फिल्मों में घुली ब्रज की मिठास
ब्रज की मीठी और मनभावन बोली ने फिल्मी दुनिया को भी रिझाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। फिल्म निर्माता शिव कुमार ने ब्रजभूमि और लल्लूराम फिल्में बनाईं तो उनकी शूटिंग आगरा में भी विशेष रूप से की गई।
आगरा, जागरण संवाददाता। ब्रज की मीठी और मनभावन बोली ने फिल्मी दुनिया को भी रिझाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। फिल्म निर्माता शिव कुमार ने ब्रजभूमि और लल्लूराम फिल्में बनाईं तो उनकी शूटिंग आगरा में भी विशेष रूप से की गई।
ब्रज भाषा की इन फिल्मों के सुरीले गीत आज भी मिठास बिखेरते हैं। 1982 में बनी ब्रजभूमि में अभिनेता राजा बुंदेला और अभिनेत्री अलका नूपुर थे। निर्माता निर्देशक शिवकुमार ने खुद भी अभिनय किया था। फिल्म के डायलॉग ब्रज भाषा में लिखे गए थे। जिसमें ब्रज क्षेत्र के कॉस्ट्यूम अंगरखा, सूरदास वाली टोपी आदि का उपयोग किया गया था। इसके गीतों को सुर विख्यात गायक रवींद्र जैन ने दिया। इस फिल्म का गीत-चारों धामों से निराला ब्रजधाम, दर्शन कर लो जी। लोगों की जुबान पर है। इस फिल्म में सावन का गीत झूला तो पड़ गये अमुवा की डार पै, सर्वाधिक लोकप्रिय रहा।
दूसरी फिल्म 1985 में लल्लूराम भी शिवकुमार ने आगरा में ही बनाई। जिसमें ब्रज की संस्कृति को प्रदर्शित किया गया था। इसमें कॉमेडी भी थी। इसमें बैजयंती च्यवन, गजेंद्र चौहान, गौरी, अरुण गोविल, अरुणा ईरानी, सत्येंद्र कपूर आदि की भूमिकाएं थीं। इसकी शूटिंग आगरा क्लब और अन्य कई होटलों में की गयी थी।
अंग्रेजी में हुई डब फिल्म
फिल्म ब्रज भूमि भारत में तो पसंद की ही गयी, उसकी डबिंग अंग्रेजी में हुई, जिसे विदेशों में भेजा गया। 15 हफ्ते तक चली थी आगरा के सिनेमाघरों में 1982 में ब्रज भूमि पहले अंजना टॉकीज में एक-दो हफ्ते लगी, उसके बाद वह जसवंत में पहुंच गयी। टॉकीज के स्वामी मनोज बोहरा अतीत को याद करते हुए बताते हैं कि उन दिनों इस फिल्म का क्त्रेज ज्यादा था। इतनी भीड़ होती थी कि बहुत से दर्शकों को मायूस होकर लौटना पड़ता था। यह फिल्म 15 सप्ताह तक लोगों ने देखी थी।
सूर को ताजमहल से जोड़ने की कोशिश
करीब पांच दशक पहले सूरकुटी में फिल्म चिंतामणि सूरदास की शूटिंग हुई थी। जिसमें डायरेक्टर ने सोचा था कि ताजमहल को भी जोड़ा जाये, लेकिन उनकी इच्छा पूरी नहीं हो सकी। वजह यह थी कि सूरदास के जमाने में ताजमहल नहीं था। तब सूर स्मारक मंडल के तत्कालीन महामंत्री स्व. डॉ. सिद्धेश्वरनाथ से सुझाव दिया किफतेहपुर सीकरी को इस फिल्म में शामिल किया जा सकता है। इसके बाद पूरी टीम सीकरी के दीवान-ए-आम में गई, जहां पर हरिदास की उस रचना की शूटिंग की। जिसमें उन्होंने सुनाया-मोहे सीकरी से का काम।
इस फिल्म के हीरो विक्टर बनर्जी थे, वे पहले फिल्म स्टार थे, जिन्होंने सूर अभ्यारण्य का अवलोकन किया। उन्होंने जब वहां तितलियों को देखा तो कहा कि यहां तितलियों का गार्डन होना चाहिये, क्योंकि तितलियां बागों के विकास में काफी सहयोगी होती हैं।
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