Mera Fauji Calling Review: वॉर नहीं... मासूम हसरतों की भावुक करने वाली कहानी है 'मेरा फौजी कॉलिंग'
Mera Fauji Calling Review देश के लिए जंग में जांबाज़ी दिखाते हुए शहीद होने वाले फौजियों के परिवारों को किन भावनात्मक कठिनाइयों और पड़ावों से गुज़रना पड़ता है मेरा फौजी कॉलिंग उन्हीं भावनाओं को विभिन्न किरदारों के ज़रिए उकेरती है।
मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। सिनेमाघरों में रिलीज़ हो रही मेरा फौजी कॉलिंग मूल रूप से मानवीय पहलुओं और संवेदनाओं की एक भावुक कहानी है। देश के लिए जंग में जांबाज़ी दिखाते हुए शहीद होने वाले फौजियों के परिवारों को किन भावनात्मक कठिनाइयों और पड़ावों से गुज़रना पड़ता है, मेरा फौजी कॉलिंग उन्हीं भावनाओं को विभिन्न किरदारों के ज़रिए उकेरती है।
मेरा फौजी कॉलिंग की कहानी झारखंड के बुंडु ज़िले में सेट की गयी है। राजवीर सिंह फौज में लेफ्टिनेंट (रांझा विक्रम सिंह) है, जिसकी तैनाती कश्मीर के उरी क्षेत्र में है। घर पर मां (ज़रीना वहाब), पत्नी साक्षी (बिदिता बाग) और एक 6-7 साल की बेटी आराध्या है। राजवीर छुट्टी पर घर आने वाला है, जिसका सबसे अधिक इंतज़ार बेटी आराध्या को है।
आराध्या एक रात सपने में देखती है कि राजवीर को गोली लग गयी है। इसकी दहशत उसके दिलो-ज़हन में बैठ जाती है। तेज़ बुखार हो जात है। डॉक्टर बताता है कि आराध्या को पीटीएसडी यानी पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर है। पिता को सपने में मरता देख उसे गहरा सदमा लगा है। डॉक्टर की सलाह पर आराध्या की बात राजवीर से करवायी जाती है, जिसके बाद वो ठीक हो जाती है।
मगर, कुछ वक़्त बाद बेटी के जन्म दिन के जश्न के बीच राजवीर के शहीद होने की ख़बर आती है। आराध्या को यह ख़बर देना उसकी सेहत के लिए ठीक नहीं होता। लिहाज़ा, साक्षी बेटी से कहती है कि पिता का प्रमोशन हो गया है और वो भगवान के घर पर हैं, जहां बात नहीं हो सकती। बाल-मन इसे सच मान लेता है। बेटी का मन रखने के लिए साक्षी और राजवीर की मां सब कुछ सामान्य होने का नाटक करते हैं, जिसमें मेजर रॉय से लेकर गांव वाले तक साथ देते हैं। साक्षी मंगलसूत्र पहनती है और साज-श्रृंगार करके रहती है।
इस नाटक को काफ़ी वक़्त गुज़र जाता है। जब पिता घर नहीं आते तो आराध्या बेचैन होने लगती है और एक दिन स्कूल से भगवान का घर ढूंढने के लिए निकल पड़ती। जंगल में एक छोटे से हादसे के बाद उसकी मुलाक़ात अभिषेक (शरमन जोशी) से होती है। अभिषेक उसे समझा देता है कि वही उसका पिता है। भगवान के घर उसकी सूरत बदल दी गयी है। मासूम बच्ची इसे सच मानकर उसे अपने घर ले जाती है। इस परिवार के साथ अभिषेक के रिश्ते के उतार-चढ़ाव पर आगे की कहानी आधारित है।
अभिनय की बात करें तो डेब्यूटेंट चाइल्ड आर्टिस्ट माही सोनी फ़िल्म की जान है, जिसने आराध्या के किरदार में बेहतरीन काम किया है। दादी बनी ज़रीना बहाव के साथ चंचल शरारतों के दृश्यों में माही जितनी नेचुरल लगती है, इमोशनल दृश्यों में उतनी ही सहज है। मेरा फौजी कॉलिंग मूल रूप से आराध्या की ही कहानी है। ऐसे में बाक़ी कलाकारों ने अपने-अपने हिस्से को ठीक से निभाया है।
बिदिता बाग के हिस्से कुछ बेहतरीन दृश्य आए हैं। मसलन, बेटी के बर्थडे सेलिब्रेशन में उसके पिता की मौत की ख़बर आने के बावजूद सब कुछ ठीक होने का नाटक करना, डांस करना भावुक करने वाला सीन है। इन दृश्यों में वेटरन एक्ट्रेस ज़रीना वहाब ने पूरा साथ दिया।
लेखक-निर्देशक आर्यन सक्सेना ने कहानी तो अच्छी चुनी, मगर स्क्रीन-प्ले लिखने में लापरवाही दिखा गये। लेफ्टिनेंट राजवीर मोर्चे पर शहीद होता है, मगर उसके अंतिम संस्कार के दृश्य को स्क्रीनप्ले से ग़ायब कर दिया गया। यहां तर्क दिया जा सकता है कि बेटी से सच्चाई छिपाने के लिए ऐसा किया गया। मगर, यह तर्क हजम करने लायक नहीं है। हालांकि, इसे कुछ मीडियाकर्मियों की चैनल के न्यूज़ रूम में बातचीत से जस्टिफाई करने की कोशिश की गयी है।
सक्षम कलाकारों के बेहतरीन अभिनय ने निर्देशन की कमियों को ढकने की पूरी कोशिश की है। फ़िल्म की रफ़्तार खिंचे हुए स्क्रीन-प्ले की वजह से शिथिल लगती है। स्क्रीनप्ले कसकर फ़िल्म को चुस्त किया जा सकता था। मेरा फौजी कॉलिंग उन हज़ारों फौजी परिवारों की कहानी कही जा सकती है, जो शहीद हो जाते हैं, मगर अपने पीछे जज़्बात का एक ऐसा रेला छोड़ा जाते हैं, जिसे ज़िंदगी के हर क़दम पर महसूस किया जाता है। जंग में देश एक जवान खोता है, मगर कहीं गांव में बेटी अपना पिता, पत्नी अपना पति और मां अपना बेटा खोती है। ऐसे में इंसानियत के ज़रिए ज़ख़्मों पर मरहम लगाने का संदेश फ़िल्म देती है।
कलाकार- ज़रीना वहाब, शरमन जोशी, रांझा विक्रम सिंह, बिदिता बाग, शिशिर शर्मा, मुग्धा गोडसे और माही सोनी।
निर्देशक- आर्यन सक्सेना
निर्माता- ओवेज़ शेख, विक्रम सिंह, विजेता वर्मा, अनिल जैन।
अवधि- 2 घंटा 7 मिनट
स्टार- *** (तीन स्टार)