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फिल्म रिव्यू: जल (2.5 स्टार)

क'छ की पृष्ठभूमि में बनी गिरीश मलिक की फिल्म 'जल' रेगिस्तान के बाशिंदों की कहानी है। फिल्म का नायक बक्का को उसके गांव के लोग जल का देवता कहते हैं। वह पारंपरिक यंत्रों और अनुमान से बता सकता है कि धरती के गर्भ में कहां पानी है।

By Edited By: Published: Fri, 04 Apr 2014 03:13 PM (IST)Updated: Fri, 04 Apr 2014 03:13 PM (IST)
फिल्म रिव्यू: जल (2.5 स्टार)

मुंबई, (अजय ब्रह्मात्मज)।

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प्रमुख कलाकार: पूरब कोहली, तनिष्ठा चटर्जी, कीर्ति कुल्हारी, यशपाल शर्मा, मुकुल देव।

निर्देशक: गिरीश मलिक।

संगतीकार: सोनू निगम और विक्रम घोष।

स्टार: ढाई

कच्छ की पृष्ठभूमि में बनी गिरीश मलिक की फिल्म 'जल' रेगिस्तान के बाशिंदों की कहानी है। फिल्म का नायक बक्का को उसके गांव के लोग जल का देवता कहते हैं। वह पारंपरिक यंत्रों और अनुमान से बता सकता है कि धरती के गर्भ में कहां पानी है। जाहिर सी बात है कि वह गांव का प्यारा है। गांव की एक लड़की उससे प्रेम करती है, लेकिन उसका दिल तो पड़ोसी गांव की लड़की केसर पर आ गया है। पानी की वजह से दोनों गांवों के बीच दुश्मनी है। तपते रेगिस्तान में कछ की जिंदगी में तब हलचल आती है जब विदेश से एक टीम अप्रवासी पक्षी फ्लेमिंग के बचाव के लिए जल की मात्रा बढ़ाने के इंतजाम में वहां आती है।

विदेशी टीम आरंभिक प्रयासों में विफल रहती है। स्थानीय राकला के सुझाव पर वे बक्का की मदद लेते हैं। उसके बताए स्थान पर खुदाई होती है तो पानी निकल आता है। बक्का के भाव बढ़ जाते हैं। उसे कांट्रैक्ट पर सरकारी नौकरी मिल जाती है। वह जींस-शर्ट पहनने लगता है। बाद में अपने गांव में पानी के लिए कुएं की खुदाई के दरम्यान वह मुश्किलों में फंसता है। उसकी नीयत पर शक किया जाता है। अचानक वह सभी की आंखों में खटकने लगता है। उसे गांव से निकाल दिया जाता है। कुछ नाटकीय दृश्यों के बाद फिल्म खत्म होने के समय पता चलता है कि उस पर विदेश में किताब भी लिखी गई और पुरस्कार के तौर पर रकम भी भेजी गई।

गिरीश मलिक ने कच्छ की पृष्ठभूमि में नए परिप्रेक्ष्य से स्थितियों और घटनाओं को रखा है। उन्होंने चरित्रों के अंतद्र्वद्व को उनके परिवेश में अच्छी तरह चित्रित किया है। वे दर्शकों को खुश करने की गरज से जहां-जहां भटके हैं, वे ही फिल्म की कमजोर दृश्य हैं। गांव में आ रहे बदलाव और परंपरा से जुड़ाव के टकराव को गिरीश ने बखूबी रेखांकित किया है। कच्छ के नैसर्गिक सौंदर्य का धूसर रंग फिल्म के कथ्य को प्रभावशाली बनाता है। फिल्म के सिनेमैटोग्राफर ने कछ के रेगिस्तान के उग्र सौंदर्य को किरदारों के मनोभावों के अनुरूप पर्दे पर उतारा है।

गिरीश मलिक ने पूरब कोहली को सुंदर मौका दिया है। पूरब बक्का के चरित्र को अच्छी तरह जीते हैं। कीर्ति कुल्हारी और तनिष्ठा चटर्जी निश्चित ही प्रतिभाशाली अभिनेत्रियां हैं। इस फिल्म में रवि गोसाई ने साबित किया है कि निर्देशक उन्हें मौका दें तो वे निराश नहीं करेंगे। लंबे समय के बाद मुकुल शर्मा को देखना भी सुखद रहा। यशपाल शर्मा ऐसी भूमिकाओं में बंध गए हैं।

अवधि-135 मिनट

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