अभी तो मुझे 25 साल और काम करना है: शाहरुख खान
‘हैप्पी न्यू ईयर’ को लेकर दर्शकों की दीवानगी देश ही नहीं, दुनिया भर में सभी हदें और बॉक्स ऑफिस के रिकॉर्ड तोड़ रही है। महज
मुंबई। ‘हैप्पी न्यू ईयर’ को लेकर दर्शकों की दीवानगी देश ही नहीं, दुनिया भर में सभी हदें और बॉक्स ऑफिस के रिकॉर्ड तोड़ रही है। महज एक हफ्ते में 200 करोड़ के आंकड़े को पार कर चुकी इस फिल्म की कामयाबी से अभिभूत शाहरुख खान गुरुवार को दर्शकों का शुक्रिया अदा करने के लिए कानपुर में मौजूद थे। शाहरुख के साथ आईं निर्देशक फराह खान और अभिनेता सोनू सूद तथा विवान शाह ने भी दैनिक जागरण कार्यालय में हुई एक खास मुलाकात में साझा किए इस फिल्म से जुड़े अनुभव। आइए डालते हैं एक नज़र फिल्म की टीम से पूछे गए सवालों के जवाब पर।
दुबई की भव्य लोकेशन, शानदार इफेक्ट्स और कसी हुई कहानी के साथ आज इतने बड़े कैनवास व लेवल पर इस फिल्म को बनाया गया। 2004 में जब इस फिल्म के बारे में सोचा गया था तब दिमाग में क्या था?
शाहरुख: प्रोड्यूसर के तौर पर मैं कहूंगा कि एक डायरेक्टर की सोच को हम 20 गुना बढ़ाकर पेश करने की कोशिश करते हैं। वो टेक्नोलॉजी की मदद से हो या किसी अन्य तरह से। प्रोड्यूसर का काम होता है कि डायरेक्टर के विजन को इतना बढ़ाए कि उसे लगे कि मैंने जो ख्वाब में देखा, वो पर्दे पर उतर रहा है।
फराह: मैं खुश हूं कि हम इस फिल्म के लिए इतने दिन रुके, क्योंकि 2004 में हम इतने बड़े कैनवास की फिल्म शायद नहीं बना पाते।
फिल्म का अंत देखकर लगता है कि इसका सिक्वेल जरूर आएगा?
फराह: यकीनन हम जो भी बनाएंगे इससे बड़ा ही बनाएंगे लेकिन अभी हम एक माह छुट्टी मनाएंगे। फिर सोचेंगे कि हमें आगे क्या करना है। वैसे अब मेरा एक बहुत छोटी फिल्म बनाने का विचार है।
फराह एक बहुत टफ टास्क मास्टर हैं। सोनू आपको तो शॉट के बीच में समय ही नहीं दिया होगा इन्होंने?
सोनू: मैंने कई भाषाओं में फिल्में की हैं लेकिन फराह के साथ काम करके बहुत मजा आया। सब जगह शूटिंग के समय आपको टाइम मिलता है, पर फरहा इतना ज्यादा एंटरटेन कर देती थीं कि टाइम का पता ही नहीं चलता था। सच में इस मूवी ने मेरी आदत खराब कर दी है कि इस तरह का माहौल मैं अब हर फिल्म में मिस करूंगा।
विवान आपके पिता जी ने कहा कि फराह और शाहरुख के साथ काम करना आपके लिए बहुत अच्छा रहा?
विवान: मेरे लिए सबसे बड़ी ब्लेसिंग थी इनके साथ काम करना। इनके साथ काम करके मैंने बहुत कुछ सीखा और बहुत मजा आया इनके साथ काम करके।
फराह आप मुहावरों को पिक्चराइज करती हैं, जैसे दीपिका जब शाहरुख के करीब आती हैं तो आग लग जाती है। वैसे ही ‘मैं हूं ना’ में वाइलिन बजने लगते थे। डायरेक्टर और एक्टर के बीच ऐसा सामंजस्य कहां से आता है?
फराह: पता नहीं। बस लिखते लिखते ये सब आ जाता है। ऐसे ही जितेंद्र जी की साउथ की एक पुरानी फिल्म से बमन के बटुए में से सामान निकलने वाला आइडिया आया। ऐसे आइडिया से फिल्म के लिए जरूरी एलिमेंट्स भी मिल जाते हैं।
शाहरुख: डायरेक्टर और एक्टर के बीच एबिलिटी मैच होना बहुत जरूरी है। मैं ऐसे किसी भी डायरेक्टर के साथ काम नहीं करता जिससे मेरी ट्यूनिंग नहीं बन पाती।
फराह: हम दोनों की कैमिस्ट्री बहुत मैच करती है। तभी तो तीन की तीन फिल्में सक्सेसफुल रहीं।
फराह आप एक एंटरटेनिंग और फनी मूवी को देशभक्ति में पिरो देती हैं। आपकी ये देशभक्ति की भावना और आज के माहौल को आप कैसे देखती हैं?
फराह: मैं बचपन से मनोज कुमार की फैन रही हूं। ‘पूरब और पश्चिम’ मेरी सबसे पसंदीदा फिल्म है। जब भी मैं उनके गाने सुनती हूं तो दिल में जज्बात जग जाते हैं। शाहरुख कहते हैं कि देशभक्ति को हम मॉडर्न रूप में दिखाएं। मैंने इस फिल्म में भी यही दिखाया कि वे लूजर हैं पर अपने देश के लिए नाचते हैं।
शाहरुख फिल्म इंडस्ट्री में दो साल बाद आपके 25 वर्ष पूरे होने वाले हैं। 25वें साल में आप दर्शकों को जश्न मनाने की कौन सी वजह देने वाले हैं?
शाहरुख: मैं फिल्म बनाते समय ही मजे करता हूं। उसके बाद मुझे फिल्म से कोई मतलब नहीं रहता। इसके बाद मुझे सिर्फ अपने काम और बच्चों से लगाव है। सही बताऊं तो वो फिल्म अभी तक मैंने नहीं की, जो मैं करना चाहता हूं। अब देखिए क्या आता है, अभी तो मुझे 25 और वर्ष काम करना है।
सोनू आपने इंजीनियरिंग की है। फिल्म में फराह ने आपसे पाइप भी खुलवाए हैं, कुछ पुराने दिन याद आए?
सोनू: मुझे अपने इंजीनियरिंग के दिन हमेशा याद आते हैं। जब मैंने मम्मी से बोला कि मुझे एक्टर बनना है तो वह बोली ठीक है जा पर कुछ बनकर ही आना। अब जब भी फिल्म के सेट पर जाता हूं तो अपने वो दिन याद आते हैं। हमेशा मम्मी की बात याद आती है।
‘हैप्पी न्यू ईयर’ सबने देखी, पर इसके अंदर की रूह क्या है? वो क्या है जो आप सामने लाना चाहते थे?
शाहरुख: मेरा मानना है कि स्टोरी ऐसी हो कि उसमें हर किसी के लिए कुछ न कुछ हो। दादी से लेकर बच्चे तक सबके लिए कुछ हो। मेरा मकसद था कि फिल्म में हर किसी के लिए एक अपील हो। इस फिल्म की रूह यही है कि इससे सबको सबकुछ मिल जाए। फिल्म के फॉर्मेट का असली मकसद था कि यह एक कंप्लीट फैमिली फिल्म हो। शायद हम अपने मकसद में सफल हो गए।
फराह: शाहरुख की बात से अच्छा जवाब कोई हो ही नहीं सकता!