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'हीरोपंती' में अहम किरदार में नजर आऐंगे बिक्रम सिंह

मुंबई। साउथ की फिल्मों के जरिए एक्टिंग का हुनर तराशने के बाद बिक्रम सिंह को मिला है सबीर खान की फिल्म 'हीरोपंती' में अहम किरदार निभाने का मौका। अपने किरदार के बारे में बताएं? मेरे किरदार का नाम रज्जो फौजी है। वह हरियाणवी है। वह एंटी हीरो है। उसे हम पूरी तरह विलेन करार

By Edited By: Published: Thu, 22 May 2014 11:55 AM (IST)Updated: Thu, 22 May 2014 11:55 AM (IST)
'हीरोपंती' में अहम किरदार में नजर आऐंगे बिक्रम सिंह

मुंबई। साउथ की फिल्मों के जरिए एक्टिंग का हुनर तराशने के बाद बिक्रम सिंह को मिला है सबीर खान की फिल्म 'हीरोपंती' में अहम किरदार निभाने का मौका।

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अपने किरदार के बारे में बताएं?

मेरे किरदार का नाम रज्जो फौजी है। वह हरियाणवी है। वह एंटी हीरो है। उसे हम पूरी तरह विलेन करार नहीं दे सकते। आम हरियाणवी युवकों की तरह टशन में रहता है। वही एकमात्र शख्स है, जो टाइगर श्रॉफ के किरदार बबलू शर्मा के खिलाफ लड़ रहा है।

.लड़ाई कहीं प्रेम त्रिकोण को लेकर तो नहीं है?

जी हां। सही कहा आपने। रज्जो फौजी को उसी लड़की डिंपी से प्यार है, जिसे बबलू चाहता है। हालांकि उसका प्यार एकतरफा है। ऐसे में रज्जो फौजी और बबलू के बीच टकराव किन हदों को पार करता है, फिल्म की कहानी उस बारे में भी है। फिल्म की पूरी कहानी मगर कुछ और ही है, जो लव स्टोरी के समानांतर ही चलती है।

'हीरोपंती' किस प्रकार मिली?

मैंने साउथ की ढेर सारी फिल्मों में विलेन के रोल किए हैं। दिल्ली का हूं भी और रज्जो फौजी के तौर पर साजिद नाडियाडवाला सर को हरियाणवी युवक की दरकार थी। उन्होंने मेरे कुछ रशेज देखे हुए थे। मैंने उनके ऑफिस जाकर इस रोल के लिए ऑडिशन देने की सोची। उन दिनों में हैदराबाद में साउथ की एक फिल्म की शूटिंग कर रहा था। वहां से एक दिन का ब्रेक लेकर मुंबई आया और इस किरदार के लिए ऑडिशन दिया। सौभाग्य से मेरा चयन हो गया।

साउथ में काम मिलना कितना आसान या मुश्किल है?

प्रतिभा और थोड़ी सी अच्छी नेटवर्किंग हो तो काम मिलने में मुश्किल नहीं आती है। वहां खास बात है कि आप की टांग खींचने वाले लोग कम हैं। अगर आप शिद्दत से काम कर रहे हैं तो प्रोडक्शन कंट्रोलर से लेकर निर्माता तक आपकी सिफारिश कर देते हैं। वहां काम हासिल करने के लिए जोड़-तोड़ की राजनीति नहीं चलती।

मायानगरी का हिस्सा बनने की क्या कहानी रही?

मेरा बचपन चंडीगढ़ में बीता। मैं फिर दिल्ली आ गया। हंसराज कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की। 19 साल का था, जब पिताजी चल बसे। उसके बाद से 'हीरोपंथी' तक अपने दम पर पहुंचा हूं। साल 2006 में आई 'सौतन' मेरी पहली हिंदी फिल्म थी। करण राजदान उसके निर्देशक थे। महिमा चौधरी मेरे अपोजिट थीं। फिर सालों छोटी फिल्में करता रहा। 'हीरोपंती' मेरे कॅरियर में टर्निग प्वॉइंट लाने वाली है। बचपन से मैं हीरो नहीं बनना चाहता था। सिर्फ एक्शन करना चाहता था। सौभाग्य से आज वह कर रहा हूं। हीरो या विलेन बनना और फिल्मों में काम करना तो सोने पर सुहागा है मेरे लिए।

(अमित कर्ण)


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