फिल्म रिव्यू- 'लव गेम्स' यानि प्यार व लिप्सा का द्वंद्व (2.5 स्टार)
भट्ट कैंप की फिल्में इंसानी रिश्तों व भावनाओं की पड़ताल करती रही हैं। खासकर वर्जित मुद्दे उनकी कहानियों के केंद्र में रहे हैं। लव गेम्स-लव डेंजरसली' भी उसी परंपरा व ढर्रे का विस्तार है।
अमित कर्ण
प्रमुख कलाकार- तारा अलीशा, पत्रलेखा, गौरव अरोड़ा
निर्देशक- विक्रम भट्ट
स्टार- ढाई
भट्ट कैंप की फिल्में इंसानी रिश्तों व भावनाओं की पड़ताल करती रही हैं। खासकर वर्जित मुद्दे उनकी कहानियों के केंद्र में रहे हैं। लव गेम्स-लव डेंजरसली' भी उसी परंपरा व ढर्रे का विस्तार है। फिल्म जिस मसले के इर्द-गिर्द केंद्रित है, उसे एक आंकड़े से जस्टिफाई करने की कोशिश की गई है। मसला कथित ऊंची सोसायटी में कथित फंतासी सुख अर्जित करने के लिए बीवियों की अदला-बदली का है। आंकड़ा यह जारी किया जा रहा है कि भारतीय मध्यम वर्ग प्या व वासना के दोराहे पर खड़ा है। सूरत समेत कई अन्य शहरों में ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। अब यह शोध व बहस का मामला है कि मूल्यों में गहरा यकीन रखने वाले व सभ्यता-संस्कृति का ढिंढोरा पीटने वाले इस मुल्क में क्या इस किस्म की घटिया तब्दीली क्यों हो रही है।
बहरहाल, यह फिल्म प्यार व वासना के द्वंद्व को पेश करती है। रमोना रायचंद के शब्दपकोश में प्यार जैसी कोई चीज नहीं है। उसकी प्यार की परिभाषा अलग है। उसे लगता है कि हर रिश्ता महज स्वार्थ की बुनियाद पर ही टिका हुआ है। सैम सक्सेना बड़े बाप की औलाद है, पर मां के गुजर जाने के चलते खासा तन्हा है। अपने खालीपन की खोज में वह अस्त-व्यस्त जीवन जी रहा है। वह कई बार अपनी नसें भी काट चुका है, मगर बच जाता है। वह रमोना के झांसे में भी है। दोनों जिस्मानी संबंध से जिंदगी के मायने तलाश रहे हैं। फंतासी की चाह में दोनों पेज थ्री पार्टी में दूसरी जोडि़यों को अपने फरेब में ला अपनी लिप्सा की भूख मिटाने में लग जाते हैं। उन दोनों के अलावा डॉक्टर अलीशा अस्थाना व वकील गौरव अस्थाना की शादीशुदा जिंदगी में प्रॉब्लम है। अलीशा घरेलू हिंसा की शिकार है। एक पार्टी में सैम, अलीशा से मिलता है। दोनों को प्यार हो जाता है। वह रमोना को नागवार गुजरता है। फिर शुरू होता है प्यार हासिल करने व बदला लेने का सिलसिला।
पहले हाफ में फिल्म सभी किरदारों की ख्वाहिशों, लालच व दर्द के अंतस में उतरती है। इंटरवल बाद यह थ्रिलर में तब्दील होती है। दिक्कत दोनों के बीच तालमेल बिठाने में हुई है। कुल मिलाकर यह सतही सनसनीखेज फिल्म बन पाई है। सभी किरदारों की साजिशों का अनुमान आसानी से लगता रहता है। दूसरी अंतर्विरोध फिल्म की थॉट व मूल प्लॉट में दिखता है। जिस ऊंची सोसायटी को मस्तीेखोर करार दिया जाता है, वहीं की एक डॉक्टर औरत कैसे पति का जोर-जुल्म बरसों तक सह सकती है। कैसे उसकी पुकार पुलिस नहीं सुन सकती। तीसरी चीज कि समाज को आईना दिखाने का दावा करने के बाद फिल्म आखिर में अपने किरदारों को मूल्यों व भरोसे की राह पर ही ला पटकती है। इसी वजह से कसी हुई फिल्म होने के बावजूद यह औसत सी रह गई है।
रमोना की भूमिका को जीवंत करने की पत्रलेखा की मेहनत दिखती है, मगर वहां ज्यादा मारक व प्रभावी होने की गुंजाइश रह गई है। तारा अलीशा बेरी, अलीशा अस्थाना की भूमिका में हैं। वे यहां छाप छोड़ने में निष्फल रही हैं। सैम सक्सेेना बने गौरव अरोड़ा की यह पहली फिल्म है। उन्हें अदाकारी में और निखार लाना होगा। वकील गौरव अस्थाना बने हितेन तेजवानी भी कुछ खास नहीं कर पाए हैं। लब्बोलुआब यह कि 'कसूर', 'राज', 'जख्म' जैसी जोरदार फिल्में देने वाले भट्ट कैंप को अंतरावलोकन की सख्त दरकार है।
अवधि- 114 मिनट