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लो बजट में भी बनती है अच्छी कॉमेडी

रितेश देशमुख का कहना है किक्या सुपरकूल हैं हम में दिखेगी शरारत। यही फिल्म की यूएसपी भी है।

By Edited By: Published: Wed, 25 Jul 2012 12:08 PM (IST)Updated: Wed, 25 Jul 2012 12:08 PM (IST)
लो बजट में भी बनती है अच्छी कॉमेडी

रितेश देशमुख का कहना है किक्या सुपरकूल हैं हम में दिखेगी शरारत। यही फिल्म की यूएसपी भी है। रितेश देशमुख से बातचीत के कुछ अंश..

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फिल्म में अपने किरदार के बारे में बताएं?

मैं स्ट्रगलिंग डीजे सिड का किरदार निभा रहा हूं। उसकी साढ़े साती चल रही है। कहीं से काम नहीं मिल रहा है। गोवा के क्लबों में परफॉर्म चाहता है, पर मौका नहींमिल पा रहा है। मजबूरी में वह गुजराती लोगों की शादियों में गाना गाता है। एक लाचार इंसान की मजबूरियां किस तरह मजेदार स्थिति उत्पन्न करती है, यह इसमें दिखाया गया है।

क्या कूल हैं हम के निर्देशक थे संगीत सिवान, जबकि इसकी सीक्वल सचिन यार्डी निर्देशित कर रहे हैं। दोनों में कौन बेहतर हैं?

इसका जवाब मुश्किल है। दोनों अपनी-अपनी जगह अच्छे हैं। संगीत के साथ क्या कूल हैं हम और अपना सपना मनी मनी कर चुका हूं। वह तकनीकी तौर पर बहुत मजबूत हैं। उनको स्क्रिप्ट दी जाती है, तो वह उसके साथ जुड़े रहते हैं। काफी व्यवस्थित हैं। सचिन में एक किस्म का रैंडमनेस है। उनमें भरपूर ऊर्जा है। किसी सीन को और मजेदार बना देते हैं वह। इस फिल्म की यूएसपी इसकी शरारत है।

इसकी रिलीज डेट जान-बूझकर चेंज की गई, ताकि हाउसफुल-2 और तेरे नाल लव हो गया की सफलता को भुनाया जा सके?

नहीं, इसका किसी भी फिल्म के साथ कोई लेना-देना नहीं है। हां, यह सच है कि प्रोड्यूसर सहित सभी की यह कोशिश रहती है कि उनकी फिल्म को अच्छी ओपनिंग मिले। जब साल के 52 हफ्तों में 250 फिल्में रिलीज होनी हों, तो आप बहुत सुरक्षित होकर नहीं चल सकते। अगस्त में एक था टाइगर आ रही है, तो सबसे बेहतर यही महीना है हमारे लिए। जुलाई के अंतिम सप्ताह में क्या सुपरकूल हैं हम रिलीज होगी।

सुपरहिट फिल्म की सीक्वल बनाना कितना मुश्किल काम होता है?

कलाकारों के लिए तो कुछ मुश्किल नहीं है। यह माथापच्ची निर्देशक और कहानीकार की होती है। यह जरूर है कि फिल्म के हिट या फ्लॉप होने से उनके करियर को फायदा या नुकसान होता है।

आजकल कॉमेडी फिल्मों की बाढ़ आ गई है, क्या यह आसान काम है..?

एक्शन या फैमिली ड्रामा आप छोटे बजट में नहीं बना सकते। एक्शन करने के लिए ढेर सारे साजो-सामान और तैयारी की जरूरत पड़ती है। किसी फिल्म में अगर दो गाडि़यां उड़ाई गई, तो अगली फिल्म में चार गाडि़यां उड़ानी पड़ेंगी। गजनी के बाद दबंग आई, फिर सिंघम और अब राउडी राठोड़ ने गजब का बिजनेस किया।

हर अगली फिल्म में ज्यादा एक्शन है, इनका बजट बड़ा है। जोक सुनाने के लिए बड़ा सेट बनाने की जरूरत नहीं होती है। लोग इसे एक्सेप्ट भी कर रहे हैं, इसलिए ऐसी फिल्में बड़ी तादाद में बन रही हैं। यह अलग बात है कि अभी भी अच्छी कॉमेडी फिल्में नहीं बन रही हैं।

अमित कर्ण

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