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रिश्ते है मेरी असली कमाई-सुनील शेट्टी

एक जमाने में हिट एक्शन फिल्में देने वाले सुनील शेट्टी अब गिनी-चुनी फिल्मों में ही नजर आते हैं। वह भी अधिकांश छोटे बजट की। 'कोयलांचल' भी उसी मिजाज की फिल्म है, लेकिन उन्हें उसका मलाल नहीं। वह खुश हैं कि दो दशक के कॅरियर में उन्होंने रिश्ते कमाए हैं। उनसे बातचीत के

By Edited By: Published: Thu, 01 May 2014 12:08 PM (IST)Updated: Thu, 01 May 2014 12:08 PM (IST)
रिश्ते है मेरी असली कमाई-सुनील शेट्टी

एक जमाने में हिट एक्शन फिल्में देने वाले सुनील शेट्टी अब गिनी-चुनी फिल्मों में ही नजर आते हैं। वह भी अधिकांश छोटे बजट की। 'कोयलांचल' भी उसी मिजाज की फिल्म है, लेकिन उन्हें उसका मलाल नहीं। वह खुश हैं कि दो दशक के कॅरियर में उन्होंने रिश्ते कमाए हैं। उनसे बातचीत के अंश-

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कोयला फिल्मकारों के लिए हीरा साबित हो रहा है। 'कोयलांचल' से कितनी उम्मीदें हैं?

बहुत ज्यादा। 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' या 'गुंडे' की बात करें तो उन दोनों फिल्मों में कोयला बैकड्रॉप में था। असल कहानी गैंगवॉर या फिर दोस्ती की थी। 'कोयलांचल' पहली खालिस कोयले की कहानी है। हम फिल्म में उस अंचल की बात कर रहे हैं, जहां कोयला मिलता है। वहां की हुकूमत, कोयला माफिया, मजदूर यूनियन और वहां के लोगों की जिंदगी को हमने हू-ब-हू पर्दे पर उतारा है। हमनें धनबाद, झरिया और रानीगंज जैसे रियल लोकेशन पर जाकर फिल्म शूट की है।

आपका क्या किरदार है फिल्म में?

मैं आईएएस ऑफिसर निशि कुमार की भूमिका में हूं। उसकी पोस्टिंग उस अंचल में इरादतन की जाती है। उसे वहां की गंदगी साफ करनी है। सिस्टम की गहराई में उतरने पर उसे कठिनाइयों का अहसास होता है। वह युक्ति से कैसे माफियाओं द्वारा बना दिए गए समानांतर सरकार को ध्वस्त करता है, फिल्म उस बारे में है। साथ ही फिल्म में इसकी भी चर्चा है कि कैसे कोयला हमारी जिंदगी से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। उसकी कीमतों में उतार-चढ़ाव कैसे मुद्रास्फीति के जरिए हमारी किचन, पॉवर सप्लाई नियंत्रित होती है।

आशु त्रिखा के संग आप काम कर रहे हैं, जबकि उनकी पिछली फिल्म 'एनिमी' फीकी रही थी?

उस फिल्म के प्रमोशन पर जरा भी खर्च नहींकिया गया था। मिथुन दा, मैं व आशु सभी फिल्म के वितरक से खासे निराश हुए। फिल्म को थिएटर भी नहीं मिले। फलस्वरूप फिल्म नहीं चल सकी।

आज के जमाने में फिल्में बनाना आसान है, मगर रिलीज करना बहुत मुश्किल। फिर भी लगातार छोटे बजट की फिल्में बनती रहती हैं। यह चक्र कैसे चलता रहता है?

उम्मीद से। पैशन से कि कभी-न-कभी तो उनकी किस्मत भी चमकेगी। फिर जिनका कंटेंट बढि़या है, वे अंतत: बाजी मार ले जाते हैं।

आपके समकालीन अक्षय कुमार आपसे बहुत आगे। कहां कोर-कसर रह गई?

मैंने दिमाग के बजाय दिल से फैसले लिए। मेरे लिए हिट या फ्लॉप के ज्यादा मायने नहीं रहे। मैंने लगातार उन निर्देशकों के लिए भी फिल्में कीं, जो लगातार फ्लॉप फिल्में भी देते रहे, पर इतने सालों बाद पोजिशन नहीं, पर रिश्ते जरूर कमाए हैं।

(सप्तरंग टीम)

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