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फिल्म रिव्यू: भाग मिल्खा भाग (4 स्टार)

दर्शकों को लुभाने और थिएटर में लाने का दबाव इतना बढ़ गया है कि अधिकांश फिल्म अपनी फिल्म से अधिक उसके लुक, पोस्टर और प्रोमो पर ध्यान देने लगी हैं। इस ध्यान में निहित वह झांसा होता है, जो ओपनिंग और वीकएंड कलेक्शन केलिए दर्शकों को थिएटरों में खींचता है।

By Edited By: Published: Fri, 12 Jul 2013 02:31 PM (IST)Updated: Fri, 12 Jul 2013 06:19 PM (IST)
फिल्म रिव्यू: भाग मिल्खा भाग (4 स्टार)

मुंबई (अजय ब्रह्मात्मज)। प्रमुख कलाकार: फरहान अख्तर, सोनम कपूर, मीशा शाफी

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निर्देशक: राकेश ओमप्रकाश मेहरा

निर्माता: राकेश ओमप्रकाश मेहरा

संगीत: शंकर-एहसान-लॉय

स्टार: 4

दर्शकों को लुभाने और थिएटर में लाने का दबाव इतना बढ़ गया है कि अधिकांश फिल्म अपनी फिल्म से अधिक उसके लुक, पोस्टर और प्रोमो पर ध्यान देने लगी हैं। इस ध्यान में निहित वह झांसा होता है, जो ओपनिंग और वीकएंड कलेक्शन केलिए दर्शकों को थिएटरों में खींचता है। राकेश ओमप्रकाश मेहरा पर भी दबाव रहा होगा,लेकिन अपनी पीढ़ी के एक ईमानदार फिल्म मेकर के तौर पर उन्होंने लुक से लेकर फिल्म तक ईमानदार सादगी बरती है।

देखें: सबसे अलग है भाग मिल्खा भाग

स्पष्ट है कि यह फिल्म मिल्खा सिंह की आत्मकथा या जीवनी नहीं है। यह उस जोश और संकल्प की कहानी है, जो कड़ी मेहनत, इच्छा शक्ति और समर्पण से पूर्ण होती है। 'भाग मिल्खा भाग' प्रेरक फिल्म है। इसे सभी उम्र के दर्शक देखें और अपने अंदर के मिल्खा को जगाएं। मिल्खा सिंह को हम फ्लाइंग सिख के नाम से भी जानते हैं। उन्हें यह नाम पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने दिया था। किस्सा यह है कि बंटवारे के बाद के कलुष को धोने के साथ प्रेम और सौहा‌र्द्र बढ़ाने के उद्देश्य से जवाहरलाल नेहरू और अयूब खान ने दोनों देशों के बीच खेल स्पर्धा का आयोजन किया था। अतीत के दंश की वजह से मिल्खा सिंह ने पहले पाकिस्तान जाने से मना कर दिया था, लेकिन नेहरु के आग्रह पर वे पाकिस्तान गए। इस यात्रा में ही उनके मन का संताप कम हुआ। बचपन के दोस्त का यह कथन की इंसान नहीं, हालात बुरे होते हैं ़ ़ ़

मिल्खा के मन के विकार को धोता है। फिल्म की शुरुआत में ही हम देखते हैं कि अतीत के इसी दंश के कारण मिल्खा सिंह रोम ओलंपिक में पदक नहीं जीत पाए। हो सकता है कि यह मिल्खा सिंह के जहन में आया बाद का खयाल हो या राकेश ओमप्रकाश मेहरा और प्रसून जोशी उनकी हार को भी संगत बनाने की कोशिश कर रहे हों। बहरहाल, हम मिल्खा सिंह के जोश और जज्बे से प्रेरित होते हैं। गौर करें तो मिल्खा सिंह आजादी के बाद के उन युवकों के प्रतिनिधि हैं, जो नेहरू युग के सपनों के साथ अलक्षित लक्ष्य की तरफ बढ़ते हैं।

फिल्म के अनुसार पहले बीरो, फिर दूध और अंडे, उसके बाद इंडियन टीम के ब्लेजर के लिए मिल्खा सिंह अपनी जिंदगी के एक-एक पड़ाव को पार करते हैं। इस यात्रा में बहन इसरी ही हमेशा मौजूद है। मिल्खा सिंह की बहन इसरी का भावोद्रेक कई दृश्यों में आंखों को नम करता है। इसरी की बेचारगी और खुशी से हमारा भी गला रुंधता है। मिल्खा सिंह के फौजी जीवन में आए दोनों कोच और वह मु‌र्च्छला उस्ताद ़ ़ ़प्रकाशराज ने इस भूमिका में अभिनय के उस्ताद नजर आते हैं। दोनों कोच का मिल्खा के प्रति अद्भुत और नि:स्वार्थ समर्पण अनुकरणीय है। खिलाड़ी के पास सोच होती है, सोच ही उसे तपने और ढलने का सांचा देता है।

प्रसून जोशी ने बहुत खूबसूरती और प्रभावशाली तरीके से देश के बंटवारे को फिल्म में गूंथा है। धावक मिल्खा सिंह की दौड़ की जीत-हार के साथ-साथ जिंदगी भी चलती रहती है। प्रसून जोशी ने फ्लैशबैक और फिर उसमें फ्लैशबैक के शिल्प से कहानी को रोचक आयाम दिए हैं। मिल्खा के चरित्र में हमारी रुचि बनी रहती है। हम उसकी जीत की कामना करते हैं, लेकिन बाकी चीजें भी जानना चाहते हैं। लेखक-निर्देशक ने इन चाहतों को छोटे-छोटे दृश्यों, संबंधों और प्रतिक्रियाओं से पूरा किया है।

इस फिल्म के सहयोगी कलाकारों का जिक्र पहले करें। मिल्खा के जिंदगी के जरूरी किरदार बहन, दोनों कोच, बीरो और अन्य दोस्त आदि फिल्म के लिए भी जरूरी बन गए हैं। इन किरदारों को दिव्या दत्ता, पवन मल्होत्रा, योगीराज सिंह, प्रकाश राज आदि ने मू‌र्त्त कर दिया है। खास कर दिव्या दत्ता और पवन मल्होत्रा की संलग्नता दूरगामी प्रभाव डालती है। सचमुच दोनों अभिनेता किसी भी उम्र, मिजाज और समुदाय के चरित्र को जिंदगी दे देते हैं।

फरहान अख्तर ने इस फिल्म से अपनी पीढ़ी के कलाकारों के सामने नया मानदंड स्थापित कर दिया है। वास्तविक या काल्पनिक किरदारों के लिए कलाकार की मेहनत और समर्पण का यह नया बेंच मार्क है। फरहान अख्तर ने मिल्खा के बाह्य रूप के साथ आंतरिक कसावट को भी आत्मसात किया है। वे शुरु से आखिर तकमिल्खा सिंह बने रहे हैं। बाल मिल्खा बने कलाकार ने उनके लिए उचित जमीन तैयार की है।

'भाग मिल्खा भाग' मुख्य रूप से ट्रैक, स्टेडियम, दौड़ और खेल संबंधी अन्य दृश्यों की ही रचती है। कैमरामैन बिनोद प्रधान ने दृश्यों के कोण चुनते और उनके छायांकन में सृजनात्मक कल्पना का परिचय दिये है। हम विस्मित होते हैं कि कैमरे कैसे और कहां-कहां रखे जा सकते हैं। गीत-संगीत फिल्म के थीम के अनुरूप है। कुछ गीत यों सुनने में साधारण लग रहे थे, लेकिन दृश्यों के साथ आने पर वे उपयुक्त भाव जगाते हैं। मिल्खा के द्वंद्व और उत्साह को भी प्रसून जोशी ने प्रेरक शब्द दिए हैं।

'भाग मिल्खा भाग' नेहरू युग के एक महत्वाकांक्षी युवक के सामने सपने की दास्तान है, जिसे राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने बखूबी उस दर्शक के परिवेश और समाज के साथ प्रस्तुत किया है। यह फिल्म किशोर और युवा दर्शकों को अवश्य देखनी-दिखानी चाहिए।

अवधि - 187

**** चार स्टार

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