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मुश्किल लगा ऐक्शन करना: माधुरी दीक्षित

माधुरी दीक्षित का नाम लेते ही नजर के सामने कमाल की अभिनेत्री की तस्वीर आ जाती है। कुछ समय का गैप लेकर वे फिल्मों में फिर से सक्रिय हैं। इधर उन्होंने दो फिल्में 'डेढ़ इश्किया' और 'गुलाब गैंग' की हैं। एक फिल्म में आइटम नंबर 'घाघरा..' भी किया। कुछ शो में भी वे जज बनीं

By Edited By: Published: Mon, 24 Mar 2014 11:54 AM (IST)Updated: Mon, 24 Mar 2014 12:11 PM (IST)
मुश्किल लगा ऐक्शन करना: माधुरी दीक्षित

मुंबई। माधुरी दीक्षित का नाम लेते ही नजर के सामने कमाल की अभिनेत्री की तस्वीर आ जाती है। कुछ समय का गैप लेकर वे फिल्मों में फिर से सक्रिय हैं। इधर उन्होंने दो फिल्में 'डेढ़ इश्किया' और 'गुलाब गैंग' की हैं। एक फिल्म में आइटम नंबर 'घाघरा..' भी किया। कुछ शो में भी वे जज बनीं। पिछले दिनों माधुरी दीक्षित 'गुलाब गैंग' के प्रमोशन के लिए दिल्ली आई थीं, तो उनसे बातचीत हुई।

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'गुलाब गैंग' में क्या खास लगा था?

जिन लोगों ने फिल्म देखी है, वे तो जान गए होंगे। वैसे मुझे इसकी कहानी पसंद आई थी।

आप फिल्मों में बेहतरीन अभिनय, डांस और अंदाज के लिए जानी जाती हैं। इस फिल्म में ऐक्शन भी किया है। कोई तैयारी की थी?

की थी। इसके लिए ट्रेनर ने हमें ट्रेन किया। यह एक गांव की कहानी है। उस क्षेत्र के हथियार भी अलग हैं। उसी के हिसाब से ऐक्शन डिजाइन किए गए।

कितना मुश्किल लगा ऐक्शन करना?

हर काम मेरी समझ से मुश्किल ही होता है, लेकिन यही हमारा काम भी है। पर्दे पर हमें वही जीना होता है, जो हम सही में नहीं होते।

इसमें आपने जूही चावला के साथ काम किया। उनके साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?

बहुत अच्छा लगा उनका साथ। हम वैसे तो कई बार मिले हैं और हेलो-हाय हुई है, पर फिल्म में कभी साथ काम नहीं किया था। मैं थैक्स कहूंगी निर्देशक को, जो उन्होंने हमें साथ लिया।

आपने अपनी एक जगह बनाई है। अब आगे क्या करना चाहती हैं?

हमारे अंदर का कलाकार जो होता है न, वह बड़ी इच्छाएं पालता है। वह रोज अलग और अच्छा करना चाहता है। वह समझता है कि मेरा अच्छा काम अभी आएगा। वह मृगतृष्णा में जीता है। मेरा भी यही हाल है। कलाकार कभी संतुष्ट नहीं होता। अगर ऐसा हो गया, तो वह कलाकार गया काम से..।

आप विदेश गई। आपको कैसा महसूस होता था, जब फिल्मी दुनिया की याद आती थी?

सच तो यही है कि मैं एक अभिनेत्री हूं और वहां जाने के बाद मैं कुछ भी नहीं थी। यह बात कई बार दुख पहुंचाती थी, लेकिन मेरी एक जिम्मेदारी भी थी। पति के साथ बच्चों को भी संभालना था, तो मैं उस फर्ज को लेकर बिजी थी। जब लगा कि अब बच्चे थोड़े बड़े हो गए हैं और वे अब समझने लगे हैं, तो मैं फिर से आ गई अभिनय की दुनिया में।

आपके पास टीवी शो हैं, फिल्में हैं साथ ही और भी बहुत कुछ कर रही हैं। इसे किस नजरिए से देखती हैं?

मैं मुंबई की हूं। यहां मेरा घर है, माता-पिता हैं। फिर यहां मेरे करोड़ों चाहने वाले हैं। मेरे तमाम किरदारों से लोग जानते और नाम से बुलाते हैं। माता-पिता भी चाहते थे कि मैं उनके साथ रहूं। सबसे अहम बात तो यह है कि मेरी किस्मत में लिखा था वापस आना, सो मैं आ गई।

आप 'डेढ़ इश्किया' में बेगम पारा के रोल में अच्छी लगीं। आपको यह भूमिका कैसी लगी?

मुझे भी अच्छी लगी थी। वैसे मीना कुमारी की 'पाकीजा' वाली भूमिका मेरे जेहन में थी, लेकिन इस जैसा थोड़ा सा रोल मैंने 'देवदास' में किया था। चन्द्रमुखी का भी चरित्र अनोखा था।

आपको अब स्टार कहलाना अच्छा लगता है या आर्टिस्ट?

अगर कोई मुझे बिन मांगे ईनाम दे दे, तो मुझे बुरा तो नहीं लगेगा, पर आर्टिस्ट होना मेरी समझ से बहुत बड़ी बात है। उसमें ऐक्ट्रेस भी है और स्टार भी। मैं तो मानती हूं कि आर्टिस्ट हुए बिना कोई स्टार बन ही नहीं सकता।

आज के कलाकारों को सफलता जल्दी मिल जाती है। इस बारे में आप क्या कहेंगी?

आज के कलाकार पूरी तैयारी के साथ इस फील्ड में आते हैं, इसलिए वे सफल होते हैं।

आज की किस ऐक्ट्रेस में आपको ज्यादा खूबी नजर आती है?

कई हैं, किसका नाम बताऊं, मेरी समझ से विद्या बालन, प्रियंका चोपड़ा, करीना कपूर हैं। हुमा कुरैशी ने मेरे साथ काम किया है, वे भी अच्छी हैं।

आपने उस समय भी कई ऐसी फिल्में कीं, जिनमें आपका लुक ग्लैमरस नहीं था?

मैं आज भी उसी तरह की भूमिकाएं करना पसंद करती हूं, कर भी रही हूं। दरअसल 'मृत्युदंड' वगैरह का कॉन्सेप्ट ऐसा था, जिसके लिए वैसा लुक ही चाहिए था। मैं आज ग्लैमरस रोल की बजाय मिलने वाले ऑफर में यह देखती हूं कि कहानी कैसी है। मेरा रोल क्या है।

अब आप मुंबई में हैं। यहां आने के बाद बच्चे आपके बारे में क्या सोचते हैं।

वे जब स्कूल से आते हैं, तो कहते हैं, मम्मी यहां आप कितनी फेमस हो, यह बात मुझे स्कूल जाकर पता चली है। आपके बारे में सभी पूछते हैं, तारीफ भी करते हैं।

बच्चों के लिए आप कैसी मां हैं?

वैसी ही, जैसी सभी होती हैं, पर समय के साथ थोड़ा सख्त भी होती हूं। मैं बच्चों को यह बताती हूं कभी यह न सोचो कि तुम्हारे पास सब कुछ है। वे सबकी रेस्पेक्ट करना जरूर सीखें।

बच्चों को आप सबसे अच्छी सीख क्या देती हैं?

यही कि इंसान बनो। अगर इंसान बन गए, तो जिंदगी आसान हो जाएगी। दुनिया आपको पसंद करेगी।

असफलता से आपको डर लगता है?

अब नहीं। मैं अब इन बातों से आगे निकल चुकी हूं। मुझे अब ये बातें नहीं सतातीं। बस मेरा काम अच्छा होना जरूरी है, मैं इसी बारे में सोचती हूं।

आप और नेने में ज्यादा रोमांटिक कौन है?

दोनों ही हैं। हम हमेशा साथ होते हैं हर मौकों पर।

अगर आप अभिनय की दुनिया में नहीं आतीं तो..?

इस फील्ड में नहीं होती। गोविंद मूनिस जी ने मुझे काम दिलवाया और मैं इस दुनिया में आ गई।

ईश्वर पर यकीन करती हैं?

पूरा-पूरा और दिल से..। मैं आज जो भी हूं, उन्हीं की बदौलत हूं।


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