जिंदगी के अनुभवों से लेता हूं कहानियां - सुभाष कपूर
‘जॉली एलएलबी’ और ‘फंस गए रे ओबामा’ जैसी हिट फिल्में देने के बाद निर्देशक सुभाष कपूर लेकर आ रहे हैं ‘गुड्डू रंगीला’। इस फिल्म और अपनी क्रिएटिविटी के बारे में उन्होंने विस्तार से बात की अजय ब्रह्मात्मज से...
‘जॉली एलएलबी’ और ‘फंस गए रे ओबामा’ जैसी हिट फिल्में देने के बाद निर्देशक सुभाष कपूर लेकर आ रहे हैं ‘गुड्डू रंगीला’। इस फिल्म और अपनी क्रिएटिविटी के बारे में उन्होंने विस्तार से बात की अजय ब्रह्मात्मज से...
मैंने ‘फंस गए रे ओबामा’ खत्म करने के समय ही ‘गुड्डू रंगीला’ की स्क्रिप्ट लिखनी शुरू कर दी थी। बात ढंग से आगे नहीं बढ़ रही थी तो मैंने उसे छोड़ दिया और ‘जॉली एलएलबी’ पर काम शुरू कर दिया। उस फिल्म को पूरी करने के दौरान ही मुझे ‘गुड्डू रंगीला’ का वैचारिक धरातल मिल गया। उसके बाद तो उसे पूरा करने में देर नहीं लगी। ‘गुड्डू रंगीला’ के निर्माण में अमित साध के एक्सीडेंट की वजह से थोड़ी अड़चन आई लेकिन फिल्म अब पूरी हो गई है।
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जरूरी है वैचारिक धरातल
मेरे लिए फिल्म का वैचारिक धरातल होना जरूरी है। आप मेरी फिल्मों में देखेंगे कि कोई न कोई विचार जरूर रहता है। मैं किसी घटना या समाचार से प्रेरित होता हूं। उसके बाद ही मेरे किरदार आते हैं। ‘गुड्डू रंगीला’ की शुरुआत के समय मेरे विचार स्पष्ट नहीं थे। यह तो तय था कि हरियाणा की पृष्ठभूमि रहेगी और उसमें खाप पंचायत का उल्लेख रहेगा। अटकने के बाद मैंने आधी-अधूरी स्क्रिप्ट छोड़ दी थी। ‘जॉली एलएलबी’ पूरी होने के बाद मैंने स्क्रिप्ट फिर से पढ़ी। मुझे ऐसा लगा कि नई घटना को इसके साथ जोड़ दें तो स्क्रिप्ट रोचक हो जाएगी। दरअसल हरियाणा में मनोज-बबली का मामला बहुत मशहूर हुआ था। दोनों एक ही गोत्र के थे और शादी करना चाहते थे। खाप पंचायत ने उन पर रोक लगाने के साथ आदेश नहीं मानने पर बुरे परिणाम की चेतावनी दी थी। मेरी फिल्म में वह घटना नहीं है लेकिन खाप पंचायत और उनके आदेशों का जिक्र है। संक्षेप में मेरी फिल्म में खाप भी है और आप (दर्शक) भी हैं।
आसपास मिलती हैं कहानियां
मैंने हमेशा अपनी जिंदगी के अनुभवों से ही कहानियां ली हैं। मैं वैसे प्रोजेक्ट नहीं बना सकता, जिसमें स्टार हों और सारे मसाले हों। मैंने जो देखा, सुना और जिया है, उन्हें ही पेश करता हूं। मुझे अपने आसपास की विसंगतियों और विरोधाभासों में कहानियां मिलती हैं। मेरे किरदार मामूली लोग होते हैं। वे निजी स्तर पर माहौल से जूझ रहे होते हैं। वे हंसाने या रुलाने के लिए नहीं गढ़े जाते। उनकी स्थितियां ऐसी होती हैं कि दर्शक हंसते और भावुक होते हैं। गुड्डू और रंगीला ऐसे ही दो किरदार हैं। वे एक बैंड चलाते हैं और स्थानीय मौकों पर गाना गाते हैं। रंगीला नाम का ही रंगीला है। वह गंभीर स्वभाव का है। गुड्डू मस्तीखोर और आशिकमिजाज है। वह सभी को खुश करना और अपना काम निकालना जानता है। संयोग से दोनों ऐसी स्थितियों में फंसते हैं कि उनकी मुसीबत बढ़ जाती है।
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कलाकारी दिखेगी फिल्म में
मेरी सभी फिल्मों में कलाकारों के अभिनय की तारीफ होती है। इस बार भी दर्शक संतुष्ट होंगे। अरशद वारसी उम्दा कलाकार हैं। वे विरोधाभासी किरदारों को बहुत अच्छी तरह निभाते हैं। अमित साध ने जबरदस्त काम किया है। रोनित रॉय का किरदार और अभिनय दोनों ही प्रभावशाली है। अदिति राव हैदरी ‘गुड्डू रंगीला’ की प्रमुख किरदार होने के साथ सूत्रधार भी हैं।
फेसबुक पर माता का बुलावा
‘कल रात माता का मुझे ईमेल आया है, माता ने मुझको फेसबुक पर बुलाया है’ गीत की प्रेरणा मुझे अपने बचपन से मिली। मेरी मां माता की भक्त हैं। घर में तब कैसेट बजा करते थे। नरेन्द्र चंचल जी के गाए माता के गीत सुबह से बजने लगते थे। तभी एक गीत सुना था, जिसमें माता जी का टेलीफोन आता है। मुझे लगा कि अगर तब माता के टेलीफोन की कल्पना की जा सकती है तो अभी फेसबुक और ईमेल के सहारे उनकी बात की जानी चाहिए।
रहा हूं जल्दबाजी में
भविष्य की फिल्मों के बारे में अभी ठोस ढंग से कुछ नहीं कह सकता। दो-तीन स्क्रिप्ट तैयार हैं। ‘जॉली एलएलबी’ के सीक्वल की बात है। पहले ऐसा कोई इरादा नहीं था। ‘गुड्डू रंगीला’ की शूटिंग के दरम्यान अरशद वारसी से मिलने आए प्रशंसकों में से अधिकांश ने कहा कि सीक्वल आना चाहिए। उसके बाद ही मैंने विचार किया और सीक्वल की प्लानिंग हो गई। कुछ लोगों को लगता है कि मैं लोकप्रिय सितारों के बगैर ही फिल्में बनाने में यकीन रखता हूं। अभी तक मैं जल्दबाजी में रहा हूं। ऐसी स्थिति में सितारों के लिए इंतजार नहीं किया जा सकता। अभी सोच रहा हूं कि उन्हें स्क्रिप्ट सुनाकर फाइनल कर लूं। जब उनकी तारीख मिलेगी, तब मैं तैयार रहूंगा। अभी कुछ और फिल्में कर लूंगा। मैं जिन सितारों के साथ अभी तक काम करता रहा हूं, उनसे पूरा समर्थन मिलता है। वे मेरी स्क्रिप्ट के प्रति समर्पित रहते हैं और मैं अपनी बात भी कह लेता हूं।