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अपनी पसंद का काम करना है - विकास बहल

‘क्वीन’ के बाद विकास बहल की नई फिल्म है शाहिद कपूर और आलिया भट्ट स्टारर ‘शानदार’। डेस्टिनेशन वेडिंग की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म और कई अन्य पहलुओं पर उनसे बात की स्मिता श्रीवास्तव ने

By Monika SharmaEdited By: Published: Sun, 18 Oct 2015 10:22 AM (IST)Updated: Sun, 18 Oct 2015 10:49 AM (IST)
अपनी पसंद का काम करना है - विकास बहल

‘क्वीन’ के बाद विकास बहल की नई फिल्म है शाहिद कपूर और आलिया भट्ट स्टारर ‘शानदार’। डेस्टिनेशन वेडिंग की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म और कई अन्य पहलुओं पर उनसे बात की स्मिता श्रीवास्तव ने...

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आप फिल्म इंडस्ट्री में किस बदलाव की अपेक्षा रखते हैं?
मुझे नहीं लगता कि फिल्म इंडस्ट्री में कुछ बदलने की जरूरत है। यहां बहुत लोग उम्दा काम कर रहे हैं। हां, कुछ सालों से स्क्रिप्ट पर ध्यान कम हो गया था। अच्छे लेखन की कमी थोड़ा अखर रही थी। हमें लगा कि इसके लिए लेखकों को प्रमोट करना चाहिए। मैंने वही किया। मुझे अपने पसंद के मुताबिक काम करना है। दर्शक भी वैराइटी चाहते हैं। उन्हें एक तरफ ‘आमिर’ जैसी फिल्म चाहिए, तो दूसरी तरफ ‘वेलकम’ जैसी कॉमेडी।

‘शानदार’ के सहलेखक चैताली परमार और अनविता दत्ता हैं। दोनों ने आपके साथ ‘क्वीन’ में भी काम किया था। कैसे आपने काम की शुरुआत की?
मैं और अनविता एक-दूसरे को करीब पंद्रह साल से जानते हैं। हम दोनों विज्ञापन कंपनी में एकसाथ काम करते थे, तब से साथ में लिखते हैं। ‘क्वीन’ की कहानी लिखने के दौरान मैं अनविता के संपर्क में नहीं था। उसका स्क्रीन प्ले लिखने के बाद मैं डायलॉग राइटर की तलाश में था, तभी मुझे अनविता का ख्याल आया। वो दिल्ली की हैं और वहां के लहजे को बखूबी व्यक्त करती हैं। चैताली मेरे ऑफिस में ही काम करती हैं। फिल्म का पहला ड्राफ्ट मैंने अपनी टीम को पढ़ने के लिए भेजा था। चैताली को पता नहीं था कि कहानी लिखी किसने है। उसने जब फीडबैक भेजा तो उसमें काफी कमियां निकाली। उस समय मैं कनाडा में था। मैंने उसे पढ़ा तो गुस्से में लिखा कि तुम्हें स्क्रीनप्ले की समझ नहीं है। धीरे-धीरे उसकी बातें मुझे सही लगने लगीं। मैंने उससे फिल्म लेखन से जुड़ने को कहा। तब से हम साथ में लिखते हैं।

‘शानदार’ किस किस्म की फिल्म है?
एंटरटेनिंग। हमारे यहां कोई समस्या हो या मुद्दा, उसे सनसनीखेज बनाया जाता है। ये गंभीर समस्याओं को भी हल्के-फुल्के अंदाज में डील करती है। ‘शानदार’ का आइडिया मोबाइल अपडेट्स देखकर आया। मैं सुबह उठकर मोबाइल में लोगों के स्टेटस अपडेट देखता था। ज्यादातर ने लिखा होता कि रातभर सो नहीं पाया। मुझे लगा लोगों के अफेयर होने का ये सबसे सही समय है। ‘शानदार’ भी अनिद्रा के शिकार दो लोगों की कहानी है। किस तरह किस्मत उन्हें मिलाती है, फिल्म इस संबंध में है। मेरी कोशिश है कि सिनेमाघर से बाहर आने पर लोगों के चेहरे पर मुस्कान हो। देखने के बाद संदेश मिले कि जिंदगी को हंस के जियो।

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शादी की पृष्ठभूमि पर पहले भी फिल्में बनीं हैं। ये कितनी अलग है?
‘शानदार’ में शादी का माहौल थोड़ा अलग है। ये डेस्टिनेशन वेडिंग है। इसमें आम गीत-संगीत या पार्टी नहीं दिखेगी। इस शादी की थीम पार्टी गुलाबो है। ये टिपिकल इंडियन शादी का आधुनिक स्वरूप है। शाहिद कपूर वेडिंग प्लानर की भूमिका में हैं, जो आलिया की बहन की शादी प्लान करते हैैं। पंकज कपूर आलिया के पिता की भूमिका में हैं।

शाहिद कपूर के सामने उनके पिता पंकज कपूर को ही क्यों कास्ट किया?
मेरा मानना था कि दोनों को साथ देखना दिलचस्प होगा। मगर पंकज जी बहुत प्रोफेशनल हैं। उन्होंने मुझसे स्क्रिप्ट मांगी और कहा कि उसे पढ़ने के बाद ही कोई फैसला लूंगा। तुम्हारे या किसी और के लिए फिल्म नहीं करूंगा।

करण जौहर से कैसे जुड़ना हुआ?
करण को ‘क्वीन’ बहुत पसंद आई थी। उसके बाद उन्होंने पूछा था कि क्या नया कर रहे हो? मुझे लगा उन्हें ‘शानदार’ के बारे में बताना चाहिए। उन्हें ये पसंद आएगी। करण उसी दौरान डेस्टिनेशन वेडिंग में शामिल होकर आए थे। उन्होंने मुझे दो घंटे तक इस तरह की शादियों की कहानियां सुनाई थीं। उसमें से तीन-चार किस्से उठाकर मैंने स्क्रिप्ट में डाल दिए। फिल्म में एक पीपी सीन है। दरअसल, पैरी पोना का शॉटकट है पीपी। ये शब्द करण ने बताया था। उन्हें किसी शादी में एक बंदा मिला था, जो दूर से ही लोगों को पीपी कर रहा था। वो हमने इस्तेमाल किया है।

अनुराग कश्यप अलग मिजाज की फिल्में बनाते हैं। आपकी फिल्मों की एडीटिंग वहीं करते हैं...
दोस्तों में भी प्रतिस्पर्धा होती है। कम लोगों में भावना होती है कि दोस्त आपसे अच्छी फिल्म बनाए। ये माहौल अनुराग ने बनाया है। जब वो ‘क्वीन’ एडिट कर रहे थे, तब अपनी फिल्म ‘अग्ली’ बना रहे थे। उन्होंने जरा भी जलन की भावना से काम नहीं किया। काम के प्रति वो बेहद ईमानदार हैं। वो हम सबको बाकी फिल्मों के प्रति ईमानदार नजरिया रखने को कहते हैं। अनुराग बहुत अच्छे फिल्ममेकर हैं। मैं उनकी तरह फिल्में कभी नहीं बना सकता। मैं विक्रमादित्य मोटवानी की तरह ‘लुटेरा’ नहीं बना सकता। मैं ‘देव डी’ नहीं बना सकता। वो सब ‘शानदार’ नहीं बना सकते। हमें पता है कि हमें किस तरह की फिल्में बनानी हैं। एक-दूसरे की मदद से ही हम बेहतरीन फिल्म बनाते हैं। अनुराग अगर मेरी जिंदगी में नहीं होते तो ‘क्वीन’ नहीं बनती। उन्होंने अपने काम से फिल्म में जान डाल दी।

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