फिल्म रिव्यू: रिवॉल्वर रानी (2 स्टार)
लोगों ने ऐसी तमाम फिल्में देखी होंगी, जिनमें बताया गया कि राजनीति में रिश्तों की कोई अहमियत नहीं। साथ ही एक बार मामा कृष्ण, नहीं कंस ही साबित हुए और एक महिला की आकांक्षा क्या होती है, साई कबीर निर्देशित फिल्म 'रिवॉल्वर रानी' इन्हीं उपरोक्त बातों को दिखाती है।
मुंबई (रतन)।
निर्देशक: साई कबीर
प्रमुख कलाकार: कंगना रनौत, वीर दास और पीयूष मिश्रा।
संगीतकार: संजीव श्रीवास्तव
स्टार: दो
लोगों ने ऐसी तमाम फिल्में देखी होंगी, जिनमें बताया गया कि राजनीति में रिश्तों की कोई अहमियत नहीं। साथ ही एक बार मामा कृष्ण, नहीं कंस ही साबित हुए और एक महिला की आकांक्षा क्या होती है, साई कबीर निर्देशित फिल्म 'रिवॉल्वर रानी' इन्हीं उपरोक्त बातों को दिखाती है।
मार-काट, गोली-बारी और हत्याएं वैसे तो तिग्मांशु धूलिया की फिल्म की अहम कड़ी होते ही हैं और यह सब उनकी इस फिल्म में भी जमकर है, जो उबाऊ लगते हैं। फिल्म चंबल में सेट है, तो जाहिर है भाषा भी वहीं की रखी गई है। फिल्म का पहला हाफ पागलपंती से भरा है। फिल्म देखने के बाद यह महसूस होता है कि काश, कबीर ने आधी फिल्म ही बनाई होती।
काम की बात करें, तो फिल्म में चार किरदार ही छाए हैं। अलका दीदी यानी कंगना रनौत, मामा बल्ली यानी पीयूष मिश्रा, रोहन कपूर यानी वीर दास और विधायक भानू भैया यानी जाकिर हुसैन। इन चारों ने अपनी भूमिका को सही निभाया है, पर कंगना को इस रूप में देखकर अच्छी अनुभूति नहीं होती। वीर दास ग्रे शेड में ठीक लगे हैं। पीयूष मिश्रा एक गैंग के मुखिया के रूप में जमे हैं और जाकिर हुसैन की अदायगी सब से कमाल की हुई है। 'क्वीन' से कंगना ने जो नाम कमाया था, वह इस फिल्म के काम से नीचे आएगा।
जिन लोगों को पर्दे पर पटाखा फूटते देखना पसंद हो, वे देख सकते हैं, पर जिन्हें मनमोहक लोकेशन, सुकून देने वाले गीत-संगीत और खूबसूरत कंगना को देखने की चाहत हो, उन्हें निराशा हाथ लगेगी। फिल्म का अंत अन्य फिल्मी कहानियों की तरह ओपन रखा है, जो बहुत ही नाटकीय लगता है।
अवधि - 132 मिनट