अमजद की प्रेम कहानी का अंत
अमजद खान ने अपने लंबे अभिनय सफर में लगभग 200 फिल्मों में अभिनय किया। इसके साथ ही अंग्रेजी की एक फिल्म द परफेक्ट मर्डर में भी उन्होंने एक सेठ का किरदार निभाया। वे विलेन की भूमिका को दमदार तरीके से निभाने के लिए ख्यात हुए।
अमजद खान ने अपने लंबे अभिनय सफर में लगभग 200 फिल्मों में अभिनय किया। इसके साथ ही अंग्रेजी की एक फिल्म द परफेक्ट मर्डर में भी उन्होंने एक सेठ का किरदार निभाया। वे विलेन की भूमिका को दमदार तरीके से निभाने के लिए ख्यात हुए।
गब्बर सिंह के बाद वे उन्होंने मुकद्दर का सिकंदर और दादा फिल्म में गजब की भूमिका निभाई। वे अभिनेता तो संपूर्ण थे ही, क्योंकि अपने अभिनय जीवन में उन्होंने चरित्र, हास्य और खल भूमिकाओं को जीवंत किया, जिस कारण उन्हें कई बार फिल्म फेयर अवार्ड सहित कई अन्य अवार्ड भी मिले।
अमजद खान के बारे में माना जाता है कि वे राजनीति से दूर एक सच्चे और सीधे इंसान थे। अपने साथी कलाकारों में उनकी लोकप्रियता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि वे दूसरी बार सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष चुने गए थे। अमजद को निजी जिंदगी में जिस तरह शोले ने उठाया उसी तरह द ग्रेट गैम्बलर ने नीचे भी ला दिया। फिल्म द ग्रेट गैम्बलर की शूटिंग के दौरान गोवा से बंबई आते समय एक कार दुर्घटना में उनके शरीर की हड्डियां टूट गई। किसी तरह वे बच गए, लेकिन दवाइयों के असर ने उन्हें भारी भरकम बना दिया, जिस कारण वे कैमरे के लैंस में मिस फिट होने लगे। उन्हें काम भी कम मिलने लगा था। खासकर मोटे किरदार में उन्हें लिया जाता था।
जब अमजद खान के पास फिल्में कम हो गई तो अपने को व्यस्त रखने के लिए उन्होंने फिल्म निर्माण का काम शुरू किया। पहली फिल्म चोर पुलिस बनाई, लेकिन वह सेंसर में ऐसी फंसी की जब निकली, तो टुकड़े-टुकड़े होकर और वह कुछ खास न कर सकी। दूसरी फिल्म अमीर आदमी गरीब आदमी थी, जो कामगारों के शोषण पर आधारित थी। तीसरी फिल्म उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ बनानी चाही, जिसका नाम था लम्बाई-चौड़ाई लेकिन यह फिल्म सेट पर नहीं गई।
यह बात कम लोगों को पता है कि अमजद खान उस कल्पना अय्यर को प्यार करते थे, जिसने तमाम फिल्मों में बेबस-बेगुनाह नायिकाओं पर बेपनाह जुल्म ढाए। भारी डील-डौल वाले गोरे-चिट्टे अमजद और दुबली-पतली इकहरे बदन की सांवली कल्पना अय्यर में देखने-सुनने में खासा अंतर था, लेकिन दोनों में एक गुण समान था। दरअसल, दोनों रुपहले पर्दे पर भोले-भाले निर्दोष पात्रों पर बड़े जुल्म ढाते थे। ये दोनों लोगों की वाहवाही नहीं, हमेशा उनकी हाय बटोरते थे। अमजद की प्रेमिका कल्पना मॉडल थीं और एक मॉडल की मंजिल फिल्में ही होती हैं। इसलिए कल्पना ने मशहूर कॉमेडियन आई एस जौहर की फिल्म द किस में काम करके अपनी अभिनय-यात्रा आरंभ की।
गौरतलब है कि आई एस जौहर की यह फिल्म एक शॉर्ट फिल्म थी। जिस तरह अमजद या तो खलनायक के रोल में फिल्मों में आए या फिर कैरेक्टर रोल में, उसी तरह कल्पना भी कभी हीरोइन तो कभी नहीं बनीं, लेकिन खलनायिका का रोल उन्होंने भी खूब किया। फिल्मों में डांस आइटम भी किए। कुल मिलाकर कल्पना ने भी ढेर सारी फिल्में कीं। अमजद और कल्पना की पहली मुलाकात एक स्टूडियो में हुई थी, जहां दोनों अलग-अलग फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। फिर परिचय प्यार में बदला। कल्पना जानती थीं कि अमजद शादीशुदा हैं। उनकी पत्नी शकीला हैं, जो मशहूर लेखक अख्तर-उल-ईमान की बेटी हैं और उनके बच्चे भी हैं। यदि कल्पना अमजद की बीवी बनने के लिए जिद करतीं, तो यह शादी हो जाती, क्योंकि अमजद मुसलमान थे और कानूनन वे चार बीवियां रख सकते थे। कल्पना तो दूसरी ही होतीं, लेकिन दोनों ने जानबूझकर ऐसा नहीं किया, क्योंकि अगर दोनों शादी करते, तो भले ही उसे कानूनी मान्यता मिल जाती, लेकिन अमजद के भरे-पूरे परिवार में तूफान उठ जाता।
जब तक अमजद खान जीवित रहे, वे कल्पना के दोस्त और गाइड बने रहे। अमजद चाय के बेहद शौकीन थे। दिन भर में पच्चीस-तीस कप, वह भी चीनी के साथ। उनके फैलते शरीर की वजह चीनी का अधिक इस्तेमाल ही था। कल्पना ने उनकी इस आदत पर कंट्रोल करने की कोशिश की, लेकिन जब भी वे कहतीं, अमजद हंसी में बात उड़ा देते।
जब अमजद का इंतकाल हुआ, तो कल्पना उनके घर गई। कल्पना के कई शुभचिंतकों ने उनसे वहां न जाने की सलाह भी दी कि पता नहीं अमजद के परिवार वालों का क्या रवैया हो..? कहीं वे उन्हें भीतर आने ही न दें, लेकिन कल्पना ने यह सलाह नहीं मानी। कल्पना जानती थीं कि वे अमजद की ब्याहता नहीं हैं, लेकिन वे एक बेवा की तरह सोग मनाने वहां गई। अपने उस दोस्त को आखिरी सलाम करने गई, जिसके साथ उनका बेनाम रिश्ता था।
डिम्पल कपाडिया और राखी अभिनीत फिल्म रुदाली अमजद खान की आखिरी फिल्म थी। इस फिल्म में उन्होंने एक मरने की हालात में पहुंचे एक ठाकुर की भूमिका निभाई थी, जिसकी जान निकलते निकलते नहीं निकलती है। ठाकुर यह जानता है कि उसकी मौत पर उसके परिवार के लोग नहीं रोएंगे। इसलिए वह मातम मनाने और रोने के लिए रुपये लेकर रोने वाली रुदाली बुलाता है।
यह अलग बात है कि रुदाली के ठाकुर की मौत पर रोने वाला कोई नहीं था, लेकिन जब अमजद खान की मौत हुई, तो मात्र फिल्म इंडस्ट्री ही नहीं, समूचा संसार रोया था, क्योंकि उनकी चर्चित फिल्म शोले देश ही नहीं, विदेश में भी सराही गई थी। जिस तरह आज हॉलीवुड की फिल्मों की नकल हिंदी फिल्मों में हो रही है, शोले के इस गब्बर की नकल तब हॉलीवुड की कई बड़ी फिल्मों में देखी गई। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि गब्बर रूपी अमजद खान जरूर मर गया, मगर अमजद रूपी गब्बर न तो मरा है और न ही वह कभी मरेगा। वह तो एक किंवदंती की तरह अमर है..।
रतन
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