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Mimi Review: कृति सेनन और पंकज त्रिपाठी ने दी मनोरंजन की फुल डिलीवरी, थोड़ा सा दर्द भी... पढ़ें पूरा रिव्यू

Mimi Review मिमी की डिलीवरी भले ही चार दिन पहले हो गयी हो मगर पंकज त्रिपाठी और कृति सेनन की फ़िल्म मनोरंजन की डिलीवरी करने के मामले में मिमी बिल्कुल प्री-मैच्योर नहीं है। नेशनल अवॉर्ड विनिंग मराठी फ़िल्म मला आई व्हायचय (मुझे मां बनना है) से प्रेरित है।

By Manoj VashisthEdited By: Published: Tue, 27 Jul 2021 01:59 AM (IST)Updated: Tue, 27 Jul 2021 07:43 AM (IST)
Mimi Review: कृति सेनन और पंकज त्रिपाठी ने दी मनोरंजन की फुल डिलीवरी, थोड़ा सा दर्द भी... पढ़ें पूरा रिव्यू
Kriti Sanon on Mimi's poster. Photo- Instagram

मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। नेटफ्लिक्स और जियो सिनेमा पर मिमी की डिलीवरी भले ही चार दिन पहले हो गयी हो, मगर पंकज त्रिपाठी और कृति सेनन की फ़िल्म मनोरंजन की डिलीवरी करने के मामले में मिमी बिल्कुल प्री-मैच्योर नहीं है। निर्माता दिनेश विजन ने छोटे शहरों की कहानियां कहने के क्रम में इस बार एक बड़ा ही संवेदनशील और थोड़ा-सा पेचीदा मुद्दा उठाया- सरोगेसी यानी किराये की कोख का।

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मिमी यूं तो सरोगेसी के विषय पर बनी फ़िल्म है, मगर फ़िल्म एक बेहद ज़रूर सवाल भी उठाती है। सरोगेसी के ज़रिए जो बच्चा पैदा होता है, उस पर पहला हक़ उन मां-बाप का होता है, जिनसे उसका डीएनए मैच करता है, लेकिन मामला बिगड़ जाए तब इस समस्या का समाधान कैसे निकलेगा। हालांकि, फ़िल्म इस समस्या के क़ानूनी पहलू में जाने के बजाए भावात्मक पहलूे पर अधिक बात करती है, जो नेशनल अवॉर्ड विनिंग मराठी फ़िल्म मला आई व्हायचय (मुझे मां बनना है) से प्रेरित है।

10 साल पहले आयी यह फ़िल्म विदेशियों द्वारा भारत में सरोगेसी के लिए आने की बढ़ती प्रथा की पृष्ठभूमि पर बनी थी। मराठी फ़िल्म जहां इमोशनल ड्रामा थी, वहीं मिमी को सोशल-कॉमेडी कर दिया गया है। मिमी की पटकथा में कहीं-कहीं कुछ पेंच ढीले हैं, मगर कृति सेनन और पंकज त्रिपाठी की बेहतरीन अदाकारी ने इन्हें कस दिया है।

राजस्थान के एक कस्बे में रहने वाली मिमी मुंबई जाकर हीरोइन बनने का सपना आंखों में पाले हुए है। ख़ूबसूरत है। अच्छी फिगर है और बेहतरीन डांसर है। अपने सपनों को पूरा करने के लिए मिमी के पास जिस चीज़ की सबसे अधिक कमी है, वो है पैसा। भानु प्रताप दिल्ली का रहने वाला टूरिस्ट गाइड है, जो फिरंगियों को अपनी गाड़ी में सैर करवाता है। ऐसी ही एक यात्रा के दौरान उसे जॉन और समर मिलते हैं, जो एक सरोगेट मां की तलाश में हैं। जयपुर में प्रवास के दौरान एक कार्यक्रम में वो मिमी को नाचते हुए देखते हैं।

अंग्रेज़ जोड़ा भानु प्रताप से कहता है कि उन्हें वैसी ही एक सरोगेट मगर चाहिए, क्योंकि मां एथलीट या डांसर है तो बच्चा हेल्दी पैदा होता है। भानु को पता चलता है कि इसके लिए उसे पांच लाख रुपये मिलेंगे तो वो मिमी को ही राज़ी करने का फ़ैसला करता है। हीरोइन बनने के लिए पैसों के जुगाड़ में लगी मिमी को जब पता चलता है कि 20 लाख रुपये मिलेंगे तो वो तैयार हो जाती है।

मां-बाप को बड़ी फ़िल्म मिलने का बहाना करने मिमी अपनी दोस्त शमा के घर रहने लगती है। भानु प्रताप उसका पति होने का नाटक करता है। सरोगेसी के ज़रिए मिमी गर्भवती हो जाती है और बढ़ते पेट के साथ उसे अपनी मंज़िल क़रीब दिखने लगती है।

मगर, प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही में पता चलता है कि बच्चा डाउन सिंड्रोम का शिकार है। यह सुनकर बच्चे की असली मां समर भावनात्मक रूप से टूट जाती है और बच्चा गिराने के लिए कहकर विदेशी जोड़ा अमेरिका लौट जाता है। पता चलने पर मिमी पर बिजली गिरती है।

हालांकि, भानु प्रताप, शमा और घर वालों के सपोर्ट से मिमी बच्चा पैदा करती है। देखते ही देखते 4 साल बीत जाते हैं और एक दिन अचानक विदेशी कपल आ धमकते हैं और चार साल के राज (जो देखने में विदेशी ही है) पर अपना अधिकार जताने लगते हैं और राज को क़ानून के सहारे ले जाने की धमकी देते हैं। इसके बाद कहानी में कुछ भावनात्मक ट्विस्ट आते हैं। कहानी एक ऐसे मोड़ पर जाकर खड़ी हो जाती है, जहां दर्शक को इसका हल जानने की बेचैनी होने लगती है। 

मिमी की कथा-पटकथा निर्देशक लक्ष्मण उटेकर और रोहन शंकर ने लिखे हैं। संवाद भी रोहन के ही हैं। मिमी उन फ़िल्मों की सीरीज़ की अगली कड़ी है, जिनमें संवेदनशील मुद्दे की बात हल्के-फुल्के अंदाज़ में की जाती रही है। हालांकि, अंदाज़ हल्का-फुल्का रखने के फेर में मिमी कुछ दृश्य पटकथा से मिसिंग लगते हैं।

मिमी को राजस्थानी समाज के जिस वर्ग से दिखाया गया है, उसमें मिमी के बिन ब्याहे गर्भवती (भले ही सरोगेसी के ज़रिए एक विदेशी कपल के लिए हो) हो जाने को जिस तरलता के साथ परिवार स्वीकार कर लेता है, वो एकाएक हजम नहीं होता।

लेखक-निर्देशक ने शायद फ़िल्म का मिज़ाज जमाये रखने के लिए ऐसा किया हो। मिमी के बच्चे का बचपन से ही अंग्रेज़ी एक्सेंट में हिंदी बोलना समझ नहीं आता, क्योंकि जिस परिवार और परिवेश में उसने आंखें खोली हैं, बोलचाल और उच्चारण तो वहीं के रहने चाहिए। हालांकि, क्लाइमैक्स के दृश्य और आख़िरी सीन का ट्विस्ट बेहतरीन संदेश देता है कि सिर्फ़ बच्चा पैदा करने से कोई औरत मां नहीं हो जाती या मां बनने के लिए बच्चा पैदा करना ज़रूरी नहीं होता। 

थोड़ा-सा शातिर मगर दिल के साफ़ भानु प्रताप के किरदार में पंकज त्रिपाठी उतने ही सहज लगे हैं, जितने मिर्ज़ापुर के कालीन भैया के रोल में। इस फ़िल्म में उनके अभिनय के बारे में बस यही कहा जा सकता है कि अगर किसी दृश्य में पंकज ना हों तो दर्शक उन्हें मिस करता है।

मिमी के शीर्षक किरदार में कृति सेनन ने इस बार दमदार काम किया है। स्मॉट टाउन गर्ल का किरदार कृति निभा चुकी हैं, मगर इस बार उन्होंने ख़ुद को चुनौती दी, जिसमेें वो सफल रहीं। कहानी के साथ कृति की अदाकारी की धार भी तेज़ होती जाती है। ख़ासकर, भावनात्मक दृश्यों में उन्होंने अलग ही रंग जमाया है। कृति को इस फ़िल्म में जो मौक़े मिले, उनका उन्होंने भरपूर इस्तेमाल किया। 

बरेली की बर्फ़ी और लुका-छुपी में पंकज त्रिपाठी के साथ काम कर चुकीं कृति की उनके साथ यह तीसरी फ़िल्म है, जो दोनों के बीच सहजता से नज़र भी आता है। कृति के पिता मान सिंह के किरदार में मनोज पाहवा, मां के रोल में सुप्रिया पाठक और दोस्त शमा के रोल में साई तम्हनकर ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है।

जया भट्टाचार्य डॉक्टर के किरदार में हैं। हालांकि, उनका रोल लम्बा नहीं है। समर के किरदार में एवलिन एडवर्ड्स और जॉन के रोल में एडन व्हाईटॉक ठीक लगे हैं। एआर रहमान का संगीत असरदार है, मगर एक गाना परम सुंदरी ही साथ रह जाता है। मिमी, मनोरंजन के लिहाज़ से निराश नहीं करती और शायद यही इसका मक़सद भी है...।

कलाकार- कृति सेनन, पंकज त्रिपाठी, साई तम्हनकर, मनोज पाहवा, सुप्रिया पाठक आदि।

निर्देशक- लक्ष्मण उटेकर

निर्माता- दिनेश विजन

रेटिंग- ***1/2 (साढ़े तीन स्टार)


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