सफलता का मोहताज है सम्मान: शरमन जोशी
अपने हक और सम्मान की लड़ाई में 'सुपर नानी' रेखा का साथ देंगे शरमन जोशी थिएटर बैकग्राउंड के अभिनेता शरमन जोशी हर किस्म की फिल्में नहीं चुनते। उनके लिए कहानी का अलहदा होना बेहद जरूरी है। वैसा होने पर उन्हें सेकंड लीड होने से भी ऐतराज नहींहोता। उनकी अगली फिल्म 'सुपर नानी' है,
अपने हक और सम्मान की लड़ाई में 'सुपर नानी' रेखा का साथ देंगे शरमन जोशी
थिएटर बैकग्राउंड के अभिनेता शरमन जोशी हर किस्म की फिल्में नहीं चुनते। उनके लिए कहानी का अलहदा होना बेहद जरूरी है। वैसा होने पर उन्हें सेकंड लीड होने से भी ऐतराज नहींहोता। उनकी अगली फिल्म 'सुपर नानी' है, जो पूरी तरह रेखा के किरदार के इर्द-गिर्द घूमती है। शरमन से बातचीत के अंश:
'सुपर नानी' क्या कहना चाहती है?
यह भारती भाटिया (रेखा) के अपने परिवार में सम्मान कमाने का सफर है। वह उम्रदराज और हाउसवाइफ हैं। उसे अपने बेटे-बहू और यहां तक कि पति भी हिकारत की नजरों से ही देखते हैं। ऐसे में उसका नाती लंदन से हिंदुस्तान आता है। वह नानी की हौसला अफजाई करता है। उसे विज्ञापन फिल्मों में काम दिला कर मशहूर करता है। परिवार में उसकी खोई हुई इज्जत दिलाता है।
एक हद तक ऐसा ही सफर 'इंग्लिश विंग्लिश' में शशि गोडबोले भी तय करती है। अपने बच्चों की नजरों में सम्मान हासिल करने के लिए उसे इंग्लिश भाषा सीखनी पड़ती है?
'इंग्लिश विंग्लिश' जैसी कहानी तो नहीं है इसकी। यह 'बागबान' के मिजाज की फिल्म है। 'सुपर नानी' फीमेल सेंट्रिक फिल्म है। यह महिलाओं से अपने हक और सम्मान के लिए खड़े होने को कहती है। यह जताती है कि अगर आपको अपने परिवार में ही इग्नोर किया जा रहा है तो उसे टॉलरेट करने की जरूरत नहीं। अपने कर्मों से उसका मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए।
यानी सम्मान कमाया ही जाता है और वह सफलता का मोहताज है?
अधिकांश मामलों में तो यही होता है। यह गलत है या सही, वह नैतिक सवाल है। हां ऐसा होना नहीं चाहिए। हम अक्सर उन्हें ही टेकेन फॉर ग्रांटेड लेते हैं, जो हमें सबसे ज्यादा प्यार करते हैं। मुझसे भी ऐसी हरकत हो ही जाती है। जो मुझसे सच्चा प्यार करते हैं, उन्हें मैं वक्त नहीं दे पाता। उनकी भावनाओं का सम्मान नहीं कर पाता, पर सच्चाई यह भी है कि आपको खुद ब खुद सम्मान तभी मिलेगा, जब आप कोई मिसाल कायम करेंगे। वह मिसाल काम से हो या फिर अपनी अच्छाई से।
आप अपने कॅरियर की बेहतरीन फिल्म या किरदार किसे मानते हैं?
'थ्री इडियट्स' में निभाया गया राजू रस्तोगी का किरदार। 'रंग दे बसंती' जैसी कमाल का मैसेज देने वाली फिल्म क्यों नहीं?
उसमें मेरे किरदार की लंबाई बहुत कम थी। ज्यादा कुछ करने को नहीं मिला। 'थ्री इडियट्स' में राजू रस्तोगी की भूमिका में एक ग्राफ है। वह कमजोर से मजबूत शख्सियत बनने का सफर तय करता है। उस किस्म का काम मुझे कम ही फिल्मों में करने को मिला। यही वजह है कि मैं 'लाइफ इन ए मेट्रो' में निभाई अपनी भूमिका को भी ज्यादा अहम नहीं मानता। वहां मेरा रोल रोचक तो था, मगर उसकी लेंथ भी छोटी ही थी।
आगे कौन सी फिल्में कर रहे हैं?
फिलहाल हॉरर जॉनर की '1920' की अगली किश्त कर रहा हूं।
(अमित कर्ण)