मनोज बाजपेयी भी निराश ही करते हैं। ऐसा लगता है कि वह मनोज बाजपेयी नहीं हैं , जो इससे पहले फैमिली मैन में नज़र आए हों। इसके अलावा छोटे-छोटे किरदारों को उतना मौका या मिला ही नहीं मिला है कि वह मामला बना पाएं।
निर्देशन की बात करें, तो यह सबसे कमजोर पार्ट है। कहानी उत्तराखंड में चल रही है और फ़िल्म देखकर लगता है कि सब कुछ में विदेश में घटित हो रहा हो। सब लोग फर्टाटेदार अंग्रेजी बोल रहे हैं। वहीं, मनोज बाजपेयी जैसे एक्टर्स की एक्टिंग ना करना पाना भी निर्देशक की बड़ी असफलता है। कहानी जितनी कमजोर है, उसे निर्देशन और भी ख़राब स्तर तक ले जाता है। कई सारे सीन आपको बेवजह लगते हैं? शिरीष इस मामले में पहले भी दो फ़िल्मों में निराश कर चुके हैं।
तकनीक के स्तर पर भी फ़िल्म काफी कमजोर है। कई जगह ऐसी एडटिंग की गई है, जो आपको परेशान करती है। ऐसा लगता है कि मामला थ्रिलर और सस्पेंस का नहीं, बल्कि हॉरर का है।आप इससे ही अंदाजा लगा सकते हैं कि एक सीन में मनोज बाजपेयी शेर की तरह मुंह निकलाते हैं। जहां आप हल्का चौंक जाते हैं और आपको लगता है कि कुछ हॉरर आने वाला है।
अंत में
अंत में बात यह है कि मिसेज सीरियल किलर एकदम किलर फ़िल्म है। किलर को यहां सीधे शब्दों में कहें, तो फ़िल्म आपकी सारे उम्मीदों और मनोरंजन की परत दर परत हत्या कर देती है। पौने दो घंटे की फ़िल्म आपको बहुत लंबी और ऊबाऊ लगती है।