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Movie Review: 'मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर' एक ज़रूरी फ़िल्म, मिले इतने स्टार्स

Movie Review मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर..ऐसे में सितारों के बाजारवाद से घिरे सिनेमाई तराजू में एक ईमानदार नीयत से बनाई गई इस फिल्म को तोलना नाइंसाफी होगी।

By Hirendra JEdited By: Published: Thu, 14 Mar 2019 06:25 PM (IST)Updated: Fri, 15 Mar 2019 10:55 AM (IST)
Movie Review: 'मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर' एक ज़रूरी फ़िल्म, मिले इतने स्टार्स
Movie Review: 'मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर' एक ज़रूरी फ़िल्म, मिले इतने स्टार्स

-पराग छापेकर 

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फिल्म- मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर (Mere Pyare Prime Minister)

स्टारकास्ट: अंजलि पाटिल, अतुल कुलकर्णी, मकरंद देशपांडे आदि

निर्देशक: राकेश ओम प्रकाश मेहरा

निर्माता: राकेश ओम प्रकाश मेहरा और अन्य

सामाजिक मुद्दों पर फिल्म की टूटी हुई परंपरा पिछले कुछ समय से एक बार शुरू हो गई है। टॉयलेट एक प्रेम कथा, पैडमैन, दंगल हो या पिंक अब सिनेमा एक बार फिर से सामाजिक विषयों से जुड़ी बुराइयों की बात करने लगा है। सबसे अच्छी बात यह भी कि इस तरह की फिल्मों में किसी तरह के आडंबर का सहारा नहीं लिया जा रहा है। इसी परंपरा में रंग दे बसंती और भाग मिल्खा भाग जैसी फिल्में बनाने वाले निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर रिलीज़ हो रही है।

फिल्म का नाम सुनते ही सबसे पहले दिमाग में यह आना लाज़मी हो जाता है कि फिल्म बनाने का मकसद कुछ और है? लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि फिल्म बनाने का मकसद कोई राजनीतिक नहीं बल्कि एक नितांत सामाजिक फिल्म बनाने की नीयत से है। फिल्म की कहानी है घाटकोपर की झोपड़ी में रहने वाले एक मां-बेटे की। मां दिनभर कढ़ाई का काम करती है और उसका छोटा बेटा पूरे स्लम में उधम मचाता रहता है। वह पढ़ाई भी करता है और कई धागों से डायरेक्टर ने बस्तियों के संघर्ष को अपनी फिल्म में समेटा है।

इस बस्ती में एक ही समस्या है और जो सबसे बड़ी और अहम है। दरअसल इस बस्ती में कोई शौचालय नहीं है। इतनी बड़ी बस्ती के लोग ट्रेन की पटरियों पर लाइन में शौच के लिए जाते हैं और सबसे बड़ी समस्याएं महिलाओं को होती है जो आधी रात या अलसुबह अंधेरे इस काम को अंजाम देती हैं। ऐसे में अंजलि जब वह शौच के लिए जाती है तो उसके साथ यौन दुष्कर्म हो जाता है और इस तरह से फ़िल्म आगे बढती है। यह फ़िल्म आपको सोचने पर मजबूर करती है!

अभिनय की बात करें तो सभी कलाकारों ने ख़ासकर तीनों बाल कलाकारों ने कमाल का काम किया है और इन कलाकारों की तारीफ की जानी चाहिए! बहरहाल, जब एक फिल्म में कहानी के जरिये किसी सामाजिक मुद्दे को सामने लाया जाता है तो उसकी नीयत देखना ज्यादा जरूरी हो जाता है। ऐसे में सितारों के बाजारवाद से घिरे सिनेमाई तराजू में एक ईमानदार नीयत से बनाई गई इस फिल्म को तोलना नाइंसाफी होगी।

डायरेक्टर राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने एक सामाजिक विषय पर फिल्म बनाते हुए उसमें मनोरंजन के पहलू का ख़ासा ध्यान रखा और एक मनोरंजक फिल्म बनाई है! 

जागरण डॉट कॉम रेटिंग: 3.5 स्टार

अवधि: 2 घंटे 10 मिनट


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