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Sardar Ka Grandson Review: अर्जुन कपूर की फिल्म का आइडिया तो अच्छा लेकिन फिल्म कमजोर, देखने से पहले पढ़ लें रिव्यू

फिल्म में आपको भारत से कट्टर दुश्मनी पालने वाले पाकिस्तान को इस मूवी में काफी उदार दिखाया गया है। फिल्म में आपको देखने को मिलेगा कि कैसे एक्टर उसकी दादी का पुश्तैनी मकान उखाड़ कर ट्रॉलर पर ले जाने देता है।

By Priti KushwahaEdited By: Published: Wed, 19 May 2021 02:30 PM (IST)Updated: Wed, 19 May 2021 05:13 PM (IST)
Sardar Ka Grandson Review: अर्जुन कपूर की फिल्म का आइडिया तो अच्छा लेकिन फिल्म कमजोर, देखने से पहले पढ़ लें रिव्यू
Photo Credit - Arjun Kapoor Instagram Photo Screenshot

स्मिता श्रीवास्तेव, मुंबई। Sardar Ka Grandson Review: देश विभाजन के दंश को हिंदी सिनेमा ने अपनी कई कहानियों में पिरोया है। विभाजन की त्रासदी के समय अपना घर छोड़ने को विवश हुए लोग भले ही कहीं और जाकर बस गए, लेकिन पुश्‍तैनी घर की यादें उनके जेहन में रहीं। काश्‍वी नायर निर्देशित फिल्‍म सरदार का ग्रैंडसन की कहानी का आधार भी यही है। फिल्‍म की कहानी लॉस एंजिलिस में रह रहे अमरीक (अर्जुन कपूर) के ईदगिर्द है, जो अपनी गर्लफ्रेंड राधा (रकुल प्रीत सिंह) के साथ मिलकर पैकर्स एंड मूवर्स कंपनी संचालित करता है जिसका नाम जेंटली जेंटली है।

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हालांकि अमरीक कोई काम संजीदगी से नहीं करता है। अमृतसर में उसकी 90 वर्षीय दादी ,जिन्‍हें सब सरदार संबोधित करते हैं (नीना गुप्‍ता) की इच्‍छा लाहौर  स्थित अपने पुश्‍तैनी घर को देखने की है ,जहां से उनके दिवंगत पति की यादें जुड़ी हैं। दादी उम्रदराज जरुर हैं, लेकिन जिंदादिल और गर्ममिजाज हैं। पाकिस्‍तान उन्‍हें वीजा देने से इन्‍कार कर देता है। गर्लफ्रेंड से ब्रेकअप के बाद अमृतसर आया अमरीक अपनी दादी की इच्‍छा को किस प्रकार पूरा करता है और उसे किन समस्‍याओं का सामना करना पड़ता है फिल्‍म इस संबंध में है। 

कुछ समय पहले गूगल सर्च रीयूनियन का विज्ञापन आया था, जिसमें देश विभाजन की वजह से बचपन में बिछड़े दो दोस्‍तों के वृद्धावस्‍था में मिलन को देखकर हर किसी की आंखें नम हो गई थीं। सरदार का ग्रैंडसन की कहानी विभाजन के बाद अपना पुश्‍तैनी घर मिलने की  खुशी को उस तरह से बयां नहीं कर पाती है। हालांकि फिल्‍म का कांसेप्‍ट अच्‍छा है, लेकिन कमजोर पटकथा की वजह से यह फिल्‍म न तो फैमिली ड्रामा के तौर पर प्रभावित कर पाती है न ही भारत-पाकिस्‍तान संबंधों को समुचित तरह से एक्‍सप्‍लोर कर पाती है।

बतौर निर्देशक काश्‍वी की यह पहली फिल्‍म है। अनुजा चौहान के साथ उन्‍होंने फिल्‍म की कहानी लिखी है। यह संजीदा विषय है। बहुत सारे लोगों की भावनाएं इससे जुड़ी हैं, लेकिन वह किरदारों के भावनात्‍मक पहलुओं को उभार पाने में विफल रही हैं। देश विभाजन की त्रासदी को लेकर उन्‍हें गहन रिसर्च करने की आवश्यकता थी। फिल्‍म में विभाजन के बाद साइकिल से लाहौर से पंजाब आने का अदिति राव हैदरी (दादी का युवा किरदार निभाया है) का दृश्‍य बेहद बचकाना है। फिल्‍म में पुराने घर को लाहौर से अमृतसर लाने का दृश्‍य भी मार्मिक नहीं बन पाया है।    

कलाकारों की बात करें तो ब्रेकअप हो या अपनी दादी का पुश्‍तैनी घर तोड़ने से रोकने की कोशिश अर्जुन कपूर के हावभाव में कोई खास अंतर नजर नहीं आता है। रकुल प्रीत बस सुंदर दिखी हैं।  बुजुर्ग दादी की भूमिका में नीना गुप्‍ता हैं। उम्रदराज दिखाने के लिए उनका प्रोस्थेटिक मेकअप काफी बनावटी लगता है। नीना बेहतरीन अदाकारा हैं, कमजोर स्क्रिप्‍ट की वजह से उनकी प्रतिभा का समुचित प्रयोग नहीं हो पाया है। फिल्‍म में जॉन अब्राहम मेहमान भूमिका में हैं। वह फिल्‍म के सहनिर्माता भी है। वह भी खास प्रभाव नहीं छोड़ते।  

फिल्‍म रिव्‍यू : सरदार का ग्रैंडसन

प्रमुख कलाकार : अर्जुन कपूर, रकुल प्रीत सिंह, नीना गुप्‍ता, सोनी राजदान, कुमुद मिश्रा,

निर्देशक : काश्‍वी नायर 

अवधि : दो घंटे 19 मिनट

डिजिटल प्‍लेटफार्म : नेटफ्लिक्स

स्‍टार :  डेढ़


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