स्टार नहीं बनना चाहता - राम कपूर
राम कपूर ने अपनी मेहनत के बल पर स्मॉल स्क्रीन पर हीरो की परिभाषा को बदल दिया है। उनसे यशा माथुर की बातचीत के अंश...
राम कपूर ने अपनी मेहनत के बल पर स्मॉल स्क्रीन पर हीरो की परिभाषा को बदल दिया है। उनसे यशा माथुर की बातचीत के अंश...
अनुष्का पर कमेंट करने के लिए गावस्कर की हुई खूब खिंचाई
स्मॉल स्क्रीन पर आपने हीरो की परिभाषा को एक नया अर्थ दिया है। क्या आप कभी ऐसा फील करते हैं कि मैं भी आजकल के हीरोज की तरह एक्टिंग करते नजर आऊं?
ऐसा कभी नहीं फील किया मैंने। हां, मैं यूनीक दिखना चाहता हूं। वैसे भी मैं एक्टिंग के करियर में आइडियल हीरो बनने के लिए नहीं आया था। मैं एक एक्टर बनने आया था। चाहे वह कैरेक्टर एक्टर हो, या सपोर्टिंग। मैं खुद को एक्टर के रूप में जानना चाहता हूं। स्टार नहीं बनना चाहता। बहुत खुश हूं कि अच्छे काम मिल रहे हैं। करियरवाइज मैं खुद को आदर्श नहीं बनाना चाहता।
एक्टर बनने की चाहत कब जागी?
मैं अमिताभ बच्चन जी के शेरवुड कॉलेज से हूं। दो चीजें अच्छी थीं उस स्कूल में। एक फुटबॉल टीम और दूसरा थियेटर। नाइंथ क्लास तक मैं रूखा टाइप था। किसी चीज में इंट्रेस्ट नहीं था। एक्टर बनने का कोई एंबीशन नहीं था लेकिन आमिर रजा हुसैन साहब हमारे स्कूल आए और उन्होंने मुझे कास्ट कर लिया। पता नहीं क्यूं? बाद में पता चला उन्होंने मेरी आवाज को पसंद किया था। उन्हें एक्टर नहीं चाहिए था, क्योंकि एक्टिंग तो उन्हें सिखानी थी, उन्हें एक अच्छी आवाज चाहिए थी अपने कैरेक्टर के लिए। उस दौरान तीन महीने उनके साथ काम किया और परफॉर्मेंस दीं तो एक्टिंग का कीड़ा मुझमें घुस गया। उन्होंने मुझमें बीज डाला। उसके बाद मैं थियेटर करता रहा।
कैरेक्टर के लिए हां कहने से पहले क्या आप सोचते हैं कि दर्शक आप किस रूप में देखना चाहते हैं?
किसी भी कैरेक्टर को फाइनल करते समय मैं ये नहीं सोचता कि ऑडियंस मेरे काम को कैसे रिसीव करेगी। अगर यह सोचूंगा तो सिक्योर व प्रोटेक्टिव सीन करने लग जाऊंगा। इससे मेरी ग्रोथ रुक जाएगी। मैं एक्सप्लोर करता हूं। ग्रोइंग रहना चाहता हूं। आर्ट फॉर्म्स को एंजॉय करना चाहता हूं। अगर एक जैसा काम करता रहा तो किसी दिन यही ऑडियंस बोलेगी कि कुछ और दिखाओ। मैं अपने कैरेक्टर में पर्सनल लाइफ को देखता हूं। मैं एक्टिंग नहीं कर रहा होता हूं, फील कर रहा होता हूं। स्क्रीन वाइफ के साथ सीन करता हूं तो रियल वाइफ गौतमी मेरी कल्पना में होती है। जब बीवी पर शाउट कर रहा होता हूं तो सोचता हूं जैसे गौतमी पर शाउट कर रहा हूं।
क्या आप रियल लाइफ में भी इतने ही केयरिंग हसबैंड हैं जितने स्क्रीन पर दिखते हैं?
मैं रियल लाइफ में भी केयरिंग और सॉफ्ट हूं। बहुत सेंसेटिव हूं। आर्टिस्ट सेसेंटिव होता ही है। जिस किसी में भी क्रिएटिव फीलिंग होगी वह सेंसेटिव होगा ही। इमोशनल फिल्में देखकर मैं रोता हूं लेकिन अपनी इस संवेदनशीलता को अपने काम में यूज करता हूं।
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धारावाहिक ‘दिल की बातें’ में आपका कैरेक्टर कैसा है?
इस कैरेक्टर में मैं मिडिल क्लास से हूं। स्ट्रगल है लेकिन फैमिली आपस में काफी क्लोज्ड है। खुशी बसती है हमारे घर में। मुझे इस कैरेक्टर के लिए कुछ खास तैयारी नहीं करनी पड़ी। रियल लाइफ में मैं मैरिड हूं। मेरे बच्चे भी हैं इसलिए बहुत जल्दी कनेक्ट हो गए इस कैरेक्टर से। इसे रियल लाइफ से कनेक्ट कर लिया मैंने। कैमरे के सामने होते हुए भी मेरी फैमिली मेरे माइंड में रही। मैंने गौतमी को देखा और सोचा कि मैं इस स्थिति से कैसे निकलूंगा। मैं इस कैरेक्टर के काफी क्लोज हूं। इस सीरियल में हमने एक ऐसे सब्जेक्ट को छुआ है जिस पर कोई बात नहीं करना चाहता लेकिन बहुत से परिवार आज कैंसर के ट्रॉमा से गुजर रहे हैं। मेरा इमोशनल रोल है, जो लोगों को पसंद आएगा।
क्या इस धारावाहिक में बाप और बेटी के रिश्ते भी नजर आएंगे?
जी, डॉटर-फादर के रिलेशनशिप को काफी हद तक एक्सप्लोर किया जाएगा। जब हम सेकंड फेज में आएंगे तो यह लाइन धुंधली हो जाएगी कि कौन पैरेंट है, कौन बेटी। रियल लाइफ में मैं भी एक बेटी का फादर हूं। मेरा बुढ़ापा आएगा तो मेरी बेटी मुझे किस तरह से रोकेगी-टोकेगी, मुझे गाइड करेगी। इसे एक्सप्लोर करेंगे हम। इसे फील किया है मैंने। मेरी बेटी सिया बहुत छोटी है अभी। कई बार लोग कहते हैं कि शादी कर दो यह सुधर जाएगा लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ। शादी हुई तो नहीं सुधरा लेकिन जब बेटी पैदा हुई तो सुधर गया। फादर बनने के बाद मैं बहुत बदला हूं।
क्या गौतमी फिटनेस को लेकर काफी कॉन्शस हैं और आप थोड़ा कम?
वो फिटनेस फ्रीक ही नहीं है, फिटनेस को लेकर पागल है। फिटनेस को लेकर उसकी मैडनेस अलग है। वे किस हद तक फिटनेस को चाहती हैं, मैं आपको बता नहीं सकता। हम दोनों जैसा ऑपोजिट शायद इस दुनिया में कोई नहीं होगा लेकिन ऑपोजिट होते हुए भी हम दोनों बारह साल से एक अच्छी शादीशुदा जिंदगी बिता रहे हैं!