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भागलपुर में हुई थी दादामुनी की शोभा से आंखें चार

हिंदी सिनेमा जगत के सौ वर्षो के इतिहास में लगभग सात दशकों तक छाए रहने वाले प्रख्यात सिने अभिनेता दादा मुनी अशोक कुमार तथा पा‌र्श्व गायन, अभिनय से लेकर फिल्म निर्माण तक में योगदान देकर हिंदी चलचित्र का मील का पत्थर माने जाने वाले किशोर कुमार का भागलपुर से गहरा रिश्ता था।

By Edited By: Published: Mon, 23 Apr 2012 12:32 PM (IST)Updated: Mon, 23 Apr 2012 12:32 PM (IST)
भागलपुर में हुई थी दादामुनी की शोभा से आंखें चार

भागलपुर। हिंदी सिनेमा जगत के सौ वर्षो के इतिहास में लगभग सात दशकों तक छाए रहने वाले प्रख्यात सिने अभिनेता दादा मुनी अशोक कुमार तथा पा‌र्श्व गायन, अभिनय से लेकर फिल्म निर्माण तक में योगदान देकर हिंदी चलचित्र का मील का पत्थर माने जाने वाले किशोर कुमार का भागलपुर से गहरा रिश्ता था।

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सिने जगत की इन बेजोड़ हस्तियों के मामा राज परिवार से जुड़े शानू बनर्जी थे, जो भागलपुर के आदमपुर मोहल्ले में राजबाटी नामक हवेली में रहते थे। गर्मी की छुट्टियों में अपनी मां के साथ युवा अशोक कुमार व बालक किशोर कुमार अपनी मां के साथ अक्सर वहां आया करते थे और बगीचे जा कर छककर आम का मजा लेते थे। दादा मुनी शोभा बनर्जी से पहली बार यहां के मसाकचक मोहल्ला स्थित उनके घर पर मिले थे। बाद में उन दोनों का प्रेम इतना गहरा हो गया कि वे विवाह सूत्र में बंध गए। इस तरह दादामुनी का ससुराल भी भागलपुर ही है।

मसाकचक मोहल्ले में दादामुनी के चचेरे साले सोमनाथ बनर्जी बताते हैं कि उनके पूर्वज 1920 में ही भागलपुर में बस गए थे। मसाकचक डाकघर के समीप रहने वाले एसबीआई के अवकाशप्राप्त कर्मी श्री बनर्जी बताते हैं कि उनके दादा कैप्टन डॉ. सचीन्द्रनाथ बनर्जी ब्रिटिश सेना में डॉक्टर थे। उन्हें भागलपुर भा गया और उन्होंने 1920 में यहां जिला स्कूल केसामने जमीन खरीदी और 1925 में यहां हवेली बनवाई।

श्री बनर्जी बताते हैं कि यहां उनके पिता रामचंद्र बनर्जी, उनकी माता श्रीमती विभा देवी, उनके बड़े चाचा, उनकी जेठी मां (बड़ी चाची) सुरोमा देवी आदि परिजन रहते थे। बड़े चाचाजी रेलवे में गार्ड थे। इसलिए वे अक्सर मधुपुर में रहते थे। पर वे अक्सर शोभा दी के साथ यहां आते थे और वह यहां रूक जाती थीं। मां बताती थीं कि मामा के घर आने पर अशोक कुमार अक्सर हमारे घर आते थे। यहीं वे शोभा दी से पहली बार मिले थे और फिर वे अक्सर शोभा दी से मिलने आने लगे। उनकी शादी कोलकाता में बड़ी धूमधाम से हुई थी।

वे बताते हैं किउस समय किशोर कुमार लगभग 8-10 साल केथे। 1977 में जब वे अपनी जेठी मां व अशोककुमार की सास सुरोमा देवी के साथ उनके मुंबई केचेंबूर स्थित मकान में गए थे तब दादामुनी ने उन्हें गर्मी की छुट्टियों में किशोर कुमार के साथ सुल्तानगंज के एक बगीचे में जमकर आम खाने का किस्सा सुनाया था। कहा था कि वे लोग रेलगाड़ी से भागलपुर से सुल्तानगंज जाते थे। इस दौरान वे हर स्टेशन की गिनती करते जाते थे।

फिर वे एकाएक बोल उठे -सुल्तानगंज, अकबरनगर, भागलपुर। फिर पूछ उठे-की रे बाबलू (सोमनाथ के घर का नाम)आमी ठीक बोले छी तो। तब सोमनाथ बोले- हें दादामुनी आपनी ठीक बोले छेन। (हां दादामुनी आपने ठीक ही कहा है।) मुंबई में उन्होंने देखा कि दादामुनी भोजन के बाद उबले हुए कद्दू के चंद छोटे टुकड़े अवश्य लेते थे। वे बताते थे कि कद्दू खाने से लीवर दुरुस्त रहता है। दादामुनी की निकट संबंधी व तिलकामांझी भागलपुर विवि की पूर्व परीक्षा नियंत्रक डॉ. रत्ना मुखर्जी बताती हैं कि दादामुनी को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया। लेकिन उनके जन्मशताब्दी वर्ष पर न तो सरकार की ओर से कोई समारोह हुए और न उस अभूतपूर्व कलाकार की याद में डाक टिकट ही जारी किया गया है। उन्होंने बताया कि उन्होंने इस संबंध में केंद्र सरकार को पत्र लिखा है।

विकास पाण्डेय

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