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Lootcase Review: शानदार एक्टर्स की बेहतरीन एक्टिंग के लिए देख सकते हैं हॉटस्टार की 'लूटकेस'

Lootcase Review डिज़्नी प्लस हॉटस्टार की फ़िल्म लूटकेस एक पुरानी कहानी और कॉन्सेप्ट के साथ हाजिर है। लेकिन इसके एक्टर्स इसे देखने लायक बनता हैं। पढ़िए पूरा रिव्यू।

By Rajat SinghEdited By: Published: Fri, 31 Jul 2020 08:35 PM (IST)Updated: Fri, 31 Jul 2020 08:47 PM (IST)
Lootcase Review: शानदार एक्टर्स की बेहतरीन एक्टिंग के लिए देख सकते हैं हॉटस्टार की 'लूटकेस'
Lootcase Review: शानदार एक्टर्स की बेहतरीन एक्टिंग के लिए देख सकते हैं हॉटस्टार की 'लूटकेस'

 नई दिल्ली, जेएनएन। Lootcase Review: टीवीएफ की फेमस वेब सीरीज़ ट्रिपलिंग के जरिए सबको हंसाने वाले राजेश कृष्णनन अब दर्शकों के कॉमेडी फ़िल्म लूटकेस लेकर हाज़िर हैं। कुणाल खेमू, रशिका दुग्गल, विजय राज, गजराज राव और रणवीर शौरी जैसे बेहतरीन एक्टर्स से सज़ी फ़िल्म, उस स्तर तक नहीं पहुंच पाती है, जितना राजेश कृष्णनन से उम्मीद की जा सकती है। डिज़्न प्लस हॉटस्टार पर रिलीज़ इस फ़िल्म को इसकी पॉवरफुल एक्टिंग बचा ले जाती है। 

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कहानी

फ़िल्म की कहानी एक पैसे से भरे बैग के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। नंदन कुमार नाम एक मीडिल क्लास आदमी है, जो प्रेस में काम करता है। उसके जीवन का मकसद है कि उसे बेस्ट इम्पलॉई का अवॉर्ड मिल जाए। इसके लिए वह नाइट शिफ्ट के लिए भी हां कर देता है। नाइट शिफ्ट के दौरान घर पहुंचते वक्त उसे हाथ पैसों से भरा बैग लगता है। इसमें एक 10 करोड़ रुपये और एक महत्वपूर्ण फाइल है। इस बैग के पीछे दो और लोग लगे हुए हैं। एक है नेता मिस्टर पाटिल, जिनके इशारे पर गैंगस्टर ओमर और इंस्पेक्टर कोलते इस बैग की तलाश कर रहे हैं। वहीं, ओमर का दुश्मन और गैंगस्टर बाला भी इस बैग को हथियाने के चक्कर में है। अब सभी को इस बैग की तलाश है। वहीं, नंदन इन पैसों को संभालने में व्यस्त है। वह इसका जिक्र अपनी पत्नी से भी नहीं कर सकता है। वहीं, नंदन की पत्नी लता कम पैसे और खर्च से परेशान है। इन सबके बीच सिचुएशन कॉमेडी पैदा करने की कोशिश की गई है। 

क्या लगा ख़ास

- वेब सीरीज़ की सबसे ख़ास बात है इसकी कास्टिंग और एक्टिंग। हर एक्टर का चुनाव और उसका किरदार उस पर काफी जंचता है। दिल्ली बेल्ही के बाद विजय राज एक बार फिर गैंगस्टर की भूमिका में दिखे हैं। उनकी अदायगी में रवानी नज़र आती है। वहीं, नेता के किरदार में गजराज राव भी अपना कमाल दिखाते हैं। रणवीर शौरी एक भ्रस्ट लेकिन सख़्त पुलिस वाले के किरदार में हैं। उनको बार-बार देखने को दिल करता है। कुणाल खेमू परेशान आम आदमी नज़र आते हैं। हालांकि, रशिका के किरदार उतना मौका नहीं मिलता है फिर भी वह अपना काम बख़ूबी कर जाती हैं। इसके अलावा आपको टीवीएफ और यूट्यूब के दुनिया में सक्रिय कई किरदार नज़र आ जाएंगे। इन एक्टर्स को देखकर चेहरे खिल जाते हैं। अभिषेक बनर्जी ने एक बार फिर खुंद को कास्टिंग में सफ़ल साबित किया है। 

- फ़िल्म का डायलॉग्स भी काफी सही है। कुछ ऐसे पंच लिखे गए हैं, जो सही समय पर लैंड करते हैं। ख़ासकर जानवरों के साइंटिफिक नाम के सहारे काफी गुदगुदाने की कोशिश की गई है। वहीं, सामान्य बातचीत का इस्तेमाल तक कॉमेडी क्रिएट करने की भी ठीक-ठाक कोशिश की गई है। 

- निर्देशक राजेश कृष्णन एक मामले काफी हदतक सफ़ल हुए हैं, वह एक्टिंग को निकलाने में। सभी एक्टर्स का उन्होंने बखूबी इस्तेमाल किया है। हर छोटा-छोटा किरदार अपना इम्पैकट छोड़ जाता है। भले ही वह किरदार एक या दो सीन के लिए फ़िल्म में नज़र आया है। 

कहां रह गई कमी

- सबसे बड़ी कमी फ़िल्म के कॉन्सेप्ट में ही नज़र आती है। इससे पहले आप पैसे भरे बैग की पीछे को लेकर मचे चूहे बिल्ली के खेल को कई बॉलीवुड फ़िल्मों देख चुके हैं। फ़िल्म को देखते वक्त आपको दे दना दन जैसी फ़िल्मों की याद आती है। ऐसा लगता है कि पुरानी कहानी को नए पैकेट के साथ वापस कर दिया गया है। यहां तक कि अंत भी बिल्कुल वैसा ही है, जैसा आपको प्रियदर्शन की कई फ़िल्मों में देखने को मिलता है। यह फ़िल्म की सबसे बड़ी कमी है। 

- फ़िल्में के गाने भी काफी औसत हैं। एक गाना है, जो कहानी को आगे बढ़ता है। वहीं, बीच में एक आइटम सॉन्ग भी है। ऐसी फ़िल्म के साथ ऐसे प्रयोग से बचा जा सकता था। वहां, आपको एक ब्रेक-सा महसूस होता है।

- राजेश कृष्णनन के पुराने शो ट्रिपलिंग से परचित हैं, उन्हें काफी निराशा होने वाली है। वह एक फ्रेम में भले नज़र आ जाते हैं, लेकिन अपनी डेब्यू फ़िल्म में रवानगी लाने में नाकामयाब रहते हैं। 

अंत में 

लूटकेस कहानी पुरानी है, कॉन्सेप्ट पुराना है। लेकिन एक्टर्स इस पुरानी कहानी में भी अपनी और से जान डालने की पूरी कोशिश की है। एक्टर्स का यही प्रयास फ़िल्म को बोरिंग होने से बचा ले जाता है। हालांकि, हम इस बात का ख्य़ाल रखना चाहिए कि कॉमेडी एक मुश्किल जॉनर है।  


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