आकर्षक पैकेजिंग में: स्टूडेंट ऑफ द ईयर
सबसे पहले निखिल आडवाणी को इस साहस के लिए बधाई कि उन्होंने एनीमेशन फिल्म को धार्मिक, पौराणिक और मिथकीय कहानियों से बाहर निकाला। ज्यादातर एनीमेशन फिल्मों के किरदार आम जिंदगी से नहीं होते। 'डेल्ही सफारी' में भी आज के इंसान नहीं हैं। निखिल ने जानवरों को किरदार के रूप में चुना है। उनके माध्यम से उन्होंने विकास की अमानवीय कहानी पर उंगली उठाई है।
देहरादून में एक स्कूल है-सेंट टेरेसा। वहा टाटा [अमीर] और बाटा [मध्यवर्गीय] के बच्चे पढ़ते हैं। दोनों समूहों के बच्चे आपस में मेलजोल नहीं रखते। इस स्कूल के डीन हैं योगेन्द्र वशिष्ठ [ऋषि कपूर]। वह ऑफिस के दराज में रखी मैगजीन पर छपी जॉन अब्राहम की तस्वीर पर समलैंगिक भाव से हाथ फिराते हैं। करण जौहर की फिल्मों में समलैंगिक किरदारों का चित्रण आम बात हो गई है। कोशिश रहती है कि ऐसे किरदारों को सामाजिक प्रतिष्ठा और पहचान भी मिले। बहरहाल, कहानी बच्चों की है। इस स्कूल की आलीशान इमारत को देखकर देश के अनगिनत बच्चों को खुद पर झेंप और शर्म हो सकती है। अब क्या करें? करण जौहर को ऐसी भव्यता पसद है तो है। कहने को तो टाटा और बाटा के फर्क की बात की जाती है, लेकिन मनीष मल्होत्रा ने टाटा-बाटा के प्रतिनिधि किरदारों को कॉस्ट्यूम देने में भेद नहीं रखा है। रोहन और अभिमन्यु के वार्डरोब में एक से कपड़े हैं। इस स्कूल में बस पढ़ाई नहीं होती, बाकी खेल-कूद, नाच-गाना, चलता रहता है।
फिल्म की खूबी और कमी पर बात करने से बेहतर है कि हम तीन नए चेहरों की चर्चा करें। करण जौहर ने पहली बार मुख्य किरदारों में नए चेहरों को मौका देने का साहस दिखाया है। परफारमेंस के लिहाज से सिद्धार्थ मल्होत्रा बीस ठहरते हैं। कहानी का सपोर्ट अभिमन्यु को मिला है, लेकिन उस किरदार में वरुण धवन मेहनत करते दिखते हैं। मुठभेड़, दोस्ती और मौजमस्ती के दृश्यों में सिद्धार्थ और वरुण अच्छे लगते हैं। उन्हें आकर्षक कॉस्ट्यूम मिले हैं। इस फिल्म से फैशन का नया ट्रेंड चल सकता है। आलिया भट्ट आकर्षक दिखी हैं। गानों में उन्होंने सही स्टेप्स लिए हैं, पर भावपूर्ण दृश्यों में उनका कच्चापन जाहिर हो जाता है। सहयोगी कलाकारों का चुनाव उल्लेखनीय है। ऋषि कपूर और रोनित रॉय अपने किरदारों में फिट हैं। तीनों किरदारों की एंट्री को करण जौहर ने विशेष तरीके से शूट किया है। पुरानी हिंदी फिल्मों के मुखड़े लेकर नए भाव जोड़े गए हैं और उनकी पर्सनैलिटी जाहिर की गई है। गानों में मौलिकता नहीं है। अन्विता दत्त गुप्तन ने पुराने गीतों के मुखड़े लेकर नए शब्दों से अंतरे बनाए हैं। सगीत में भी यही प्रयोग किया गया है। इस फिल्म की पैकेजिंग दर्शकों को थिएटर में ला सकती है।
एक ही अच्छी बात हुई है कि 'स्टूडेंट ऑफ द ईयर' ने कुछ नई और युवा प्रतिभाओं को हुनर दिखाने का मौका दिया है।
निर्देशक-करण जौहर, कलाकार- सिद्धार्थ मल्होत्रा, आलिया भट्ट, वरुण धवन, सगीत-विशाल-शेखर, गीत- अन्विता दत्त, अवधि-146 मिनट
[रेटिंग:-ढाई स्टार]
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अजय ब्रह्मात्मज]
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