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मैं सामाजिक फिल्मकार हूं: प्रकाश झा

मुंबई। अपनी पिछली तीन फिल्मों में एक के बाद एक तीन बड़े मसले उठा चुके प्रकाश झा अब फिर से एक बार मल्टीस्टारर फिल्म 'सत्याग्रह' लेकर आ रहे हैं। हालांकि, उनकी पिछली कई फिल्मों का क्राफ्ट और सार एक सा ही है। फिर भी वह इसे अलग मानते हैं। उनसे बातचीत के अंश: क्या सत्याग्रह विशुद्ध तौर

By Edited By: Published: Thu, 22 Aug 2013 01:18 PM (IST)Updated: Thu, 22 Aug 2013 01:42 PM (IST)
मैं सामाजिक फिल्मकार हूं: प्रकाश झा

मुंबई। अपनी पिछली तीन फिल्मों में एक के बाद एक तीन बड़े मसले उठा चुके प्रकाश झा अब फिर से एक बार मल्टीस्टारर फिल्म 'सत्याग्रह' लेकर आ रहे हैं। हालांकि, उनकी पिछली कई फिल्मों का क्राफ्ट और सार एक सा ही है। फिर भी वह इसे अलग मानते हैं। उनसे बातचीत के अंश:

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क्या सत्याग्रह विशुद्ध तौर पर राजनीतिक फिल्म है?

नहीं तो, किसने कहा। राजनीतिक फिल्म वह होती है, जिसमें राजनीति की बात हो। दिल्ली में इंडिया गेट पर बच्चे जुटे थे, क्या वे राजनीति कर रहे थे? क्या वे किसी राजनीतिक दल का हिस्सा थे? क्या वे किसी के उकसाने पर वहां गए थे?

लेकिन वहां कुछ लोग राजनीति करने गए थे?

यह फिल्म अन्ना आंदोलन के इर्द-गिर्द नहीं है। यह फिल्म एक बाप-बेटे के जीवन पर आधारित है। सामाजिक चेतना की बात भी इसी कहानी के माध्यम से हमने की है।

यही बात आपने 'चक्रव्यूह' के दौरान कही थी कि फिल्म दो दोस्तों की कहानी है?

तो उसमें गलत क्या कहा था, वह दो दोस्तों की कहानी थी, जिसमें नक्सलवाद का बैकड्रॉप था। मैं अपनी फिल्में एक सामाजिक चेतना को ध्यान में रखकर बनाता हूं कि कहीं न कहीं आम दर्शक तक मेरी बात पहुंचनी चाहिए। 'सत्याग्रह' में मैं एक विशेष कालखंड की कहानी नए तरीके से कहना चाह रहा हूं।

एक के बाद एक मल्टीस्टारर फिल्में बनाना आपके लिए कहीं आसान सा नहीं हो गया है?

नहीं, आसान नहीं है। अभी भी मुझे उतनी ही नर्वसनेस होती है जितनी 'दामुल' बनाने के वक्त हुई थी। अभी भी मैं उतना ही घबराता हूं जितना मैं कॅरियर के आरंभिक दौर की फिल्में बनाते वक्त घबराता था। हर फिल्म का अपना एक खांचा होता है। इस फिल्म का भी है। भरी गर्मी में सैकड़ों लोगों के साथ सेट पर काम करना और बडे़ सितारों को मैनेज करना क्या आपको लगता है कि आसान काम है। मुझे तो बिल्कुल भी नहीं लगता है।

एक साक्षात्कार में अपना कहा था कि अजय देवगन मोस्ट इकनॉमिकल अभिनेता हैं..इकनॉमिकल से मेरा मतलब अभिनय की इकनॉमी से लगाया जाए। उनको पता है कि किसी सीन में कितना इन्वेस्टमेंट करना है। सिर्फ मेरी फिल्माें की बात न कीजिए, रोहित शेट्टी या फिर राम गोपाल वर्मा की 'कंपनी' देखकर आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं।

आपकी फिल्मों में मीडिया एक हिस्सा प्रारंभ से रहा है। क्या मीडिया आज ऐसी स्थिति में है कि लोगों की राय बदले और सरकारें भी?

नहीं बिल्कुल नहीं। हमारे यहां का मीडिया लोगों को गुमराह कर रहा है। जिस देश का मीडिया एक नेता द्वारा कुत्ते के बच्चे संबंधी बयान पर तीन दिनों तक पैनल डिस्कशन करता है उससे हम क्या उम्मीदें कर सकते हैं। देश की राजनीति को गुमराह किया जा रहा है। यहां के बयान वहां और वहां के बयान यहां किए जा रहे हैं।

आप 2014 के आम चुनाव में क्या फिर से हिस्सा लेने वाले हैं?

वह मेरे जीवन का एक क्लोज चैप्टर है। मैं जनता के बीच गया था यह सोच कर कि उनके लिए कुछ कर सकूं, लेकिन उन्होंने मौका नहीं दिया। अब मैं फिर से कोई कोशिश नहीं करने वाला हूं। मैंने राजनीति को अलविदा कह दिया है।

'सत्याग्रह' के बाद क्या? इस बार आपके दफतर में कोई नई होर्डिग या बिलबोर्ड नहीं दिख रहा है?

नहीं अभी बस आइडिया है। पिछली बार 'चक्रव्यूह' के दौरान ही हमने 'सत्याग्रह' का पोस्टर डिजाइन करवा लिया था। ये चारों फिल्में सालों पहले एक साथ सोच ली गई थी, लेकिन उन्हें बारी-बारी से लिखा गया है।

दुर्गेश सिंह

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