Move to Jagran APP

.और हीराबाई बन गई वहीदा

फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी पर फिल्म बनाने में गीतकार शैलेंद्र की अहम भूमिका थी। वे इस फिल्म के सर्वेसर्वा बने। रेणु ने अपनी कहानी मारे गए गुलफाम पर फिल्म बनाने के लिए दोबारा कलम छुआ। उन्हें तब तक यह बात नहीं मालूम थी कि फिल्मी दुनिया में किसी कहानी को नया रूप देना कितना आसान या कितना कठिन होता है।

By Edited By: Published: Fri, 27 Jul 2012 11:01 AM (IST)Updated: Fri, 27 Jul 2012 11:01 AM (IST)
.और हीराबाई बन गई वहीदा

फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी पर फिल्म बनाने में गीतकार शैलेंद्र की अहम भूमिका थी। वे इस फिल्म के सर्वेसर्वा बने। रेणु ने अपनी कहानी मारे गए गुलफाम पर फिल्म बनाने के लिए दोबारा कलम छुआ। उन्हें तब तक यह बात नहीं मालूम थी कि फिल्मी दुनिया में किसी कहानी को नया रूप देना कितना आसान या कितना कठिन होता है।

loksabha election banner

शैलेंद्र जब उनसे इस कहानी के बारे में और उसे फिल्मी जामा पहनाने की बात करते तो वे परेशान हो जाते थे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि कहानी कहां से शुरू करें और कैसे? इस काम के लिए उन्हें कलम पकड़े-पकड़े महीनों निकल गए और कोई काम आगे नहीं बढ़ा। हां, रेणु ने अपनी कहानी का नया नाम शैलेंद्र को सुझाया और वह तीसरी कसम पर आकर फाइनल हो गया, लेकिन बाकी काम जहां पड़ा था वहीं रह गया। दोनों के बीच जब बात हुई तो शलेंद्र से रेणु ने बताया कि परेशानी क्या है। दरअसल, परेशानी इस बात की थी कि उन्हें कहानी की मुख्य चरित्र यानी हीरोइन का ध्यान इस भूमिका के उपयुक्त नहीं आ रहा था। जब इस फिल्म के लिए हीरोइन की बात सोची जा रही थी, तब जो हीरोइनें कहानी के हिसाब से पसंद थीं वे जरूरत से ज्यादा व्यस्त थीं या कोई अपने अभिभावकों के चंगुल में फंसी थीं। तमाम हीरोइनों को पसंद करने के बाद जब वे इस किरदार के लिए हां नहीं कर सकीं तो अंत में कहानी गई वहीदा रहमान के पास।

उल्लेखनीय है कि तीसरी कसम की हीरोइन यानी मुख्य महिला चरित्र हीराबाई की भूमिका अन्य हीरोइनों के सामने जाते हुए मीना कुमारी के पास भी गई। उन्होंने जब कहानी पढ़ी तो इस रोल को करने का उनका मन बन गया। उनकी इच्छा पूरी थी कि वे इस रोल को करें। लेकिन ऐसा हो न सका। मीना कुमारी को इस बात का आजीवन अफसोस रहा कि वे तीसरी कसम की हीराबाई नहीं बन सकीं। तब का वक्त ऐसा था जब उनका सारा काम उनके पति के आदेश से तय होता था। वे उनके पति तो थे ही, उस समय के एक बड़े निर्माता-निर्देशक भी थे। यही वह वक्त था जब मीना कुमारी और उनके पति कमाल अमरोही में बन नहीं रही थी और कमाल ने अपनी दूसरी बीवी यानी मीना कुमारी को अपने एक कड़क दोस्त, जिसे मीना का पीए कहा जाता था, के हवाले कर रखा था। मीना उसी के इशारे पर चलती थीं और जो कमाल कहते थे, वही करती थीं।

मीना कुमारी हीराबाई का रोल दिल से करने के लिए तैयार थीं। इस फिल्म के बारे में जब शैलेंद्र और फिल्म के निर्देशक बासु भट्टाचार्य बात करने के लिए कमाल अमरोही के पास गए तो उन्होंने नौकर से कहलवाया कि साहब घर पर नहीं हैं। दोनों वापस आ गए। इन दोनों ने इस बारे में ज्यादा नहीं सोचा और अगले दिन फिर कमाल के घर गए। वे उस दिन मिले और बात की। बातचीत में शूटिंग की बात चली तो पता चला कि फिल्म की शूटिंग, इसकी वास्तविक लोकेशन पूर्णिया यानी बिहार में होनी है। उन्होंने सोचा कि यह तो कतई संभव नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि मीना से उनके रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे थे, ऐसे में उन्हें बाहर शूटिंग के लिए महीनों के लिए कैसे भेजते? उन्होंने साफ कह दिया कि वे वहां नहीं जाएंगी, अगर आप यहां सेट लगाकर शूटिंग करें, तो सोच सकता हूं।

शैलेंद्र और बासु भट्टाचार्य ने इस बारे में सोचा तो बात यही निकली कि रीयल लोकेशन यानी पूर्णिया के मेले का और वहां के तमाम सीन जो कहानी में अहमियत रखते थे, उन्हें दूसरी जगह शूट करना सही नहीं होगा। यह सोचकर दोनों ने तय किया कि दूसरी हीरोइन को ही देखा जाए। मीना को बाद तक इस बात का पछतावा रहा कि काश, वे कमाल से पहले ही अलग हो जातीं, तो शायद एक और खूबसूरत फिल्म तीसरी कसम उनकी झोली में होती। कमाल अमरोही की मना करने के बाद बासु दा और शैलेंद्र ने कई हीरोइनों के बारे में सोचा। उन्होंने फिल्मों में तबायफ बनी तमाम हीरोइनों को अपने दिमाग में लाकर हीराबाई से जोड़ा। आखिर में प्यासा की गुलाबो यानी वहीदा रहमान ने इन दोनों की तलाश को खत्म कर दिया। वे इस रोल के लिए चुन ली गई।

अब बारी थी कहानी के मुख्य पुरुष चरित्र की यानी हीरामन की शूटिंग के लिए लोकेशन पर आने की, जिसके लिए राजकपूर को चुना गया था। वे बैलगाड़ी हांकने की तमन्ना छोड़ बंबई से लंदन और लंदन से स्विट्जरलैंड की ओर उड़ने में तल्लीन थे। तब तक तीसरी कसम की चर्चा आरंभ हुए तीन वर्ष से अधिक बीत गए थे और रेणु के गांव वाले प्रतीक्षा करते रह गए कि कब हीरामन नामक वह गाड़ीवान अपनी बैलगाड़ी में किसी सुंदरी हीराबाई को बैठाकर गीत गाते हुए उनकी सुनसान सड़कों से गुजरेगा। हुआ भी ऐसा ही, पूर्णिया के फारबिसगंज की सड़कों से गाड़ीवान हीरामन हीराबाई को बैलगाड़ी में बैठाकर कभी नहीं निकला। वहां के निवासी उसकी प्रतीक्षा ही करते रह गए। दरअसल हुआ यह कि मध्य प्रदेश के बीना-सागर क्षेत्र के एक गांव में फारबिसगंज की नकली गलियों का निर्माण किया गया और वहां सिर्फ हीरामन ही नहीं, उसके साथ हीराबाई भी बैलगाड़ी में बैठीं।

फिल्म में काम कराते हुए शैलेंद्र, जो इस फिल्म के निर्माता थे, को काफी मुसीबतों को सामना करना पड़ा। कभी बासु दा को समय नहीं होता था तो कभी वहीदा को तो कभी राज कपूर को। वे तीनों से तालमेल बैठाने में परेशान हो गए। आखिर में फिल्म बनी, लेकिन उसकी कामयाबी देखने के लिए शैलेंद्र इस दुनिया में नहीं थे। फिल्म को शुरू में अच्छी सफलता नहीं मिली। हां, यह जरूर हुआ कि फिल्म को उस साल का नेशनल अवार्ड मिल गया। आज यह फिल्म क्लासिक फिल्मों में गिनी जाती है, लेकिन शैलेंद्र को इन बातों की कोई खबर नहीं मिली। वे तो अपनी फिल्म की कोई सफलता नहीं देख पाए। फिल्म के गीत-संगीत को कालजयी पहचान मिली, जिसमें शैलेंद्र के साथ-साथ शंकर-जयकिशन ने भी अच्छी चर्चा पाई। फिल्म में कुल दस गीत आ.. आज भी जा.. (सिंगर- लता मंगेशकर, गीतकार- शैलेंद्र), चलत मुसाफिर मोह लियो रे.. (सिंगर- मन्ना डे, गीतकार- शैलेंद्र), दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में.. (सिंगर- मुकेश, गीतकार- शैलेंद्र), हाय गजब कहीं तारा.. (सिंगर- आशा भोसले, गीतकार- शैलेंद्र), लाली लाली डोलिया में लाली रे दुल्हनिया.. (सिंगर- आशा भोसले, गीतकार- शैलेंद्र), मारे गए गुलफाम अजी हां.. (सिंगर- लता मंगेशकर, गीतकार- हसरत जयपुरी), पान खाए सैंया हमारो मलमल के कुर्ते.. (सिंगर- आशा भोसले, गीतकार- शैलेंद्र), सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास.. (सिंगर- मुकेश, गीतकार- शैलेंद्र) और सजनवां बैरी हो गए हमार.. (सिंगर- मुकेश, गीतकार- शैलेंद्र) थे। गीत आ.. आ भी जा.. फिल्म में दो बार है। ये सभी गीत सदाबहार गीतों में शुमार हैं।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.