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फिल्‍म रिव्‍यू: 'वेटिंग' यानि सुकून के दो पल (3.5 स्‍टार)

पिछली कुछ फिल्मों में नसीरुद्दीन शाह की बेमतलब मौजूदगी से निराश उनके प्रशंसकों को 'वेटिंग' देखकर खुशी होगी। कल्कि कोचलिन के साथ उनकी कमाल की केमेस्‍ट्री बन पड़ी है।

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Fri, 27 May 2016 12:53 PM (IST)Updated: Fri, 27 May 2016 01:20 PM (IST)
फिल्‍म रिव्‍यू: 'वेटिंग' यानि सुकून के दो पल (3.5 स्‍टार)

अजय बह्मात्मज

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प्रमुख कलाकार- कल्कि कोचलिन, नसीरुद्दीन शाह
निर्देशक-अनु मेनन
स्टार-साढ़े तीन

दो उम्दा कलाकारों को पर्दे पर देखना आनंददायक होता है। अगर उनके बीच केमिस्ट्री बन जाए तो दर्शकों का आनंद दोगुना हो जाता है। अनु मेनन की 'वेटिंग' देखते हुए हमें नसीरूद्दीन शाह और कल्कि कोचलिन की अभिनय जुगलबंदी दिखाई पड़ती है। दोनों मिलकर हमारी रोजमर्रा जिंदगी के उन लम्हों को चुनतेे और छेड़ते हैं, जिनसे हर दर्शक अपनी जिंदगी में कभी न कभी गुजरता है। अस्पताल में कोई मरणासन्नी अवस्था में पड़ा हो तो नजदीकी रिश्ते्दारों और मित्रों को असह्य वेदना से गुजरना पड़ता है। अस्पताल में भर्ती मरीज अपनी बीमारी से जूझ रहा होता है और बाहर उसके करीबी अस्पताल और नार्मल जिंदगी में तालमेल बिठा रहे होते हैं।

अनु मेनन ने 'वेटिंग' में शिव और तारा के रूप में दो ऐसे व्यक्तियों को चुना है। शिव (नसीरूद्दीन शाह) की पत्नी पिछले छह महीने से कोमा में है। डॉक्टर उम्मीद छोड़ चुके हैं, लेकिन शिव की उम्मीद बंधी हुई है। वह लाइफ सपोर्ट सिस्टम नहीं हटाने देता। वह डॉक्टर को दूसरे मरीजों की केस स्टडी बताता है, जहां महीनों और सालों के बाद कोई जाग उठा। शिव की पूरी जिंदगी अपनी पत्नी के इर्द-गिर्द ही सिमटी हुई है। उधर नवविवाहिता तारा का पति रजत एक दुर्घटना में बुरी तरह से घायल हो गया है। उसकी ब्रेन सर्जरी होनी है। रजत के घरवालों को अभी तक रजत और तारा की शादी की भी जानकारी नहीं है और यह दुर्घटना हो जाती है।

तारा की दोस्ती ईशिता मुसीबत में साथ देने आती है, लेकिन अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से लौट जाती है। मुश्किल घड़ी में अकेली पड़ चुकी तारा गुस्से में कहती है कि ट्वीटर में मेरे पांच हजार से अधिक फॉलोअर हैं, लेकिन अभी कोई नहीं है। ट्वीटर और सोशल मीडिया की दुनिया से अनजान शिव ऐसे वक्त में उम्र की वजह से तारा का सहारा बनता है। अपने अनुभवों से वह उसे दुख सहने की तरकीबें भी बताता है। वे डाॅॅक्टरों का मजाक उड़ाते हैं। 'अगले अड़तालीस घंटे क्रिटिकल हैं' जैसे मेडिकल मुहावरों का मखौल उड़ाते हैं। वे एक-दूसरे के करीब आते हैं। अस्पताल के प्रतीक्षा कक्ष में हुआ उनका परिचय आजार एवं घर तक विस्तार पाता है। दोनों को एक-दूसरे से सुकून मिलता है। दुख की घड़ी में साथ रहने से उन्हें राहत मिलती है।

एक खास दृश्य में दोनों मौज-मस्ती में रात बिताते हैं। सुबह होने पर हम पाते हैं कि तारा का सिर शिव की गोद में है और वह निश्चिंत सोई हुई है। अनु मेनन शिव और तारा के संबंध और रिश्तों को परिभाषित नहीं करती हैंं। उनका मिलना एक संयोग है। फिल्मोंं के लेखक और निर्देशक ने संबंधों की अलग दुनिया रची है, जो मौत और जिंदगी के बीच धड़कती हुई एक-दूसरे का संबल बनती है। पिछली कुछ फिल्मों में नसीरुद्दीन शाह की बेमतलब मौजूदगी से निराश उनके प्रशंसकों को खुशी होगी। ऐसी जटिल भूमिकाएं नसीर के लिए सामान्य होती हैंं। वे बगैर लाउड या अंडरप्ले किए ही किरदार को उसकी संपूर्णता में पेश करते हैं। समर्थ अभिनेता की तुलना में कल्कि नई हैं, लेकिन वह ईमानदारी से तारा को निभाती हैं। कल्कि अपनी पीढ़ी की उन अभिनेत्रियों में हैं, जो हर भूमिका में कुछ विशेष कर जाती हैं। उनका अनोखा व्यक्तित्व और छवि उनकी मदद करता है। इस फिल्म के संवादों में हिंदी, अंग्रेजी और मलयालम भाषाओं का उपयोग हुआ है।

अवधि- 98 मिनट


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