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जंगल की आवाज डेल्ही सफारी

सबसे पहले निखिल आडवाणी को इस साहस के लिए बधाई कि उन्होंने एनीमेशन फिल्म को धार्मिक, पौराणिक और मिथकीय कहानियों से बाहर निकाला। ज्यादातर एनीमेशन फिल्मों के किरदार आम जिंदगी से नहीं होते। 'डेल्ही सफारी' में भी आज के इंसान नहीं हैं। निखिल ने जानवरों को किरदार के रूप में चुना है। उनके माध्यम से उन्ह

By Edited By: Published: Sat, 20 Oct 2012 11:44 AM (IST)Updated: Sat, 20 Oct 2012 01:03 PM (IST)
जंगल की आवाज डेल्ही सफारी

सबसे पहले निखिल आडवाणी को इस साहस के लिए बधाई कि उन्होंने एनीमेशन फिल्म को धार्मिक, पौराणिक और मिथकीय कहानियों से बाहर निकाला। ज्यादातर एनीमेशन फिल्मों के किरदार आम जिंदगी से नहीं होते। 'डेल्ही सफारी' में भी आज के इंसान नहीं हैं। निखिल ने जानवरों को किरदार के रूप में चुना है। उनके माध्यम से उन्होंने विकास की अमानवीय कहानी पर उंगली उठाई है।

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मुंबई के संजय गांधी नेशनल पार्क में युवराज अपने पिता सुल्तान और मां के साथ रहता है। जंगल के बाकी जानवर भी आजादी से विचरते हैं। समस्या तब खड़ी होती है, जब एक बिल्डर विकास के नाम पर जंगलों की कटाई आरंभ करता है। बुलडोजर की घरघराहट से जंगल गूंज उठता है। सुल्तान बिल्डर के कारकूनों के हत्थे चढ़ जाता है और मारा जाता है। पिता की मौत से आहत युवराज कुछ करना चाहता है। वह देश के प्रधानमंत्री तक जंग्ल की आवाज पहुंचाना चाहता है। इसके बाद डेल्ही सफारी शुरू होती है। युवराज और उसकी मां के साथ बग्गा भालू, बजरंगी बंदर और एलेक्स तोता समेत कुछ जानवर दिल्ली के लिए निकलते हैं। दिल्ली की रोमांचक यात्रा में बाधाएं आती हैं। सारे जानवर प्रवक्ता के तौर पर एलेक्स तोता को ले जा रहे हैं, क्योंकि वह मनुष्यों की भाषा समझता और बोल सकता है।

निखिल आडवाणी ने सभी जानवरों की आवाजों के लिए अनुभवी कलाकारों को एकत्रित किया है। उनकी वजह से फिल्म का प्रभाव बढ़ जाता है। युवराज की मां के किरदार उर्मिला मातोंडकर और बजरंगी को गोविंदा की आवाज मिली है। दोनों ने किरदार के मनोभावों का ख्याल रखा है। बग्गा के लिए बमन ईरानी की आवाज सटीक है। अन्य जानवरों को सौरभ शुक्ला, सुनील शेट्टी, स्वीनी खरा, दीपक डोबरियाल और संजय मिश्र की आवाजें मिली हैं।

एनीमेशन के लिहाज से निखिल आडवाणी की टीम ने सुंदर और प्रभावपूर्ण काम किया है। जानवरों के एक्सप्रेशन और उनके बोले संवादों में तालमेल है। इस फिल्म के संवाद कथ्य के अनुकूल हैं। निश्चित ही निखिल आडवाणी और गिरीश धमीजा का प्रयास प्रशंसनीय है। एक ही बात खटकती है.. जानवरों का नाचना और गाना। मान-मनौव्वल करते हुए सुल्तान का गाना किसी फिल्मी हीरो और सांग सिचुएशन की याद दिलाता है। मुमकिन है नेशनल पार्क के बगल में स्थित फिल्म सिटी का असर हो। जानवरों ने चोरी-छिपे हिंदी फिल्मों की शूटिंग देखी हो और अपने जंगली जीवन में उसकी भोंडी नकल करने लगे हों। इस एक खोट के अलावा 'डेल्ही सफारी' उल्लेखनीय एनीमेशन फिल्म है।

रेटिंग: साढ़े तीन स्टार

अवधि-96 मिनट

-अजय ब्रह्मात्मज

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