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फिल्म रिव्यू: बाजीराव मस्‍तानी (4 स्टार)

यह कहानी उस समय की है,जब मराठा साम्राज्‍य का ध्‍वज छत्रपति साहूजी महाराज के हाथों में लहरा रहा था और जिनके पेशवा थे बाजीराव वल्हाड़। तलवार में बिजली सी हरकत और इरादों में हिमालय की अटलता,चितपावन कुल के ब्राह्मनों का तेज और आंखों में एक ही सपना... दिल्‍ली के तख्‍त

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Fri, 18 Dec 2015 10:18 AM (IST)Updated: Fri, 18 Dec 2015 01:47 PM (IST)
फिल्म रिव्यू: बाजीराव मस्‍तानी (4 स्टार)

अजय ब्रह्मात्मज

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प्रमुख कलाकारः रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण, प्रियंका चोपड़ा
निर्देशकः संजय लीला भंसाली
स्टारः 4

यह कहानी उस समय की है,जब मराठा साम्राज्य का ध्वज छत्रपति साहूजी महाराज के हाथों में लहरा रहा था और जिनके पेशवा थे बाजीराव वल्हाड़। तलवार में बिजली सी हरकत और इरादों में हिमालय की अटलता,चितपावन कुल के ब्राह्मनों का तेज और आंखों में एक ही सपना... दिल्ली के तख्त पर लहराता हुआ मराठाओं का ध्वज। कुशल नेतृत्व, बेजोड़ राजनीति और अकल्पनीय युद्ध कौशल से दस सालों में बाजीराव ने आधे हिंदुस्तान पर अपना कब्जा जमा लिया। दक्षिण में निजाम से लेकर दिल्ली के मुगल दरबार तक उसकी बहादुरी के चर्चे होने लगे।

इस राजनीतिक पृष्ठभूमि में रची गई संजय लीला भंसाली की ऐतिहासिक प्रेमकहानी है ‘बाजीराव मस्तानी’। बहादुर बाजीराव और उतनी ही बहादुर मस्तानी की यह प्रेमकहानी छोटी सी है। अपराजेय मराठा योद्धा बाजीराव और बुंदेलखंड की बहादुर राजकुमारी मस्तानी के बीच इश्क हो जाता है। बाजीराव अपनी कटार मस्तानी को भेंट करता है। बुंदेलखंड की परंपरा में कटार देने का मतलब शादी करना होता है। मस्तानी पुणे के लिए रवाना होती है ताकि बाजीराव के साथ रह सके।

यहां बाजीराव बचपन की दोस्त काशीबाई के साथ शादी कर चुके हैं। मस्तानी के आगमन पर बाजीराव की मां नाखुश होती है। वह मस्तानी का तिरस्कार और अपमान करती हैं। बड़ी वजह उसका मुसलमान होना है। थोड़े समय के असमंजस के बाद बाजीराव तय करता है कि वह मस्तानी को अपना लेगा। रिश्तों के इस दास्तान में ही तब का हिंदुस्तान भी नजर आता है। उस समय की राजनीतिक और सामाजिक स्थितियों पर भी टिप्पणियां होती हैं।

संजय लीला भंसाली की ‘बाजीराव मस्तानी’ में कथात्मक तत्व कम हैं। ज्यादा पेंच और घटनाएं नहीं हैं। इस फिल्म में विपुल दृश्यात्मक सौंदर्य है। ऐसे विजुअल हिंदी फिल्मों में कम दिखाई पड़ते हैं। भंसाली ने सभी दृश्यों को काल्पनिक विस्तार दिया है। वे उन्हें भव्य और विशद रूप में पेश करते हैं। वाड़ा, महल, युद्ध के मैदान के चित्रण में में गहन बारीकी दिखाई पड़ती है। संजय और उनके तकनीकी सहयोगी बाजीराव के समय की वास्तु कला, युद्ध कला, वेशभूषा, सामाजिक आचरण और व्यवहार, राजनीतिक और पारिवारिक मर्यादाओं का कहानी में समावेश करते हैं।

उनके चित्रांकन के लिए आवश्यक भव्यता से वे नहीं हिचकते। अपनी खास शैली के साथ इस फिल्म में भी भंसाली मौजूद हैं। उस काल को दिखाने में उन्होंने ऐतिहासिक साक्ष्यों के साथ कल्पना का योग किया है। वे एक अप्रतिम संसार रचते हैं, जिसमें गतिविधियों का विस्तार करते हैं। वे उनके फिल्मांकन में ठहरते हें। राजसी कारोबार, पारिवारिक अनुष्ठान और युद्ध के मैदान में भंसाली स्वयं विचरते हैं और दर्शकों को अभिभूत करते हैं।

भंसाली ने बाजीराव, मस्तानी और काशीबाई के किरदार को गढ़ा है। साथ ही बाजीराव की मां, चीमा और नाना जैसे किरदारों से इस छोटी कहानी में नाटकीयता बढ़ाई है। देखें तो सभी राज और पेशवा परिवारों में वर्चस्व के लिए एक तरह की साजिशें रची गई हैं। बाजीराव खुद के बारे में कहता है...चीते की चाल, बाज की नजर और बाजीराव की तलवार पर संदेह नहीं करते, कभी भी मात दे सकती है।

हम फिल्म में स्फूर्तिवान बाजीराव को पूरी चपलता में देखते हैं। मस्तानी की आरंभिक वीरता पुणे आने के बाद पारिवारिक घात का शिकार होती है। उसकी आंखें पथरा जाती हैं। यों लगता है कि उसके सपने उन आंखों में जम गए हैं। किसी बाघिन को पिंजड़े में डाल दिया गया हो। बाजीराव से बेइंतहा मोहब्बत करने के साथ वह मर्यादाओं का खयाल रखने में वह संकुचित हो जाती है। काशीबाई के साथ स्थितियों ने प्रहसन किया है। फिर भी वह कठोर दिन होकर भी नारी के सम्मान और पति के अभिमान में कसर नहीं आने देती। संजय लीला भंसाली ने तीनों किरदारों को पर्याप्त गरिमा और परिप्रेक्ष्य दिया है। इनमें कोई भी भावनात्मक छल में नहीं शामिल है।

‘बाजीराव मस्तानी’ के मुख्य कलाकार प्रियंका चोपड़ा, दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह ने अपने किरदारों को आवश्यक गहराई और गंभीरता दी है। रणवीर तो अपने नाम के अनुरूप ही कुशल योद्धा दिखते हैं। युद्ध के मैदान में उनकी स्फूर्ति घुड़सवारी, तलवारबाजी और आक्रामकता में स्पष्ट नजर आती है। सेनापति के रूप में वे योद्धाओं को ललकारने में सक्षम हैं। रणवीर सिंह ने युद्ध के मैदान से लेकर भावनात्मक उथल-पुथल के घमासान तक में बाजीराव के गर्व और द्वंद्व को अपेक्षित भाव दिए हैं। दीपिका पादुकोण इस दौर की सक्षम अथनेत्री के तौर पर निखरती जा रही हैं।

उन्होंने योद्धा के कौशल और माशूका की कसक को खूबसूरती के साथ पेश किया है। बच्चे को कंधे पर लेकर युद्ध करती मस्तानी किसी बाघिन की तरह लगती है। प्रियंका चोपड़ा के किरदार काशीबाई के लिए अधिक स्पेस नहीं था। अपनी सीमित उपस्थिति में ही प्रियंका चोपड़ा पभावित करती हैं। इस किरदार को लेखक-निर्देशक का सपोर्ट भी मिला है। वास्तन में काशीबाई का किरदार ही बाजीराव और मस्तानी की प्रेमकहानी का पेंच है।

संजय लीला भंसाली ने 21 वीं सदी का दूसरी ऐतिहासिक फिल्म प्रस्तुत की है। इसके पहले हम आशुतोष गोवाकरकर की ‘जोधा अकबर’ देख चुके हैं। आशुतोष की तरह भंसाली ने भी अपने समय के सामाजिक,वैचारिक और धार्मिक मुद्दों को स्पर्श किया है। बाजीराव और मस्तानी के प्रेम की बड़ी अड़चन दोनों के अलग धर्म का होना है। संवादों और प्रसंगों के माध्यम से भंसाली ने बाजीराव के माध्यम से अपना पक्ष रखा है। खास कर मराठा राजनीति में इस ऐतिहासिक प्रसंग पर ध्यान देना चाहिए।

‘बाजीराव मस्तानी’ के प्रोडक्शन पर अलग से लिखा जा सकता है। संजय लीला भंसाली की टीम ने उस दौर को राजसी भव्यता और विशालता दी है। उन्होंने संगीत,सेट,पार्श्व संगीत,दृश्य संयोजन,युद्ध की कोरियोग्राफी में अपनी कुशलता जाहिर की है। फिल्म के वे हिस्से मनोरम और उल्लेखनीय है,जब पार्श्व संगीत पर गतिविधियां चल रही हैं। बिंगल,दुदुंभि,ढोल और नगाड़ों की ध्वनि जोश का संचार करती है। बगैर कहे ही सब उद्घाटित होता है।

फिल्म के क्लाइमेक्स से थोड़ी निराशा होती है। संभ्रम की स्थिति में आए बाजीराव के ये दृश्य लंबे हो गए हैं। हां, एक और बात उल्लेखनीय है कि फिल्म के अधिकांश कार्य व्यापार सूर्यास्त और सूर्योदय के बीच ही होते हें। गोधूलि वेला का फिल्म में अत्यधिक इस्तेमाल हुआ है। इसलिए फिल्म का रंग भी धूसर रखा गया है।

अवधिः 158 मिनट

फिल्म रिव्यू: दिलवाले (3 स्टार)

abrahmatmaj@mbi.jagran.com


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