फिल्म रिव्यू: ऋतुओं और रिश्तों का फ़साना 'शब' (दो स्टार)
छोटे से शहर का मोहन मॉडल बनने का सपना पाले दिल्ली आता है।
- स्मिता श्रीवास्तव
मुख्य कलाकार: रवीना टंडन, आशीष बिष्ट, अर्पिता चटर्जी आदि।
निर्देशक: ओनिर
निर्माता: संजय सूरी/ ओनिर
स्टार: 2 (दो स्टार)
ओनिर ने ‘शब’ में परिपक्वता और सूक्ष्मता के साथ दुनियावी ख्वाहिशों की लालसा को दर्शाया है। यह हाई सोसाइटी की स्पष्टता और खुलेपन को भी दर्शाती है। यह दिन में उजली और रात में मैली दिखती है। यह भावनाओं और मौसम के साथ गूंथे गए चार किरदारों की कहानी है। उनके सपनों, इच्छाओं और महत्वकांक्षा के बिखरने-जुड़ने की दास्तान है। छोटे से शहर का मोहन मॉडल बनने का सपना पाले दिल्ली आता है। वह फैशन दुनिया की चमक-धमक के स्याह पक्ष से नावाकिफ़ है। चकाचौंध भरी उस दुनिया में वह नाम, शोहरत और इज्ज़त कमाने को आतुर है। हाई सोसाइटी की सोनल मोदी उससे टकराती है। उसे लगता है सोनल उसे मौका दिला सकती है। अमीर व्यवसायी की पत्नी सोनल की हसरतें कुछ और होती है। वह उससे शारीरिक संबंध बनाती है। साथ ही उसे अपना पर्सनल ट्रेनर बनाती है। मोहन नाम उसे पुराना लगता है। उसे बदलकर अजफ़र कर देती है। अपनी चाहतों की पूर्ति साथ अजफ़र की ख्वाहिशों को पंख देती है। उसे पैसे देती है ताकि वह शानो-शौकत से रह सके। उसे फैशन डिजायनर से भी मिलाती है। मगर अपना दबदबा कायम रखती है।
मोहन मायावी जाल को शुरुआत में समझ नहीं पाता। सोनल के हाथ की कठपुतली बन जाता है। सोनल के कई लोगों के साथ नाजायज रिश्ते हैं। कोलकाता से आई रैना आफिया बन चुकी है। वह एक रेस्तरां में वेटर है। उसके अतीत का भी एक गुप्त रहस्य है। रेस्तरां का मालिक नील उसका दोस्त है। दोनों एक दूसरे के हमराज हैं। आफिया की एक छोटी बहन है। वह हास्टल में पढ़ती है। नील समलैंगिक है। उसका ब्वायफ्रेंड उसे छोडक़र शादी करना चाहता है। वह उस फैसले से नाखुश है। चौथा किरदार विदेशी है। वह रैना का पड़ोसी है। उसका भी कड़वा अतीत रहा है। ज़िंदगी चारों को एकदूसरे से मिलाती है। वहां से उनकी ज़िंदगी की कई परतें खुलती हैं। फिल्म को चार ऋतुओं ग्रीष्म, वर्षा, शरद और शीत में विभक्त कर के दर्शाया गया है। यह ऋतुएं रुपक के तौर पर इस्तेमाल की कई हैं। यह फैशन के सीजन और किरदारों के रिश्तों में बदलाव के बीच सेतु का काम करती है।
फिल्म का एक प्रसंग समाज के दोगलेपन की ओर सवाल भी उठाता है। मोहन का शादीशुदा महिला के साथ नाजायज संबंध है। लेकिन प्रेमिका का दागदार चरित्र नागवार गुजरता है। तब रैना का दोस्त कहता है कि पहले अपने गिरेबान में झांको। फैशन की चकाचौंध दुनिया, उसमें खोती मासूमियत, ताक पर रखे गए नैतिक मूल्य, प्यार और रिश्तों के कई प्रसंग कहानी को गढ़ते हैं। उन्हें जोड़ने में कुछ कड़िया कहीं गुम हो गई हैं। किरदारों को सतही तौर पर दिखाया गया है। उनकी गहराई में जाने से लेखक ने परहेज किया है। हाई सोसाइटी में जिस्मानी रिश्तों को तरजीह देने का स्याह पक्ष नया नहीं है। यह चौंकाता नहीं है। कुछ महत्वपूर्ण मसलों को दर्शकों की समझदारी पर ही छोड़ दिया है। मोहन और सोनल के रिश्ते में ठोस संवाद की कमी अखरती है। सिमोन फ्रेने के किरदार का अतीत अपराध और ग्लानि से लबरेज है। उसे उबारने की जरुरत लेखक-निर्देशक ने नहीं समझी। वह कमी स्पष्ट स्प से खटकती है। ‘शब’ में महानगरीय जीवन के परिपक्व नजरिए, समलैंगिकता और उभयलैंगिकता की भी पड़ताल की है। साथ ही दिखाया है कि गुजर-बसर करने की प्रवृत्ति नैतिक निर्णय लेने की अनुमति नहीं देती है। कमियों के बावजूद ‘शब’ का अंतर्निहित विषय कुछ गहन मुद्दों को उठाता है। फिल्म का पहला हिस्सा धीमी गति से आगे बढ़ता है। रिश्तों और उनकी जटिलताओं का खुलासा होने पर दूसरा हिस्सा गति पकड़ता है। कहानी का प्लाट प्रभावी है, मगर किरदारों को गूंथने में फिसल गई है। कमजोर पटकथा के चलते कहीं-कहीं उबाऊ लगती है। किरदारों में आशीष बिष्ट नवोदित हैं।
स्क्रिप्ट की सीमित सीमाओं में उन्होंने बेहतरीन काम किया है। छोटे शहरों के लोगों की भोलेपन और मासूमियत को बखूबी उकेरा है। अगर उनकी प्रतिभा का समुचित उपयोग हुआ तो इंडस्ट्री को एक उम्दा कलाकार मिलेगा। अर्से बाद रवीना बोल्ड किरदार में नजर आई हैं। उन्होंने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है। उनकी खूबसूरती उम्र से बेअसर दिखती है। सोनल के किरदार में वह जंचती हैं। उनके पति की भूमिका में संजय सूरी हैं। उनका कैमियो रोल है। रैना के किरदार में अर्पिता चटर्जी की बड़ी-बड़ी आंखें बहुत कुछ कह जाती हैं। उन्होंने किरदार को शिद्दत से निभाया है। हालांकि डायलाग डिलिवरी पर उन्हें काफी काम करने की जरुरत है। बाकी कलाकारों ने भी पटकथा के दायरे में उम्दा अभिनय किया है। मिथुन के संगीत से सजी फिल्म चुस्त एडिटिंग में मात खाती है।
अवधि : 108 मिनट