यह एक रिवेंज ड्रामा है
अपने मिजाज की और डार्क फिल्मों से हिंदी फिल्म जगत में पैठ बनाने वाले फिल्मकार अनुराग कश्यप अब मसाला फिल्मों की ओर मुड़ गए हैं। उनकी अगली फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर है।
अपने मिजाज की और डार्क फिल्मों से हिंदी फिल्म जगत में पैठ बनाने वाले फिल्मकार अनुराग कश्यप अब मसाला फिल्मों की ओर मुड़ गए हैं। उनकी अगली फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर है। वे इसे हाउसफुल-2 और सिंघम जैसा बता रहे हैं। बातचीत अनुराग कश्यप से..
. फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर की कहानी क्या है? इसे हम किस जोनर की फिल्म कहेंगे?
इसकी कहानी उस काल की है, जब अंग्रेजी हुकूमत अपनी आखिरी सांसें गिन रही थी। शाहिद खान एक लुटेरा है। वह अंगे्रजों की ट्रेनें लूटता है। बाद में वह रमाधीर सिंह के कोयला खान में मजदूरी करता है। डाकू से मजदूर बनने पर उसकी जगहंसाई होती है। इससे नाराज शाहिद का बेटा सरदार खान यानी मनोज बाजपेयी इलाके का दबंग अपराधी बन जाता है। उसका एक ही मकसद है, अपने दुश्मनों से बदला लेना। रमाधीर सिंह बने हैं तिग्मांशु धूलिया, जबकि शाहिद खान का रोल जयदीप अहलावत ने किया है। कहानी सच्ची घटनाओं पर आधारित है, जिसे जीशान कादरी ने लिखा है। यह वासेपुर के पास के इलाके की कहानी है और एक रिवेंज ड्रामा है।
कॉन फिल्म फेस्टिवल में इस फिल्म के प्रति लोगों का कैसा रेस्पॉन्स मिला?
जैसा इंडिया में दबंग जैसी फिल्म की रिलीज पर लोगों की प्रतिक्त्रिया होती है। मैं दंग रह गया कि वहां के लोग 5 घंटे लंबी फिल्म को देखने को तैयार थे। 25 गाने हैं। छोटे शहर की कहानी है। इसके बावजूद वहां के लोगों को फिल्म पसंद आई।
मनोज बाजपेयी से पहले आपका झगड़ा हुआ था। अब आपने उन्हें फिल्म में लिया?
जी हां, जो अच्छे दोस्त होते हैं, वही आपस में लड़ते-झगड़ते और फिर सुलह करते हैं। दुश्मन के बारे में आपने कभी सुना है कि वे सुलह करते हों। कुछ साल पहले हम दोनों के बीच मतभेद उत्पन्न हुए थे। बाद में हम फिर मिले और सारे गिले-शिकवे दूर कर लिए। वे बेहतरीन कलाकार हैं। सरदार खान के कैरेक्टर के लिए उनसे अच्छा कलाकार मुझे इंडस्ट्री में नहीं मिला। इसलिए उन्हें फिल्म में लिया।
..और तिग्मांशु व पीयूष मिश्रा का चयन किस आधार पर किया? पीयूष आपके लकी मैसकट माने जाते हैं?
तिग्मांशु कमाल के कलाकार हैं। वे एनएसडी से हैं। लोगों ने उनकी प्रतिभा का इस्तेमाल नहीं किया है। वे फिल्म में रमाधीर सिंह का रोल कर रहे हैं, जो 40 साल से 90 की उम्र तक दिखता है। पीयूष में क्त्रिएटिविटी बहुत है। एक्टिंग के अलावा उन्होंने फिल्म में गाने भी लिखे हैं। वे मेरे मैसकट नहीं हैं। मैं उनका प्रशंसक हूं।
रामू ने भी रक्तचरित्र के दो पार्ट बनाए थे, लेकिन वे नहीं चलीं। डर नहीं लग रहा आपको?
नहीं, दोनों फिल्मों की तुलना नहीं की जा सकती। यह अलग किस्म की फिल्म है। कोयला माफिया, नेता, पुलिस और कई किस्म के चरित्र हैं इसमें। इनका आपसी फन लोगों को बहुत पसंद आएगा। जिस तरह वे बात करते हैं। जिस तरह छोटी-छोटी चीजों पर वे रिएक्ट करते हैं। ऐसे कैरेक्टर हैं, जो अपनी आन-बान और शान के लिए किसी को कभी भी मार सकते हैं। इसका दूसरा पार्ट भी बढि़या होगा।
यह फिल्म देहात और छोटे शहर पर बेस्ड है। इसे देखने मल्टीप्लेक्स के दर्शक आएंगे?
जरूर आएंगे। मैं स्पष्ट कर दूं कि यह शुद्ध मसाला फिल्म है। गाने हैं, ऐक्शन हैं, दमदार संवाद हैं। लोग पहली बार सोनभद्र, रांची, धनबाद और पटना की खूबसूरती को बड़े पर्दे पर देखेंगे। यह रियलिस्टिक जरूर है, पर मसाला एलिमेंट से लबरेज है। लोगों ने इसे खूब पसंद किया है।
यह अब तक आपकी सबसे बड़ी प्रयोगात्मक फिल्म कही जा सकती है?
जी हां, इसमें मैंने खूब प्रयोग किए हैं। गीत-संगीत से लेकर कहानी और किरदार तक के लिए हमने काफी मेहनत की है। इंडस्ट्री के कमर्शियल विजडम के खिलाफ है यह। दो पार्ट में बनी है। लंबी फिल्म है। 25 गाने हैं। 300 कैरेक्टर हैं। जो गाने हैं वे हमारे यहां शादियों में गाये जाते थे। ये गीत पसंद आएंगे।
आपने शुरुआत डार्क फिल्मों से की। अचानक मसाला फिल्मों की ओर क्यों आ गए?
अपने देश में अभी भी रियलिस्टिक फिल्मों के प्रति माहौल नहीं बना है। आज के दर्शक खान, कपूर और कुमार को पसंद करते हैं, कश्यप को नहीं। इसलिए यहां सर्वाइव करने के लिए ऐसी फिल्में बनानी होंगी, जिससे हम यहां टिक सकें। हाउसफुल-2 और बोल बच्चन जैसी फिल्में बहुत जरूरी हैं हमारे जैसे फिल्ममेकरों के लिए। उनके द्वारा कमाया गया पैसा पूरी इंडस्ट्री में सर्कुलेट होता है, जिससे हम जैसे फिल्मकारों के लिए गुंजाइश होती है कि अपने मिजाज की अलग फिल्में बना सकें। आगे चलकर पूर्ण रूप से अपने मिजाज की फिल्में बनाऊंगा। तब तक यहां का माहौल भी बदल जाएगा।
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