फिल्म रिव्यू: कौन कितने पानी में (1.5 स्टार)
नीला माधव पांडा की 'कौन कितने पानी में' रोचक व्यंग्यात्मक शैली में पानी की गंभीर समस्या से जूझते समाज की झलक देती है। फिलहाल यह क्षेत्र विशेष की समस्या लगती है। भविष्य में देश-विदेश के सभी शहरो में पानी के लिए झगड़े और फसाद होंगे। शेखर कपूर की महत्वाकांक्षी फिल्म
अजय ब्रह्मात्मज
प्रमुख कलाकार: कुणाल कपूर, राधिका आप्टे, सौरभ शुक्ला, गुलशन ग्रोवर
निर्देशकः निला माधव पांडा
स्टार: 1.5
नीला माधव पांडा की 'कौन कितने पानी में' रोचक व्यंग्यात्मक शैली में पानी की गंभीर समस्या से जूझते समाज की झलक देती है। फिलहाल यह क्षेत्र विशेष की समस्या लगती है। भविष्य में देश-विदेश के सभी शहरो में पानी के लिए झगड़े और फसाद होंगे। शेखर कपूर की महत्वाकांक्षी फिल्म 'पानी' इसी समस्या पर एक अलग सन्दर्भ में बन रही है। नीला के सामने सीमित बजट की चुनौती रही है। फिल्म देखते हुए कहानी की धारा कई बार टूटती दिखाई देती है। साथ ही व्यंग्य की यह फंतासी भी कल्पना की ऊंची उड़ान नहीं ले पाती।
नीला ने पानी को केंद्र में रख कर समाज की अनेक असमानताओं को पेश किया है। सम्पन्नता व्यक्ति की सोच को क्रूर और फूहड़ बना देती है। बांटने और शेयर करने के मानवीय गुणों से भी ऐसे लोग दूर रहते हैं। आसपास की दो बस्तियों में जातिगत भिन्नता भी है। सदियों से राज कर रहे राजा किस्म के जमींदार अपनी हवेलियों की हद में कैद रहते हैं। बदलाव की हवा नहीं नहीं छू पाती। उन्हें बदल गए समाज की भनक भी नहीं होती। इस फिल्म में ऐसी प्रवृतियों को नीला ने बहुत ही सरल और सरस तरीके से पेश किया है। नीला समाज में आ रहे परिवर्तनों को भी चरित्रों और प्रसंगों के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने फिल्म में भारतीय लोकतंत्र के असर को भी महत्व दिया है।
'कौन कितने पानी में' की एक खास खूबी सौरभ शुक्ला हैं। उन्होंने अपनी भाव-भंगिमाओं से किरदार को अनेकार्थी बना दिया है। उनका चरित्र बहुआयामी है। सौरभ ने उसके अनुरूप अदायगी भी बहुआयामी रखी है। पर्दे पर इस चरित्र से उन्हें मुक्त भाव से खेलते देख कर एहसास होता है कि कैसे कई बार कलाकार दी गई स्क्रिप्ट को एक अलग स्तर तक ले जा सकता है। सौरभ की यह यादगार भूमिका है। गुलशन ग्रोवर नीला के प्रिय कलाकार हैं। उन्होने अपने किरदार को संजीदगी से निभाया है। इस फिल्म में कुणाल कपूर और राधिका आप्टे भी हैं। राधिका इस साल अपनी फिल्मों से ठोस पहचान हासिल कर रही हैं। इस फिल्म में उनका छबीला अंदाज बताता है की अगर मौका मिले तो वह पॉपुलर फिल्मों की आकर्षक नायिका के रूप में भी भा सकती हैं। कुणाल कपूर की मेहनत दिखती है। वे पिछली फिल्मों से आगे आए हैं।
नीला ने इस फिल्म में गानों का सुन्दर फिल्मांकन किया है। अब उन्हें बड़े बजट की मनोरंजक फिल्म भी करनी चाहिए। वे सार्थक प्रयोग कर सकते हैं।
अवधिः 111 मिनट
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