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अब पहचानने लगे हैं लोग - राधिका आप्टे

यह साल राधिका आप्टे के लिए काफी सौभाग्यशाली रहा। ‘बदलापुर’, ‘हंटर’, ‘मांझी द माउंटेनमैन’ के बाद उनकी फिल्म ‘कौन कितने पानी में’ रिलीज होने को तैयार है। इस बीच रिलीज हुई सुजॉय घोष की चौदह मिनट की शॉर्ट फिल्म ‘अहिल्या’ में उनकी भूमिका की काफी सराहना हुई। ‘वाह लाइफ हो

By Monika SharmaEdited By: Published: Sun, 23 Aug 2015 12:22 PM (IST)Updated: Sun, 23 Aug 2015 12:51 PM (IST)
अब पहचानने लगे हैं लोग - राधिका आप्टे

यह साल राधिका आप्टे के लिए काफी सौभाग्यशाली रहा। ‘बदलापुर’, ‘हंटर’, ‘मांझी द माउंटेनमैन’ के बाद उनकी फिल्म ‘कौन कितने पानी में’ रिलीज होने को तैयार है। इस बीच रिलीज हुई सुजॉय घोष की चौदह मिनट की शॉर्ट फिल्म ‘अहिल्या’ में उनकी भूमिका की काफी सराहना हुई। ‘वाह लाइफ हो तो ऐसी’ में छोटे से रोल से करियर की शुरुआत करने वाली राधिका को फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े दस साल हो रहे हैं।

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संघर्ष अभी जारी है
संघर्ष के दिनों को याद करते हुए राधिका कहती हैं, ‘मैंने बहुत बार ऑडिशन दिया। चांस मिलने के लिए कॉल का इंतजार करती थी। शुरुआत में पुणे से मुंबई आने पर मुझे यहां की तेज रफ्तार जिंदगी रास नहीं आई, तो सात महीने बाद मैं वापस अपने घर पुणे चली गई। मेरा संघर्ष अभी भी जारी है, बस फर्क इतना है कि अब लोग मुझे पहचानने लगे हैं। अब मेरे पास कई प्रस्ताव हैं।’ राधिका को पहली फिल्म ‘वाह लाइफ हो तो ऐसी’ के लिए कोई फीस नहीं मिली थी। वह बताती हैं, ‘कॉलेज का फर्स्ट ईयर था। मैं एक प्ले कर रही थी। उस कंप्टीशन के जज महेश मांजरेकर थे। उन्होंने पूछा कि रोल करोगी तो मैंने हां कर दिया। जब फिल्म की फीस मिली तो वह इतनी थी कि मैंने उसे खाने-पीने में ही खर्च कर दिया। सोचा कम पैसे मिल रहे हैं लेकिन यह कोई नई बात नहीं है। पहचान पाने के लिए सभी समझौता करते हैं।’

पानी पर फिल्म की कहानी
राधिका की अगली फिल्म नीला माधव पांडा निर्देशित ‘कौन कितने पानी में’ ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित है। राधिका बताती हैं, ‘वे एंटरटेनिंग फिल्म बनाते हैं और उसमें कोई सामाजिक मुद्दा भी जुड़ा होता है। इसकी कहानी में दो गांव हैं, जिनमें एक ऊंचा और दूसरा नीचे बसा है। ऊंचे गांव के पास पानी नहीं हैं। वहां पानी का महत्व इतना बढ़ गया है कि पानी करेंसी बन गया है। पुजारी के पास जाना हो या किसी से सामान लेना हो, पैसे के बजाए पानी के पैकेट देने पड़ते हैं। पानी के लिए ऊंचे गांव के राजा का बेटा नीचे गांव की लड़की यानी मुझे इंप्रेस करने आता है। इसमें मुझे डांस करने का भी मौका मिला है। इसमें लोकनृत्य है, जबकि मैंने कंटेंप्रेरी सीखा है। लिहाजा थोड़ा मुश्किल था। मुझे ऐसे स्टेप्स दिए गए, जिन्हें आनन-फानन में शूट करना था। इस दौरान मैं थोड़ा नर्वस भी थी।’

पता है पानी का मोल
राधिका बताती हैं, ‘मैं पुणे से हूं। बचपन में बहुत घूमी हूं और गांवों में भी रहना हुआ है। मुझे वहां की सादगी अच्छी लगती है। मुझे छोटे शहरों या ग्रामीण इलाकों में शूटिंग करना पसंद है। हमारे यहां पॉश क्षेत्र में कम, बाकी इलाकों में बिजली कटौती ज्यादा होती थी। एक समय ऐसा था कि गुरुवार को बिजली ही नहीं आती थी। मेरे माता-पिता ने पानी और बिजली की बचत करने के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया। अगर हम कमरे में पंखा चलता छोड़ जाएं या पानी बहाकर ब्रश करें तो खूब डांट पड़ती थी। लिहाजा दोनों की अहमियत बखूबी समझती हूं।’

बोल्ड का अर्थ ‘साहसी’
राधिका ने कई बोल्ड और ग्लैमरस किरदार निभाए हैं लेकिन वे अपने निभाए किरदारों को बोल्ड नहीं मानतीं। बोल्ड को परिभाषित करते हुए वे कहती हैं, ‘मेरे मुताबिक बोल्ड का अर्थ है ‘साहसी’। आपके बैकग्राउंड के अनुरूप बोल्ड की परिभाषा कुछ और भी हो सकती है। मेरी परवरिश बहुत लिबरल हुई है। सिनेमा में जिसे बोल्ड कहा जाता है, मैं उसे काम का हिस्सा समझती हूं। मैंने ‘बदलापुर’ या ‘हंटर’ में जो सीन दिए वो कहानी की मांग थे। मैं किरदार के अनुरूप काम करती हूं। मेरे माता-पिता लिबरल हैं। मेरे फैसलों में उन्होंने कभी हस्तक्षेप नहीं किया। उनका यही कहना है कि जो तुम्हें सही लगे वह करो।’

पूरी हुई मुराद
राधिका एक तमिल फिल्म में रजनीकांत के साथ काम करने को लेकर बेहद उत्साहित हैं। वह कहती हैं, ‘यह मुंहमांगी मुराद पूरी होने जैसा है। उनकी सभी फिल्में एंटरटेनिंग रही हैं। वो कुछ भी करें, वो स्टाइल बन जाता है। मुझे उनकी ‘शिवाजी’ और ‘रोबोट’ पसंद हैं। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि घर बैठे मुझे यह प्रस्ताव मिलेगा। मैं यह फिल्म रजनीकांत और स्क्रिप्ट दोनों के लिए कर रही हूं। वैसे भी मैं रजनीकांत के साथ कोई भी फिल्म कर सकती हूं।’

शॉर्ट फिल्मों का भविष्य
देश में शॉर्ट फिल्मों का भविष्य राधिका को उज्जवल दिखता है। वह कहती हैं, ‘हम बदलाव की प्रक्रिया में हैं। सबको मोबाइल पर फिल्म देखनी होती है। शॉर्ट फिल्म की रीच बहुत है और रिस्क कम। उसे फिल्म की तरह ही शूट किया जाता है। बस शूटिंग जल्दी खत्म हो जाती है।’

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