ताजा हो रही हैं पुरानी सोच-'जैकी भगनानी'
रंगरेज में सराहना पाने के बाद अब जैकी भगनानी अगली फिल्म 'यंगिस्तान' में ब्रांड न्यू अवतार में दिखाई देंगे। इस फिल्म में वह एक ऐसे युवा राजनेता की भूमिका में हैं, जो नॉर्म्स को तोड़ राजनीति की नई परिभाषा गढ़ना चाहता है। उनसे बातचीत के अंश: किन मुद्दों का समाव
मुंबई। रंगरेज में सराहना पाने के बाद अब जैकी भगनानी अगली फिल्म 'यंगिस्तान' में ब्रांड न्यू अवतार में दिखाई देंगे। इस फिल्म में वह एक ऐसे युवा राजनेता की भूमिका में हैं, जो नॉर्म्स को तोड़ राजनीति की नई परिभाषा गढ़ना चाहता है। उनसे बातचीत के अंश:
किन मुद्दों का समावेश फिल्म में किया गया है?
यह पूरी फिल्म ही युवाओं को समर्पित है। हां हम 'यंगिस्तान' से युवाओं व युवा शब्दों के पारंपरिक मायने बदलना चाहते हैं, जैसा 'फालतू' से फालतू का मतलब हमने बदला था। यंगिस्तान एक जज्बा है, जो उम्र का मोहताज नहीं है।
फिल्म की पृष्ठभूमि में राजनीति है। वह विषय बड़ा गूढ़ है। फिल्म में उसकी तह तक जाने की कोशिश हुई है?
हुई है, पर हमने तरीका अलग रखा है। हमारी फिल्म का नायक पारंपरिक तरीकों से विपक्षी पार्टियों पर आरोप-प्रत्यारोप नहीं लगाता। वह व्यक्तिगत जिंदगी में वह सब करता है, जो एक आम युवा करता है। पॉलिटिशियन होने के नाते वह कोई आवरण ओढ़ कर नहीं चलता। वह लोगों से नेता नहीं, उनका दोस्त बनकर बातें करता है। भाषण में तकनीकी शब्द नहीं, सहज भाषा का इस्तेमाल करता है। वह प्रवचन देने में यकीन नहीं रखता, जो यंगस्टर्स को पसंद है। वह कहता है कि गलतियां उससे भी हो सकती हैं। हां, अगर वह एक ही गलती बार-बार दोहराए तो जरूर उसे कटघरे में लो।
युवा कॅरियर के तौर पर मेडिकल, इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों को ही तरजीह देते हैं। राजनीति से वह दूरी बनाए रखना चाहते हैं..
वैसी सोच दरक तो रही है। हमने 'फालतू' में दिखाया था कि कैसे न्यूट्रीशन, डायटीशियन और अन्य विधाओं में भी कॅरियर के अच्छे ऑप्शन हैं। मसाज थेरेपिस्ट का ही उदाहरण लें। उनके काम को पहले नीची निगाहों से देखा जाता था। अब, वे एक सेशन के 3,000-5,000 रुपए चार्ज करते हैं। दिल्ली विधानसभा चुनावों के बाद से जो हालात बने हैं, उसके बाद से अब जरूर युवा भी राजनीति में कॅरियर को लेकर गंभीर होंगे। समर्थ युवा के हाथों में देश की कमान होगी तो तरक्की को कौन रोक लेगा? मेरा किरदार अभिमन्यु सिंह काम के वक्त काम में मशगूल रहता है, मस्ती के समय मस्ती। उसकी जिंदगी खुली किताब है। असल जिंदगी में राजनेता अपने प्रेम प्रसंगों को जनता के समक्ष नहीं आने देते। अभिमन्यु वैसा नहीं है। वह आम युवक की तरह सबके समक्ष पेश आता है।
आप अपने सफर को कैसे देखते हैं?
बचपन के दिनों को साझा करना चाहूंगा। उस वक्त मैं बहुत मोटा था। मेरी बाएं हिप में प्रॉब्लम थी। उन सबसे निजात पाते हुए मैंने फिल्मों में काम करना शुरू किया। कुछ फ्लॉप हुयींतो कई ने औसत काम किया, पर काम के प्रति मेरी ईमानदारी पर कोई ऊंगली नहीं उठा सकता।
(अमित कर्ण)