एकता कपूर कंटेंट में महिलाओं के नजरिये का रखती है ध्यान, कहा- 'कभी-कभी कलाकार का विश्वास डरा देता है'
एक वक्त ऐसा भी था जब महिलाओं को जाब पर जाने के लिए जंग लड़नी पड़ी है। आज यह बहुत पिछड़ी हुई बात लगेगी अगर किसी को काम करने से रोका जाएगा। हालांकि उस दौर की वह जंग अलग थी।
प्रियंका सिंह, मुंबई जेएएन। निर्माता एकता कपूर फिल्में और वेब सीरीज भले ही बना रही हों, लेकिन टीवी के लिए उनका प्यार बना हुआ है। पिछले दिनों एकता ने दो अलग-अलग जानर के शो 'नागिन 6' और 'परिणीति' लांच किए। एकता का कहना है कि टीवी हो, फिल्में हों या वेब सीरीज वह हमेशा ऐसा कंटेंट बनाना चाहेंगी, जिसमें महिलाओं का नजरिया झलके।
नागिन एक बड़ी फ्रेंचाइची बन चुकी है। ऐसे में इस शो को शुरू करने से पहले कोई दबाव रहता है?
दबाव तो होता है। कई बार तो यह विश्वास ही डरा देता है कि कोई कलाकार सिर्फ एक फोन पर ही इसका हिस्सा बनने के लिए तैयार है। उस कलाकार के प्रति फिर एक जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि उसका विश्वास नहीं तोड़ना है। हम अपने आपसे ही प्रतियोगिता कर रहे हैं। कुछ काम किया और वह लोगों को पसंद आया तो उसके हिसाब से अगर अगला काम नहीं होगा तो तनाव हो जाता है। हमने कुछ बनाया और दर्शकों को वह नहीं पसंद आया तो उनका गुस्सा भी सिर आंखों पर रखना पड़ता है, पसंद आ गया तो उनका प्यार भी सिर आंखों पर।
दोनों शो एक साथ लांच करने की क्या वजह रही?
शो 'मोलक्की' की कहानी खत्म हो गई थी। आईपीएल भी शुरू होने वाला है, उससे पहले मुझे अपने दोनों शो को सेट करने के लिए वक्त चाहिए था। मैं ज्योतिषशास्त्र में यकीन करती हूं, उस हिसाब से शो लांच करने के लिए जनवरी सही वक्त नहीं था। फरवरी का ही वक्त सही था। दोनों की कहानियां अलग हैं। मुझे एक ही तरह का कंटेंट बनाने में मजा नहीं आता है। मैंने कई शो के साथ लुटेरा, उड़ता पंजाब, द डर्टी पिक्चर जैसी कई फिल्में भी बनाई हैं। कोशिश यही रहती है कि अपनी कंपनी से कुछ अलग देती रहूं।
टीवी के कंटेंट को लेकर अक्सर कहा जाता है कि वे फिल्मों की तरह प्रोग्रेसिव नहीं होते हैं। आपका क्या मानना है?
शो 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' में हमने जितने भी किरदारों को दिखाया था, वे किसी न किसी चीज का सामना कर रहे थे। फिर चाहे वह वैवाहिक जीवन में महिलाओं पर होने वाले शारीरिक अत्याचार हो, घरेलू हिंसा का मुद्दा हो, किसी इंसान के लिए जॉब के मौके हों। जैसे मैंने एक शो में दिखाया था कि एक मां फैशन शो के लिए पेरिस गई है, लोगों ने मेरा मजाक बनाया था कि आप यह कैसे दिखा सकती हैं, मैंने कहा क्यों नहीं, क्या जिंदगी 80 साल की उम्र में शुरू नहीं हो सकती है, लेकिन लोगों की दिक्कत यह है कि वह इन मुद्दों को छोड़कर यह देखते हैं कि साड़ी क्या पहनी है या ज्वेलरी पहनकर क्यों सो रही है। कहानी पर उनका ध्यान ही नहीं जाता है। शो 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' के बाद हमने जो भी रिसर्च की, उसमें यही कहा गया था कि महिलाओं ने अपने घर की दिक्कतों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया है। वे सवाल उठाने लगीं कि अगर तुलसी ('क्योंकि सास भी कभी बहू थी' शो की एक किरदार) से उसका पति सलाह लेता है तो घर के कामों में उनके पति उनकी सलाह क्यों नहीं ले सकते हैं। छोटी-छोटी चीजें जो लोगों को नहीं दिखाई देती हैं, वे मैंने अपने शो में दिखाने की कोशिश की है।
हर सदी में बदलाव होते हैं। एक वक्त ऐसा भी था, जब महिलाओं को जॉब पर जाने के लिए जंग लड़नी पड़ी है। आज यह बहुत पिछड़ी हुई बात लगेगी अगर किसी को काम करने से रोका जाएगा। हालांकि उस दौर की वह जंग अलग थी। इसलिए हमने उन मुद्दों को पहले अपने शो में उठाया था। अब वह जंग महिलाओं को लड़नी नहीं पड़ रही है। महिलाएं इस दुनिया का आधा हिस्सा हैं। ऐसे में मैं ऐसा कोई भी कंटेंट (फिल्म या शो) नहीं बनाना चाहूंगी, जिसमें महिलाओं का नजरिया न हो या उनके लेंस से वह कंटेंट न दिखाया जाए।
आप व्यस्त शेड्यूल के बीच अपने बेटे रवि को स्कूल छोड़ने और लाने का काम कभी नहीं छोड़ती हैं?
रवि को स्कूल छोड़ना और लाना, यह काम मैं किसी के लिए नहीं बदलूंगी। जब वह स्कूल से बाहर निकलता है तो उसका जो चेहरा होता है, जब वह मुझे ढूंढ़ता है, वह पल मेरे लिए बहुत खास होता है। मैं बहुत ही महत्वाकांक्षी महिला हूं, मैं कभी अपने काम को पीछे नहीं रखती हूं, लेकिन कुछ चीजें हैं, जिन्हें मैं अपनी जिंदगी में काम से पहले रखती हूं। रवि को स्कूल से लाना, ले जाना उन्हीं में से एक है। वह मेरे बेटे का वक्त होता है।